जिस प्रकार वैयक्तिक विकास के लिए एक नियबद्ध जीवन आवश्यक होता है, उसी प्रकार देश के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए नियोजन का होना आवश्यक हैं। समाजशास्त्र के जनक, ऑगस्त कॉम्ट ने अपने एक लेख में सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए नियोजित परिवर्तन को आवश्यक बताया था। वर्तमान युग में हमारा सामाजिक-आर्थिक जीवन इतना जटिल हो गया है कि नियोजन के बिना वांछित सफलताएँ प्राप्त नही की जा सकती।
इसकी विशेषताएँ निम्नलिखत हैं:
1. आर्थिक पुनर्निर्माण : भारत जैसे पिछड़े एवं कृषि प्रधान देश मे आर्थिक क्षेत्र में नियोजित परिवर्तन का काफी महत्व है। औद्योगिकरण ने अलग किस्म की समस्याएं उत्पन्न की है। आर्थिक विषमता, गंदी बस्तियां, बेरोजगारी, श्रमिकों का शोषण, गरीबी आदि महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण नियोजित परिवर्तन से ही संभव है।
2. ग्रामीण पुनर्निर्माण : भारत की 74. 3 प्रतिशत जनसंख्या 6 लाख से भी अधिक गाँवों मे निवास करती है। एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते हम गाँवों की उपेक्षा कर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य प्राप्त नही कर सकते। नियोजन के द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण की योजनायें लागू करके हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है।
3. समाज-कल्याण : अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछ़ड़े वर्गों की संख्या यहां अत्यधिक है। इस वर्ग को सदियों तक शोषण का सामाना करना पड़ा है। इन वर्गों के उत्थान के बिना समाज की प्रगति संभव नही है। अतः इसके लिये नियोजित कार्यक्रम की आवश्यकता से इंकार नही किया जा सकता।
4. सामाजिक परिवर्तन : भारतीय समाज में जातिवाद, अस्पृश्यता, अपराध, बाल अपराध, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भाषावाद, क्षेत्रवाद इत्यादि अनेक समस्याएं विकराल रूप धारण कर चुकी है। इन समस्याओं को सुलझाने एवं समाज को पुनर्गठित करने के लिए नियोजन की आवश्यकता है।
5. जनसंख्या नियंत्रण : भारत में जनसंख्या की वृद्धि तेज गति से हो रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या देश को पीछे ढकेलती है। अतः जनसंख्या को नियोजित किए बिना देश को समृद्ध नहीं किया जा सकता।
6. धार्मिक क्षेत्र मे नियोजन : भारतीय समाज में बाल विवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा, पर्दा प्रथा, अस्पृश्यता इत्यादि को धर्म के साथ जोड़ा गया साथ ही विभिन्न प्रकार के कर्मकांड एवं आडंबर प्रचलन में है। इनसे धर्म को मुक्त कर समाज में सुव्यवस्था स्थापित करने में नियोजन का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है।
7. औद्योगिक क्षेत्र में : विश्व के विकसित देशों की तुलना में भारत औद्योगिक क्षेत्र में अत्यधिक पिछड़ा हुआ है। यहाँ न तो बड़े उद्योगों का समुचित विकास हो सका है और न ही गुण और मात्रा में उनका उत्पादन सन्तोषजनक है। औद्योगीकरण के कारण कुटीर उद्योगों और छोटे उद्योगों को अत्यधिक हानि हुई है। उद्योगों में श्रमिकों का जीवन असुरक्षित हैं। उद्योगों से पैदा होने वाला प्रदुषण तथा गंदी बस्तियाँ हमारी प्रमुख समस्याएँ है। इन समस्याओं को दूर करने तथा बड़े उद्योगों और कुटीर उद्योगों के बीच सन्तुलन स्थापित करने के लिए भी नियोजन का विशेष महत्व हैं।