संकलित छंदों में शिवाजी के चरित्र के अनेक गुण प्रकाशित हुए हैं। कवि ने उन्हें कुशल सेनानायक, वीर योद्धा, स्वाभिमानी राजा, प्रजावत्सल शासक और शत्रुओं को अपने प्रताप से आतंकित करने वाले पराक्रमी पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया है।
शिवाजी की विशाल और अनुशासित सेना है, जिसके प्रस्थान करते ही चारों ओर खलबली मच जाती है। वह शत्रुओं पर विजय का विश्वास लिए उत्साह के साथ सेना का नेतृत्व करते हैं।
वह बड़े स्वाभिमानी और निर्भीक नरेश हैं। जब औरंगजेब के दरबार में उनके साथ अपमानजनक व्यवहार होता है तो वह शत्रुओं के बीच होते हुए भी भरे दरबार में अपना आक्रोश व्यक्त करते हैं। बादशाह औरंगजेब को सलाम तक नहीं करते।
कवि उन्हें शेषनाग, दिग्गजों तथा हिमाचल के स्थान पर धरती को धारण करने वाला वास्तविक बली बताता है। उन्हें ईश्वर के स्थान पर संसार का पालन-पोषण करने वाला मानता है।
कवि ने उसे शत्रुओं के प्राणों का अधिकारी सिद्ध करने के लिए उपमाओं की श्रृंखला प्रस्तुत कर दी है।
इस प्रकार शिवाजी अनेक गुणों के भंडार, आदर्श और अनुकरणीय वीर पुरुष सिद्ध होते हैं।