गौरा की आँखें धीरे-धीरे निष्प्रभ हो चलीं और सेब का रस कण्ठ के नीचे नहीं उतरता था। तब महादेवी ने सोचा कि अन्तिम समय में वे गौरा के पास रहें। वे रात और दिन में कई-कई बार उसे देखने जात। अन्त में ब्रह्ममुहूर्त में जब महादेवी उसे देखने गईं तो उसने सदा की तरह अपना सिर उठाकर महादेवी के कन्धे पर रखा और कुछ समय बाद उसके प्राण पखेरू उड़ गये। उसका सिर पत्थर जैसा भारी होकर जमीन पर सरक गया। महादेवी पर इसका बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। वे भावुक हो उठीं। गौरांगिनी को ले जाते समय उनके हृदय में करुणा का समुद्र उमड़ पड़ा। उनके मन में भाव आया यह कैसा गोपालक देश है जहाँ गाय की ऐसी निर्मम हत्या की जाती है।