‘आत्म-परिचय’ कवि बच्चन की एक भावुकता से ओतप्रोत रचना है। कवि ने इस कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं, विचारों और जीवन-दर्शन को व्यक्त किया है।
कविता के आरम्भ में ही कवि, जीवन के कर्तव्यों के प्रति अपनी संवेदनशीलता और लोगों के प्रति स्नेह के वितरण में कवि आलोचकों की चिंता नहीं करता। कवि समाज की उस प्रवृत्ति के प्रति खेद व्यक्त करता है जो केवल मन-सुहाती बातें करने वालों को महत्व देती है।
कवि को यह संसार अपूर्ण प्रतीत होता है। इसलिए वह अपने सपनों के संसार में ही खोए रहते हैं। बच्चन का जीवन-दर्शन गीता से प्रभावित होता है। वह जीवन के सुख-दुख समान भाव से सहन करते हैं। बच्चन के हृदय में किसी की याद कसकती रहती है। वह एक विरोधाभासी जीवन जीने को विवश हैं। उनकों ऊपर से हँसना और भीतर से रोना पड़ता है।
कवि का स्पष्ट मत है कि ज्ञान और बुद्धिमत्ता के अहंकार को त्यागे बिना सत्य का साक्षात्कार नहीं हो सकता। कवि की शीतल वाणी में भी आग छिपी रहती है। कवि अपने जीवन से संतुष्ट है। उसे भूपतियों के राजमहल नहीं चाहिए।
कवि अपनी पहचान एक कवि के रूप में नहीं बल्कि एक ‘नए दीवाने’ के रूप में चाहता है।
अंत में कवि मस्ती के साथ जीवन बिताने का संदेश देते हुए अपनी भावनाओं के प्रवाह को विराम देता है।