कठिन शब्दार्थ-अँसुआ = आँसू। नैन = नेत्र। ढरि = ढुलककर। जिय = हृदय। करेइ = करते हैं। जाहि = जिसे। निकारो = निकालोगे। गेह = घर। ते = से। कस न = क्या नहीं। भेद = गुप्त बातें। निज = अपने। बिथा = व्यथा, कष्ट। गोय = छिपाकर। अठिलैहैं। = इठलाएँगे, हँसी उड़ाएँगे। बाँटि न लैहैं = बाँटेगा नहीं। कोय = कोई॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। नेत्रों से ढलने वाले आँसुओं को थाम के रखो, नहीं तो ये तुम्हारे मन का हाल उजागर कर देंगे। मन की व्यथा मन में छिपाकर रखना बुद्धिमानी है। ये उपयोगी सीखें कवि ने इन दोहों में दी हैं।
व्याख्या-कवि रहीम कह रहे हैं कि नेत्रों से ढुलकने वाले आँसू मन के दु:ख को प्रकट कर देते हैं। स्वाभिमानी व्यक्ति को मन का दु:ख मन में ही रखना चाहिए। जब तुम किसी को घर से निकालोगे तो वह घर के सभी भेद दूसरों के सामने प्रकट कर देगा। इसलिए रोओ मत धैर्य के साथ दु:ख के दिनों को काट लो।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कवि कहता है-अपने मन की व्यथा को मन में ही छिपाकर रखना बुद्धिमानी है। उसे यदि दूसरों के सामने प्रकट करोगे तो सच्ची सहानुभूति व्यक्त करने वाले कम और उसकी हँसी उड़ाने वाले अधिक मिलेंगे। इससे मन और भी अधिक दुखी होगा।
विशेष-(i) कवि ने मन के दु:ख को मन में ही छिपाकर रखने का जो परामर्श दिया है। वह बड़ा व्यावहारिक है। स्वाभिमानी व्यक्ति को दु:ख के दिन गम्भीरता और धैर्य के साथ चुपचाप बिता लेने चाहिए।
(ii) इसके साथ ही घर की बात घर में ही रहे, उपहास का कारण न बने, इसके लिए सावधानी रखनी चाहिए। घर के सभी सदस्यों के सम्मान और आकांक्षाओं को उचित समर्थन और आदर दिया जाना चाहिए, यह सन्देश भी कवि दे रहा है।
(iii) भाषा सरल तथा शब्द चयन भावों के अनुकूल है।
(iv) कथन शैली परामर्शपरक है।
(v) दृष्टान्त अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।