NCERT Solutions Class 10, Hindi, Kritika, पाठ- 1, माता का आँचल
लेखक - शिवपूजन सहाय
प्रश्न अभ्यास
1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर
यह बात सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं करते थे, उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। परंतु विपदा के समय उसे लाड़ की जरूरत थी, अत्यधिक ममता और माँ की गोदी की जरूरत थी। उसे अपनी माँ से जितनी कोमलता मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि संकट में बच्चे को माँ या नानी याद आती है, बाप या नाना नहीं। माँ का लाड़ घाव को भरने वाले मरहम का काम करता है।
2. आपके विचार से भोलनाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर
क्षण में रोना क्षण में हँसना बच्चों का स्वभाव होता है । भोलानाथ भी बच्चे की स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रूचि लेता है। उसे अपनी मित्र मंडली के साथ तरह-तरह की क्रीड़ा करना अच्छा लगता है। वे उसके हर खेल व हुदगड़ के साथी हैं। अपने मित्रों को मजा करते देख वह स्वयं को रोक नहीं पाता। इसलिए रोना भूलकर वह दुबारा अपनी मित्र मंडली में खेल का मजा उठाने लगता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।
3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर
बचपन किसे याद नहीं है सब को अपने-अपने बचपन की यादें और खेल याद आ जाते है | उसी प्रकार मुझे भोलानाथ और उसके साथी जब−तब खेलते−खाते समय तुकबंदी करते थे , उजे अपने बचपन की याद आ गई |
जैसे -
- अटकन-बटन दही चटाके।
- अर्रक-बर्रक दूध की धार।
- चटोर भाग गया पल्ली पार।।
- अक्कड-बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी नब्बे पूरे सो|
- पोशम्पा भई पोशम्पा |
4. भोलनाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर
भोलानाथ और उसके साथी खेल के लिए आँगन व खेतों में पड़ी चीज़ों को ही अपने खेल का आधार बनाते हैं | उनके लिए मिट्टी के बर्तन, पत्थर, पेड़ों के फलें, गीली मिट्टी, घर के छोटे-मोटे सामान आदि वस्तुएँ होती थी जिनसे वह खेलकर खुश रहते थे | परंतु आज के बालक जो खेल खेलते हैं वे इनसे पूर्णतः भिन्न हैं | हमारे खेलने के लिए क्रिकेट का सामान, किचेन सेट, डॉक्टर सेट, तरह-तरह के वीडियो गेम, व कंप्यूटर गेम आदि बहुत सी चीज़ें हैं जो इनकी तुलना में एकदम अलग है | भोलानाथ जैसे बच्चों की खेलने की सामग्री आसानी से व सुलभता से बिना मूल्य खर्च किये ही प्राप्त हो जाती हैं जबकी आज के बच्चों की खेल सामग्री बाज़ार से खरीदना पड़ता है |
5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर
पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते भागते हैं और माँ की गोद में छिपकर सहारा लेते हैं-यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीतर तक हिला देता है। | इस पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे भोज, शादी या खेती का खेल खेलते हैं, बच्चे का पिता बच्चा बनकर उनमें शामिल हो जाता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों को गुदगुदा देता है।
6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर
तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति में किसी प्रकार के दिखावे अभाव था ।लोग बहुत ही सीधे-सादे हुआ करते थे ।लोग परस्पर मिल-जुल कर रहा करते थे।किसी भी पर्व -त्योहार को पूरे उत्साह के साथ मनाते थे ।गाँव में बचपन से खेल - खेल में ही वैसी सभी बातों को सिखाया जाता है जिससे बच्चे बड़े होकर अपने कार्य-क्षेत्र में प्रवीण हो सकें और व्यवहारिक भी बन सकें।
आज की ग्रामीण संस्कृति में काफी बदलाव आए हैं । अब गाँव में दूषित राजनीति के पाँव पसारने के कारण लोगों के अन्दर जाति,धर्म,सम्प्रदाय और अमीर-गरीब जैसे भेद पनप गए हैं ।आज के गाँव में लगभग सारी शहरी सुविधाएँ लोगों को प्राप्त हो रही हैं। बिजली,पानी,स्कूल,अस्पताल,सड़क और खेती के वैज्ञानिक संसाधन उपलब्ध हैं।
7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर
बचपन में हमें भी सुबह सवेरे मां बड़े प्यार से जगाया करती थी। जल्दी-जल्दी नहला -धुलाकर तथा साफ कपड़े बनाकर फिर हमें खेलने के लिए भेज देती थी। पिताजी हमें अपने कंधे पर बैठाकर दूर तक झुलाया करते थे।
