कठिन शब्दार्थ- वेश = रूप। मादकता = मस्ती, मोहकता। नि:शेष = सारी, सम्पूर्ण । झूम = प्रसन्न होकर। झुके = सम्मान दे, महत्त्व स्वीकार करे। लहराए = मस्त हो जाए। सन्देश = विचार, मन की बात॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुते पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता : आत्म-परिचय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सारे जगत को मस्ती भरे प्रेम का संदेश दे रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है कि दीवानगी केवल इसके मन में ही नहीं है, उसकी वेशभूषा से भी दीवानापन झलकता है। उसका सारा जीवन प्रेम और मस्ती से भरा हुआ है। कवि जहाँ भी जाता है, वहाँ लोगों को मस्त रहने और जीवन को अपने अनुसार जीने का संदेश देता है। उसका संदेश लोगों को गहराई से प्रभावित करता है और उसको झूमने, झुकने और मस्ती से लहराने के लिए बाध्य कर देता है।
विशेष-
(i) काव्यांश में लेखक ने जीवन को सहज मस्ती का और सबके प्रति प्रेम-भाव बनाये रखकर जीने का संदेश दिया है।
(ii) संसार के झंझट तो चलते रहेंगे, लेकिन व्यक्ति को मस्ती और प्रेम से जीवन बिताना चाहिए। सुख और दुख दोनों को समान भाव से ग्रहण करना चाहिए। काव्यांश से यह संदेश भी प्राप्त होता है।
(iii) भाषा भावों के अनुरूप और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) कथन-शैली, व्यक्तियों के मन में सहज जीवन की प्रेरणा देने वाली है।
(v) ‘झूम, झुके’ में अनुप्रास अलंकार है।