कठिन शब्दार्थ-ठाड़ो = खड़ी। जोग = योग्य। खरौ = खड़ी। छह हजारने = बादशाह द्वारा दिया जाने वाला एक ओटा पद। नियरे = पास। गैरमिसिल = बराबर न होना, अपमानजनक। गुसीले = क्रोधी। गुसा = गुस्सा, क्रोध। सियरे = नम्र, ठंडे। भनते = कहते हैं। बलधन लाग्यौ = उत्तेजित होने लगी। पातसाही = बादशाहत, दरबारी लोग। उड़ाई गए = उड़ गए। जिअरे = प्राण, होश। तमक = क्रोध, आक्रोश। निरखि = देखकर। स्याह = काला। नौरँग = औरंगजेब। सिपाह = सिपाही, सैनिक। पियरे = पीले॥
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि भूषण के कवित्तों से लिया गया है। कवि ने औरंगजेब द्वारा शिवाजी को उचित सम्मान ने दिए जाने पर, उनके क्रोधित होने और औरंगजेब तथा उसके सैनिकों के हाव-भावों का वर्णन किया
व्याख्या-औरंगजेब द्वारा उचित सम्मान दिए जाने के आश्वासन पर शिवाजी औरंगजेब के दरबार में पहुँचे। अपनी वीरता और प्रभाव के कारण जो शिवाजी सबसे ऊपर खड़े होने के योग्य थे, उनको अपमानित करते हुए छह हजारी मनसबदारों के पास खड़ा किया। गया। इसे अत्यन्त अनुचित और अपमानजनक मानते हुए, स्वाभिमानी और क्रोधी शिवाजी के मन में बड़ा रोष छा गया। उन्होंने न तो औरंगजेब को सलाम किया और न नम्र शब्दों में अपना विरोध प्रकट किया। जब अपना अपमान किए जाने से शिवाजी उत्तेजित होने लगे तो उनका क्रोध से लाल मुख तथा रौद्ररूप देख औरंगजेब का मुख तो झेप के मारे काला पड़ गया और इसके सिपाहियों के मुख भय से पीले पड़ गए।
विशेष-
(i) कवि ने शिवाजी को स्वाभिमानी और साहसी वीर पुरुष के रूप में चित्रित किया है।
(ii) औरंगजेब तथा सिपाहियों की प्रतिक्रिया दिखाने में अतिशयोक्ति का प्रयोग हुआ है।
(iii) भाषा में उर्दू शब्दों-‘गैरमिसिल’, ‘गुस्सा’, ‘सलाम’, ‘तमक’, ‘स्याह’ तथा ‘सिपाह’ का प्रयोग हुआ है।
(iv) ‘गैरमिसिल’, ‘गुसीले गुसा’ में अनुप्रास अलंकार तथा “तमक ते ……………………. मुख पियरे।’ में अतिशयोक्ति अलंकार है।