कभी-कभी आंगन में अपनी पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह झुला दिया करते थे। कभी-कभी वह हमें अपने साथ लेकर नदी में नहाने के लिए जाते थे और अपनी गोदी में लेकर पानी में खूब डुबकिया लगाते थे। कई बार पिताजी हमें अपने साथ खेतों में घुमाया करते थे।
मां अपने आंचल में बिठा कर हमें दूध पिलाती थी और भोजन खिलाते थी। पेट भर जाने पर भी हमसे और खाने के लिए कहती थी। बच्चों के साथ बाहर खेलने जाते तो बड़े प्यार से समझा बुझाकर भेजती थी । अनेक नसीहतें देती थी।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।।
8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
पिता का अपने साथ शिशु को नहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेना, माथे पर तिलक लगाना फिर कंधे पर बैठाकर गंगा तक ले जाना और लौटते समय पेड़ पर बैठाकर झूला झुलाना कितना मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है।
पिता के साथ कुश्ती लड़ना, बच्चे के गालों का चुम्मा लेना, बच्चे के द्वारा पूँछे पकड़ने पर बनावटी रोना रोने का नाटक और शिशु को हँस पड़ना अत्यंत जीवंत लगता है।
माँ के द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खिलाना, उबटना, शिशु का शृंगार करना और शिशु का सिसकना, बच्चों की टोली को देख सिसकना बंद कर विविध प्रकार के खेल खेलना और मूसन तिवारी को चिढ़ाना आदि अद्भुत दृश्य उकेरे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव की याद दिलाते हैं।
9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर
लेखक ने इस कहानी का नाम माँ का आँचल उपयुक्त रखा है। इस कहानी में माँ के आँचल की सार्थकता को समझाने का प्रयास किया गया है। भोलानाथ को माता व पिता दोनों से बहुत प्रेम मिला है। उसका दिन पिता की छत्रछाया में ही शुरू होता है। पिता उसकी हर क्रीड़ा में सदैव साथ रहते हैं, विपदा होने पर उसकी रक्षा करते हैं। परन्तु जब वह साँप को देखकर डर जाता है तो वह पिता की छत्रछाया के स्थान पर माता की गोद में छिपकर ही प्रेम व शान्ति का अनुभव करता है। माता उसके भय से भयभीत है, उसके दु:ख से दुखी है, उसके आँसु से खिन्न है। वह अपने पुत्र की पीड़ा को देखकर अपनी सुधबुध खो देती है। वह बस इसी प्रयास में है कि वह अपने पुत्र की पीड़ा को समाप्त कर सके। माँ का यही प्रयास उसके बच्चे को आत्मीय सुख व प्रेम का अनुभव कराता है।
इसके लिए एक उपयुक्त शीषर्क और हो सकता था माँ की ममता क्योंकि कहानी में माँ का स्नेह ही प्रधान है।
10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर
- शिशु की जिद में भी प्रेम का प्रकटीकरण है।
- शिशु और माता-पिता के सानिध्य में यह स्पष्ट करना कठिन होता है कि माता-पिता का स्नेह शिशु के प्रति है या शिशु का माता-पिता के प्रति दोनों एक ही प्रेम के सम्पूरक होते हैं।
- शिशु की मुस्कराहट, शिशु को उनकी गोद में जाने की ललक उनके साथ विविध | क्रीड़ाएँ करके अपने प्रेम के प्रकटीकरण करते हैं।
- माता-पिता की गोद में जाने के लिए मचलना उसका प्रेम ही होता है। इस प्रकार माता-पिता के प्रति शिशु के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है।
11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर
हमारा बचपन इस पाठ में वर्णित बचपन से पूरी तरह भिन्न है। हमें अपने पिता का ऐसा लाड़ नहीं मिला। मेरे पिता प्रायः अपने काम में व्यस्त रहते हैं। प्रायः वे रात को थककर ऑफिस से आते हैं। वे आते ही खा-पीकर सो जाते हैं। वे मुझसे प्यार-भरी कुछ बातें जरूर करते हैं। मेरे लिए मिठाई, चाकलेट, खिलौने भी ले आते हैं। कभी-कभी स्कूटर पर बिठाकर घुमा भी आते हैं, किंतु मेरे खेलों में इस तरह रुचि नहीं लेते। वे हमें नंग-धडंग तो रहने ही नहीं देते। उन्हें मानो मुझे कपड़े से ढकने और सजाने का बेहद शौक है। मुझे बचपन में ए-एप्पल, सी-कैट रटाई गई। हर किसी को नमस्ते करनी सिखाई गई। दो ढाई साल की उम्र में मुझे स्कूल भेजने का प्रबंध किया गया। तीन साल के बाद मेरे जीवन से मस्ती गायब हो गई। मुझे मेरी मैडम, स्कूल-ड्रेस और स्कूल के काम की चिंता सताने लगी। तब से लेकर आज तक मैं 90% अंक लेने के चक्कर में अपनी मस्ती को अपने ही पाँवों के नीचे रौंदता चला आ रहा हूँ। मुझे हो-हुल्लड़ करने का तो कभी मौका ही नहीं मिला। शायद मेरा बचपन बुढ़ापे में आए? या शायद मैं अपने बच्चों या पोतों के साथ खेल कर सकें।