‘आत्म-परिचय’ यद्यपि एक भाव-प्रधान रचना है फिर भी कवि ने सहज भाव से कविता को सजाने में रुचि ली है।
कविता की भाषा परिमार्जित, प्रवाहपूर्ण, भावानुकूल तथा लक्षणाशक्ति से सम्पन्न है। पूरी कविता में कवि ने अपना परिचय भावात्मक शैली में दिया है। कविता आत्म-प्रकाशन शैली का सुंदर नमूना है।
“कर दिया……………..फिरता हूँ” इन पंक्तियों में लक्षणा का सौन्दर्य मन को गहराई से छूता है। ‘स्नेह सुरा’, ‘स्वप्नों का संसार’, ‘भव-सागर’ में रूपक अलंकार है। और, ‘और’ में यमक, स्नेह-सुरा, मन-मौजों, क्यों कवि कहकर आदि में अनुप्रास अलंकार है। ये सभी अलंकार सहज भाव से आए हैं।
कविता की सबसे आकर्षक विशेषता उसकी विरोधाभासी उक्तियाँ हैं। ‘मार और प्यार’ को साथ-साथ निभाना, उन्मादों में अवसाद लिए फिरना, बाहर हँसाती भीतर रुलाती, रोदन में राग लिए फिरना, शीतल वाणी में आग लिए फिरना, आदि ऐसी ही परस्पर विरोधी उक्तियाँ हैं।
कविता शांत रस का आभास कराती है। छंद भावनाओं के प्रवाह के अनुकूल हैं।
इस प्रकार ‘आत्म-परिचय’ कला की दृष्टि से भी एक सुंदर रचना है।