भूवै के लिए वैदिक महत्त्व
वैदिक ग्रंथों में भूवै (पृथ्वी या भूमि) का विशेष महत्त्व बताया गया है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में पृथ्वी को माता के रूप में पूजनीय माना गया है। वैदिक परंपरा के अनुसार, भूवै केवल भौतिक भूमि नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और दैवीय सत्ता का प्रतीक भी है।
1. पृथ्वी को माता रूप में प्रतिष्ठा
ऋग्वेद (10.18.10) में कहा गया है:
"माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:"
(अर्थात, पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।)
इससे यह स्पष्ट होता है कि वैदिक दर्शन में भूवै को केवल एक भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना माना गया है।
2. यज्ञ और कृषि में भूवै का महत्व
वैदिक यज्ञों में भूमि को पवित्र माना जाता था और यज्ञ की शुद्धता बनाए रखने के लिए विशेष स्थान (यज्ञवेदी) को तैयार किया जाता था। कृषि से संबंधित अनेक मंत्रों में भूमि को उर्वरता देने वाली शक्ति माना गया है।
3. भूवै और पर्यावरण संतुलन
अथर्ववेद में पर्यावरण संतुलन के लिए भूमि की रक्षा करने पर बल दिया गया है। इसमें यह बताया गया है कि यदि भूमि का दुरुपयोग किया जाएगा, तो प्राकृतिक आपदाएँ उत्पन्न होंगी।
4. भूवै और आध्यात्मिक ऊर्जा
वैदिक शास्त्रों में कहा गया है कि भूमि केवल निवास स्थान नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक साधना और ऊर्जा संचय का स्रोत भी है। विभिन्न तीर्थ स्थल और मंदिर भूवै की विशेष ऊर्जा के कारण ही महत्वपूर्ण माने गए हैं।
5. भूवै और वास्तुशास्त्र
वैदिक काल में वास्तुशास्त्र के माध्यम से भूमि के चयन, उपयोग और संरक्षण की विधियाँ दी गई थीं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखा जा सके।