कठिन शब्दार्थ- पावर = शक्ति। सबूत = प्रमाण। माल-टाल = सम्पत्ति। खाक = मिट्टी, राख। खाक पावर है = महत्त्वहीन है, बेकार है। माल-असबाब = सामान। पर्चेजिंग पावर = क्रय शक्ति। रस = आनन्द। फिजूल = व्यर्थ। बहाना = नष्ट करना। दरकार = जरूरी। मन गर्व से फूला रहना = मन में घमण्ड अनुभव करना।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस निबन्ध के लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। लेखक कहता है कि बाजार से सामान खरीदने में पैसा महत्वपूर्ण है। पैसे में चीजों को खरीदने की ताकत होती है। बिना धन के चीजें नहीं खरीदी जा सकतीं।
व्याख्या-लेखक कहता है कि पैसा पावर है अर्थात् धन में क्रय शक्ति होती है। पैसे की इस शक्ति का प्रमाण उस सामान को देखकर मिलता है, जो किसी आदमी के पास जमा होता है। इसके बिना पैसे की ताकत को प्रमाणित नहीं किया जा सकता। धन का पता किसी के बैंक खाते में जमा राशि को देखकर किया जा सकता है। लेकिन सामान-सट्टा और मकान-कोठी तो बिना देखे ही सबको दिखाई देते हैं। पैसे में जो क्रय शक्ति होती है, उसका प्रयोग करके अर्थात् पैसे को खर्च करके सामान खरीदने से उसकी शक्ति का आनन्द मिलता है। पैसे की शक्ति का आनन्द लेने के लिए खरीदारी करना जरूरी नहीं है। संयमी लोगों को पैसा पास होने से ही खुशी मिल जाती है।
वे बेकार की चीजें नहीं खरीदते। अनावश्यक चीजें खरीदकर इकट्ठा करना वे बेकार समझते हैं और उनमें अपना धन नष्ट नहीं करते। वे समझदार होते हैं। वे अपना धन एकत्र करते रहते हैं, जोड़ते रहते हैं। उसको खर्च करने में संयम बरतते हैं। पैसे की शक्ति की परीक्षा करने के लिए वे उसको खर्च करने की जरूरत नहीं समझते। उनको तो उसकी ताकत पर पहले ही पूरा विश्वास होता है। उनके पास पैसा है-यह मानकर ही वे सन्तुष्ट रहते हैं, प्रसन्न रहते हैं और गर्व की भावना को मन में अनुभव करते हैं।
विशेष-
1. भाषा तत्सम शब्दों, उर्दू, अंग्रेजी शब्दों तथा मुहावरों के प्रयोग के कारण समृद्ध है। उसमें विषयानुकूलता तथा प्रवाह है।
2. शैली में चुटीलापन है। वह विचारात्मक है।
3. लोग पैसे की शक्ति का प्रमाण अपने पास बहुत-सी सामान और सम्पत्ति एकत्र करके देते हैं।
4. संयमी अर्थात् मितव्ययी लोग पैसा खर्च नहीं करते, उसको जोड़कर ही सन्तुष्ट रहते हैं।