कठिन शब्दार्थ- भोला = सरल, सीधा-सादा। नाचीज = महत्वहीन। श्रेणी = स्तर। अपदार्थ = मामूली। वार = प्रहार, हमला॥ अडिग = दृढ़। निर्मम = निर्दय। आहत = घायल। बिलखता = रोता हुआ। कुंठित = प्रभावहीन।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ से संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक विचारात्मक निबन्ध से उधृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। लेखक के पड़ोस में एक सज्जन रहते हैं। वह चूरन बेचते हैं तथा भगत जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। चूरनवाले भगतजी पर बाजार का जादू नहीं चल पाता है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि उसको यह नहीं पता कि चूरन वाले वह सीधे-सरल भगत जी कुछ पढ़े-लिखे हैं या नहीं। ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें तो उनको पता होंगी ही नहीं। बड़ी-बड़ी बातें जानने वाले लेखक तथा पाठक की दृष्टि में चूरन वाला भगत एक मामूली आदमी ही है। लेखक स्वयं को पाठकों की तरह ही विद्वानों के स्तर का व्यक्ति मानता है। लेकिन वह यह मानने को तैयार नहीं कि उस मामूली आदमी भगत को वह प्राप्त है जो लेखक के स्तर के लोगों में से बहुत कम लोगों को प्राप्त होता है। भगत पर बाजार के आकर्षण का प्रभाव नहीं होता। बाजार में चीजें सजी रहती हैं, पर भगत को वे खरीदारी करने के लिए लालायित नहीं करतीं। उसका मन उनको लेने के लिए नहीं ललचाता। पैसा स्वयं उससे निवेदन करता है, वह उसके पास आना चाहता है परन्तु भगत उसको लेना नहीं चाहता। पैसा का साग्रह निवेदन भी उसको द्रवित नहीं करता। वह उसको निर्ममतापूर्वक अस्वीकार कर देता है। मैं बड़ा शक्तिशाली हूँ। मैं अत्यन्त आकर्षक हूँ-पैसे का यह घमण्ड उसकी दृढ़ता के आगे टूट जाता है। वह व्याकुल होकर रोता है। ऐसे दृढ़ मनुष्य के सामने धन की व्यंग्य शक्ति प्रभावहीन ही रहती है। वह निस्तेज होकर लज्जित हो जाता है।
विशेष-
1. भगत जी के लिए बाजार का महत्त्व इतना ही है कि वहाँ से उनको अपनी जरूरत की चीजें मिलती हैं। उसमें प्रदर्शित अन्य चीजें उनके लिए बेकार हैं।
2. भगत जी संग्रह के लिए नहीं आवश्यकता पूर्ति भर के लिए धन कमाना पसन्द करते हैं। धन का लालच उनमें नहीं है।
3. खूब पढ़े-लिखे लोगों में भी भगत के जैसे गुण नहीं होते।
4. भाषा सहज विषयानुकूल तथा प्रवाहपूर्ण है। शैली वर्णनात्मक तथा विचारात्मक है।