कठिन शब्दार्थ- बड़े = महान् लोग, विनम्र लोग। बड़ाई = अपनी प्रशंसा। बड़ौ = बढ़ा-चढ़ाकर। बोल = कथन, बात। लाख टका = लाखों रुपये। मोल = मूल्य। बिगरी बात = सम्माने का नष्ट हो जाना। बनै = फिर से सुधारना। लाख करौ = कितना ही प्रयत्न करो। कोय = कोई। फाटे = फट जाने पर। मथे = मथने पर।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। इनमें कवि ने आत्मप्रशंसा करने वाले लोगों पर व्यंग्य किया है तथा व्यक्ति के आत्मसम्मान को बड़ा महत्त्वपूर्ण बताया है।
व्याख्या-कवि कहता है जो लोग वास्तव में गम्भीर स्वभाव वाले और महान होते हैं, वे कभी अपने ही मुख से अपनी बड़ाई नहीं करते। वे अहंकारपूर्वक ऊँची-ऊँची बातें नहीं किया करते। हीरा अत्यन्त मूल्यवान रत्न होता है किन्तु वह कभी नहीं कहता कि उसका मूल्य लाखों में है। उसके गुणों ने ही उसे लोकप्रिय और मूल्यवान बनाया है।
स्वाभिमानी लोग कभी अपनी बात या प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आने देते क्योंकि यदि एक बार समाज में सम्मान कम हो गया तो फिर उसे पुन: प्राप्त कर पाना असम्भवसा हो जाता है। यदि असावधानी से दूध फट जाता है, तो फिर उसे कितना भी मथो, उससे मक्खन नहीं निकल सकता।
विशेष-
(i) अपने मुँह से अपनी प्रशंसा करने वाले लोग ‘बड़बोले और शेखीखोर’ कहे जाते हैं।
(ii) अपने आत्मसम्मान को बचाने का कवि ने संदेश दिया है।
(iii) सरल भाषा में कवि ने बहुत उपयोगी संदेश दिए हैं।
(iv) कथन शैली सचेत करने वाली और उपदेशात्मक है।
(v) दोहों में ‘अनुप्रास’ तथा दृष्टांत अलंकार का प्रयोग हुआ है।