अल-बिरुनी के अनुसार जाति व्यवस्थाः
1. सामाजिक विभाजनः अल-बिरुनी ने भारतीय समाज को जातियों में विभाजित पाया, जिसमें प्रत्येक जाति की अपनी निर्धारित भूमिका, अधिकार और कर्तव्य थे। यह व्यवस्था जन्म आधारित थी, और हर व्यक्ति को अपनी जाति से बाहर शादी या व्यवसाय करने की अनुमति नहीं थी।
2. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभावः उन्होंने जाति व्यवस्था को भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक धारा से जोड़ा, जिसमें धर्म और कर्म के आधार पर जातियाँ निर्धारित होती थीं।
3. जातीय असमानताः अल-बिरुनी ने उच्च जातियों और निम्न जातियों के बीच स्पष्ट भेदभाव को देखा और इसे भारतीय समाज में असमानता का एक बड़ा कारण बताया।