कठिन शब्दार्थ-रोया = अपनी पीड़ा व्यक्त की। गाना = कविता, गीत। फूट पड़ा = मन की वेदना प्रकट की। छंद बनाना = कविता रचना। दीवाना = मस्ती से जीने वाला।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि चाहता है कि संसार उसे एक कवि के रूप में नहीं एक मस्ती से जीने वाले व्यक्ति के रूप अपनाए।
व्याख्या-कवि कहता है कि जब वह अपने मन की पीड़ा को प्रकट करता है तो लोग उसे गीत कहने लगते हैं। जब उसके हृदय में भरी वेदना गीत बन कर फूट पड़ी तो लोग कहने लगे कि वह काव्य रचना कर रहा है। लोग उसको कवि मानकर उसका सम्मान करना चाहते हैं किन्तु कवि को अपनी यह पहचान स्वीकार नहीं है। वह तो चाहता है कि लोग उसे एक नए प्रेम दीवाने के रूप में जाने। छंदों के रूप में उसकी वेदना ही फूट-फूटकर रोई है। वह कवि नहीं बल्कि एक पागल-प्रेमी है।
विशेष-
(i) कवि रोता है तो उसका रुदन उसके गीतों में प्रकट होता है। लोगों को भ्रम होता है कि वह गीत गा रहा है। उसके हृदय के रुदन को लोग उसका गाना समझ लेते हैं। मैं फूट पड़ा’ से कवि का तात्पर्य है कि उसके मन की पीड़ा ही शब्दों का रूप धारण करके बरबस बाहर आ जाती है। वह उसे रोक नहीं पाता॥
(ii) कवि नहीं चाहता कि लोग उसे कवि माने । वह तो प्रेम-दीवाना है। वास्तव में वह स्वयं को कवि नहीं मानता क्योंकि वह कविता की रचना का प्रयास ही नहीं करता। उसके मन में स्थित विश्व-प्रेम के प्रति दीवानगी के भाव बिना किसी प्रयास के स्वत: ह। हृदय से बाहर आ जाते हैं।
(iii) कवि की गाथा भावों को सटीकता से व्यक्त करने में समर्थ है। ‘फूट पड़ना’, ‘छंद बनाना’, मुहावरे कवि के कथन को प्रभावी बना रहे हैं।
(iv) ‘क्यों कवि कहकर’ में अनुप्रास अलंकार है।