कठिन शब्दार्थ- नील = नीला। गौर = गोरी झिलमिल = रह-रहकर चमकती। देह = शरीर। जाँद = मोहक दृश्य। सूर्योदय = पूर्व दिशा में सूर्य का निकलना।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि शमशेर सिंह की कविता ‘उषा’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सूर्य के निकलने से पहले नीले पूर्वी आकाश में छा रहे सुनहले प्रकाश के दृश्य का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या- कवि कह रहा है कि सूर्योदय से पूर्व के आकाश के दृश्य को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे नीले जल में किसी (सुंदरी) का गोरा और झिलमिलाता शरीर हिल रहा हो।
सूर्य के उदय होते ही आकाश का यह उषा काल का जादू जैसा मोहक दृश्य अदृश्य हो जाता है। सूर्य के प्रकाश में सारे रंग गायब हो जाते हैं।
विशेष-
(i) कवि ने नीले आकाश का नीला सरोवर और सूर्योदय से पूर्व सूर्य की किरणों से उत्पन्न पीली या सुनहली आभा को, एक गोरी रमणी की जल में झिलमिल करती देह बताया है।
(ii) लग रहा है सूर्योदय के समय भी पीली ज्योति रूपी सुंदरी नीले आकाश रूपी जल में स्नान कर रही है। उसकी झिलमिलाती गोरी देह जल के साथ हिलती प्रतीत हो रही है।
(iii) बिम्ब-विधान अद्भुत और मनमोहक है।
(iv) भाषा सरल है। शब्दों का चयन विषय के अनुरूप है।
(v) वर्णन शैली में कवि की शब्द-चित्र अंकित करने की कुशलता प्रमाणित हो रही है।
(vi) काव्यांश में ‘नील जल…………………..हिल रही हो’। कथन में उत्प्रेक्षा अलंकार है।