कठिन शब्दार्थ – प्रभु = राम। कौतुक ही = खेल-खेल में ही। पाथोधि = समुद्र। कर = हाथ। गहि = पकड़कर। निज = अपने। आनी = लाई। मनोहर = मन लुभाने वाली। नाइ = झुकाकर। अंचलु रोपा = आँचल फैला दिया। परिहरि = त्याग कर। कोण = क्रोध। बयरु = बैर। सकिअ = सको। अंतर = भेद, भिन्नती। खलु = निश्चय। खद्योत = जुगनू (चमकने वाला पतंगा)। दिनकरहिं = सूर्य में। अतिबल = अत्यंत बलवान। मधु-कैटभ = दो दैत्य जिनको भगवान नारायण ने मारा था। तासु = उनका। काल = समय। करम = कर्म या भाग्छ। जिब = जीवन। नाइ = झुकाकर। पद = चरण। माथ = मस्तक। सुत = पुत्र। राज = राज्य। समर्पि = सौंपकर। भजिउ = भजन करो।
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस अंश में मंदोदरी राम को विष्णु का अवतार मानकर उनके बल का परिचय कराते हुए रावण को समझा रही है कि वह राम से बैर न करके, सीता को लौटा दे।
व्याख्या – मंदोदरी को पता चला कि राम खेल ही खेल में समुद्र पर पुल बनाकर लंका आ पहुँचे हैं तब वह पति की सुरक्षा के बारे में बड़ी चिंतित हुई। तब पति रावण का हाथ पकड़कर अपने भवन में ले आई और बड़ी मनमोहक वाणी में कहने लगी। पहले उसने पति के चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम किया और फिर आँचल फैलाकर कहने लगी-हे प्रिय ! क्रोध त्याग कर मेरी बात सुनिए। हे स्वामी बैर उसी से करना चाहिए जिसे बुद्धि और बल से जीती जा सके। आप में और राम में वैसा ही अंतर है जैसा एक जुगनू और सूर्य में होता है। क्षणभर को चमकने वाला जुगनू भला सारे विश्व को प्रकाशित करने में सूर्य से समानता कैसे कर सकता है।
राम वही नारायण हैं जिन्होंने मधु और कैटभ नाम के अत्यन्त बलवान दैत्यों को मारा था। इन्हीं ऋषि कश्यप की पत्नी दिति के अत्यन्त पराक्रमी पुत्रों दैत्यों का संहार किया था। जिन्होंने दैत्यराज बलि को वामन अवतार लेकर बाँधा था और परशुराम के रूप में सहस्रबाहु नामक अत्यन्त बलवान राजा को मारा। वही विष्णु अथवी नारायण, राम के रूप में पृथ्वी का भार हरने को अवतरित हुए हैं। हे नाथ ! उनका विरोध मत करो जिनके हाथों में सभी का काल, कर्म और जीवन है। मेरी बात मानकर राम के चरणकमलों में सिर रखकर क्षमा माँगते हुए, जानकी को उन्हें सौंप दीजिए। अब राज्य का मोह त्याग कर पुत्र को राज्यसिंहासन सौंप दीजिए और वन में जाकर भगवान राम का नाम जपते हुए अपना परलोक बनाइए।।
विशेष –
- बुद्धि और बल दोनों में राम का पक्ष प्रबल है। खर और दूषण जैसे पराक्रमी राक्षसों के बध से राम का बल और समुद्र पर सेतु बना लेने से मंदोदरी को राम की बुद्धि का पता चल गया है।
- मंदोदरी पतिव्रता पत्नी है। पति के मंगल के लिए यत्न करना उसका धर्म है। कवि ने मंदोदरी को एक आदर्श पत्नी के रूप में प्रस्तुत किया है।
- मंदोदरी एक विदुषी नारी भी है। उसे राजधर्म का भी ज्ञान है। वह रावण से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश का अनुरोध भी कर रही है।
- साहित्यिक अवधी भाषा और तार्किक शैली के द्वारा कवि ने प्रसंग को बड़ा प्रभावशाली बना दिया है।
- “पिय परिहरि कोपा’, ‘खलु खद्योत’ तथा ‘काल करम’ में अनुप्रास अलंकार है।