गौरा, जिसे महादेवी ने अपनी छोटी बहिन से प्राप्त किया था, जो प्रियदर्शन थी, करुणा की साकार प्रतिमा थी। संवेदनशील थी। जिसकी आँखों में आत्मीयता और आत्मविश्वास था, उसकी निर्मम मृत्यु हुई। स्वार्थी ग्वाले ने, जिसे महादेवी ने गौरा का दुग्ध दोहन करने के लिए रखा था, उसने गुड़ में सुई मिलाकरे उसे खिला दिया। वह धीरे-धीरे शिथिल और दुर्बल होती गई। उसने कष्ट सहा । अन्त में मृत्यु की गोद में सदा के लिए सो गई। ऐसी अमानवीयता का कुफल उस भोले पशु को सहन करना पड़ा। यह यातना उसे सहन करनी पड़ी। जिसकी पीड़ा महादेवी को हुई।