कठिन शब्दार्थ – पाछै = पीछे। लागा जाइ था = (पीछे-पीछे) चला जा रहा था, अंधानुकरण कर रहा था। लोक वेद = लौकिक और वैदिक परम्पराएँ। आगै मैं = आगे चलकर।मिल्या = मिला। दीपक = ज्ञानरूपी दीपक। बूढ़ा (बूड़ा) = डूबने वाला था। ऊबरा = बच गया। गुरु की लहरि = गुरु की कृपारूपी लहर। चमंकि = चमकने पर, चौंकने पर। भेरा = बेड़ा या नाव। जरजरा = जर्जर, टूटा-फूटा। उतरि पड़े = उतर पड़ा। फरंकि = फुर्ती से, तुरंत।।
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीर के दोहों से लिए गए हैं। इन दोहों में कबीर, गुरु को ज्ञान प्रदाता स्वीकार करते हुए उनकी कृपा से सही मार्ग प्राप्त होने की बात स्वीकार रहे हैं। गुरु कृपा से ही वह संसार-सागर में डूबने से बचे हैं। व्याख्या-कबीर कहते हैं कि वह भी सामान्य लोगों की तरह, सांसारिक और वैदिक परम्पराओं का आँख बंद करके अनुसरण कर रहे थे। परन्तु आगे चलने पर उन्हें सद्गुरु मिले। उन्होंने कृपा करके उनके हाथ में ज्ञानरूपी दीपक पकड़ा दिया। ज्ञानदीप के प्रकाश में ही वह जान पाए कि वह तो अज्ञान के मार्ग पर जा रहे थे।
इस प्रकार गुरुकृपा से ही वह ईश्वर भक्ति के सीधे-सादे मार्ग का दर्शन पा सके। कबीर कहते हैं कि वह भी अज्ञानी जनों की भाँति अहंकार रूपी बेड़े पर सवार होकर संसार-सागर से पार होने की चेष्टा कर रहे थे। अहंकार का जर्जर बेड़ा उन्हें भवसागर-माया-मोह आदि में डुबोने ही वाला था, परन्तु गुरुकृपा रूपी लहर ने टक्कर देकर उन्हें चौंका दिया, सचेत कर दिया। गुरु कृपा के प्रकाश में ही उनको ज्ञात हुआ कि वह अन्धकार का बेड़ा तो नितान्त जर्जर स्थिति में था और वह डूबने ही वाले थे। अत: वह तुरन्त उस पर से उतर पड़े। उन्होंने अहंकार का परित्याग करके गुरु द्वारा प्रदर्शित मोक्ष मार्ग को अपना लिया।
विशेष –
- भाषा में विभिन्न भाषाओं के शब्दों को मुक्त भाव से प्रयोग हुआ है।
- शैली उपदेशात्मक है।
- गुरु के बिना ज्ञान तथा संसार से मुक्ति मिलना सम्भव नहीं है, यह बताया गया है।
- लोकाचार और वैदिक कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर, परमात्मा की सहज भक्ति करने से ही मनुष्य का उद्धार हो सकता है। यह मत व्यक्त किया गया है।
- दीपक दीया हाथ में लक्षणा शक्ति का सौन्दर्य है।