असंगजनन
कभी-कभी पौधे के जीवन-चक्र में युग्मक-संलयन (syngamy) अथवा अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) नहीं होते तथा इनकी अनुपस्थिति में नये पौधे का निर्माण हो जाता है, इस क्रिया को असंगजनन (apomixis) कहते हैं। इसकी खोज विंकलर (Winkler, 1908) नामक वैज्ञानिक ने की। असंगजनन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है –
1. कायिक जनन (Vegetative Reproduction) – इस प्रकार के प्रजनन में बीज नहीं बनता। किसी कलिका से, जो तने अथवा पत्ती के ऊपर उत्पन्न होती है, एक नया पौधा जन्म लेता है; जैसे – गन्ना, आलू आदि।
2. अनिषेकबीजता (Agamospermy) – लैंगिक जनन की अनुपस्थिति में बीज का निर्माण-इस प्रकार का प्रजनन बीज द्वारा होता है, परन्तु बीज के बनने में संयुग्मन एवं अर्धसूत्री विभाजन नहीं होते। यह निम्न प्रकार का होता है –
• अपस्थानिक भूणता (Adventive Embryony) – इस प्रकार के बीज के निर्माण में बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरणों (integuments) की कुछ कोशिकाएँ विभाजन एवं वृद्धि करके भ्रूण का निर्माण करती हैं। इस प्रकार उत्पन्न भ्रूण में सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। उदाहरण—नींबू (Citrus), आम (Mangifera indica), नागफनी (Opuntia dillenii)
• द्विगुणित बीजाणुता (Diplospory) – इस प्रकार के बीज के निर्माण में दीर्घबीजाणु मातृकोशिका (megaspore mother cell) से भ्रूणकोष (embryo sac) बन जाता है। क्योंकि इस निर्माण में अर्धसूत्री विभाजन नहीं होता, सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। यदि इस भ्रूणकोष के अण्ड (egg) से, नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास हो जाता है तो उसे अनिषेकजनन (parthenogenesis) कहा जाता है। उदाहरण-इक्सेरिस डेन्टाटा (Ixertis dentata), टेरेक्साकम एल्बाइडियम (Taraxacum albidium)
• अपबीजाणुता (Apospory) – इसकी खोज रोजनबर्ग (Rosenberg, 1907) ने की। इसमें बीजाण्डकाय (nucellus) की कोई कोशिका एक ऐसे भ्रूणकोष का निर्माण करती है जिसकी प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र द्विगुणित (2n) होते हैं। यदि ऐसे भ्रूणकोष के अण्ड (egg) में नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास होता है तो इसे अनिषेकजनन (parthenogenesis) कहते हैं।
उदाहरण – क्रेपिस (crepis), क्लिफ्टोनिआ (Cliftonia), पार्थिनियम (Parthenium)।