NCERT Solutions Class 8, Hindi, Vasant, पाठ- 5, क्या निराश हुआ जाए
लेखक - हजारी प्रसाद दिवेदी
प्रश्न अभ्यास
आपके विचार से
1. लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं हैं। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर
लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन करते हुए कहा है कि उसने धोखा भी खाया है परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। पर उसका मानना है कि अगर वो इन धोखों को याद रखेगा तो उसके लिए विश्वास करना बेहद कष्टकारी होगा और ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण उनकी सहायता की है, निराश मन को ढाँढस दिया है और हिम्मत बँधाई है।
टिकट बाबू द्वारा बचे हुए पैसे लेखक को लौटाना, बस कंडक्टर द्वारा दूसरी बस व बच्चों के लिए दूध लाना आदि ऐसी घटनाएँ हैं। इसलिए उसे विश्वास है कि समाज में मानवता, प्रेम, आपसी सहयोग समाप्त नहीं हो सकते।
पर्दाफाश
1. दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर
दोषों का पर्दाफ़ाश करना तब बुरा रूप ले सकता है जब हम किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लेते है। हमारा दूसरों के दोषोद्घाटन को अपना कर्त्तव्य मान लेना सही नहीं है। हम यह नहीं समझते कि बुराई समान रूप से हम सबमें विद्यमान है। यह भूलकर हम किसी की बुराई में रस लेना आरम्भ कर देते हैं और अपना मनोरंजन करने लग जाते हैं। हमें करना चाहिए बल्कि उनके अच्छाईओं को भी सरहाना चाहिए।
2. आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल 'दोषों का पर्दाफ़ाश' कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर
इस प्रकार के पर्दा फाश से समाज में व्याप्त बुराईयों से, अपने आस-पास के वातावरण तथा लोगों से अवगत हो जाते हैं और इसके कारण समाज में जागरूकता भी आती है साथ ही समाज समय रहते ही सचेत और सावधान हो जाता हैं।
कारण बताइए
निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ? आपस में चर्चा कीजिए, जैसे - "ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।" परिणाम – भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
1. "सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।" ____________
उत्तर
परिणाम- लोगों की सच्चाई में आस्था नहीं रह जाएगीचारों ओर झूठ का बोलबाला होगा
2. "झूठ और फरेब का रोज़गार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।" ____________
उत्तर
परिणाम- ईमानदारी लुप्त होती जाएगी तथा भ्रष्टाचार बढ़ेगा
3. "हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।" ____________
उत्तर
परिणाम- लोग एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करेंगेसच्चे व्यक्ति पर भी विश्वास करना कठिन हो जाएगा
दो लेखक और बस यात्रा
आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ाइससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैंयदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए
उत्तर
दो लेखक और बस यात्रा-इससे पहले पाठ में लेखक हरिशंकर परसाई द्वारा अपनी बस यात्रा का वर्णन किया गया हैजिसमें बस खराब होने के कारण वे समय पर गंतव्य तक पहुँचने की आशा छोड़ देते हैंइस पाठ में लेखक यात्रा करते हुए कुछ नया एवं अलग अनुभव करता हैये दोनों लेखक जब मिलते तो कुछ इस तरह बातचीत करते
हरि – नमस्कार भाई हजारी, कहो कैसे हो?
हजारी – नमस्कार मैं तो ठीक हूँ, पर तुम अपनी सुनाओकुछ सुस्त से दिखाई दे रहे होक्या बात है?
हरि – भाई क्या बताऊँ, परसों मैंने ऐसी बस से यात्रा की जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगाउसकी थकान अब तक नहीं उतरी है
हजारी – क्या उस बस में सामान रखने की जगह नहीं थी या सामान ज्यादा था जिसे लेकर तुम बैठे रहे?
हरि – यार मेरे पास सामान तो था ही नहींवह बस बिल्कुल टूटी-फूटी, खटारा थीवह किसी बुढ़िया जैसी कमजोर तथा जर्जर हो रही थी
हजारी – टूटी-फूटी बस से थकान कैसी? तुम तो सीट पर बैठे थे न
हरि – मैं तो सीट पर बैठा था पर जब बस स्टार्ट हुई और चलने लगी तो पूरी बस बुरी तरह हिल रही थीलगता था कि हम इंजन पर बैठे हैंबस का खिड़कियों के काँच टूटे थेजो बचे थे वे भी गिरकर यात्रियों को चोटिल कर सकते थेमैं तो खिड़की से दूर बैठ गयाआठ-दस मील चलते ही हम टूटी सीटों के अंदर थेपता नहीं लग रहा था कि हम सीट पर हैं या सीटें हमारे ऊपर
हजारी – क्या तुम अपने गंतव्य पर समय से पहुँच गए थे?
हरि – ऐसी बस से भला समय पर गंतव्य तक कैसे पहुँचा जा सकता हैबस रास्ते में दसों बार खराब हुईउसकी लाइट भी खराब हो गई थीमैंने तो यह सोच लिया था कि जिंदगी ही इसी बस में बीत जाएगीमैंने तो गंतव्य पर पहुँचने की आशा छोड़कर आराम से मित्रों के साथ गपशप करने लगातुम अपनी सुनाओ बड़े खुश दिखाई दे रहे हो क्या बात है?
हजारी – मित्र मैंने भी तो कल बस की यात्रा की थी, और मेरी भी यात्री अविस्मरणीय है, पर तुम्हारी यात्रा से अलग है
हरि – कैसे?
हजारी – मैं बस में अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ यात्रा कर रहा था कि एक सुनसान जगह पर हमारी बस खराब हो गई
हरि – सुनसान जगह पर क्या बस को लुटेरों ने लूट लिया?
हजारी – नहीं हमारे बस का कंडक्टर एक साइकिल लेकर चलता बना
हरि – चलता बनी कहाँ चला गया वह? कहीं वह लुटेरों से तो नहीं मिलाथा?
हजारी – मित्र सभी यात्री ऐसा ही सोच रहे थेकुछ नौजवानों ने ड्राइवर को अलग ले जाकर बंधक बना लिया कि यदि लुटेरे आते हैं तो पहले इसे ही मार दें
हरि – फिर क्या हुआ? क्या लुटरे आ गए?
हजारी – नहीं लुटरे तो नहीं आए, पर कंडक्टर दूसरी बस लेकर आयासाथ में मेरे बच्चों के लिए दूध और पानी भी लायाउस बस से हम सभी बारह बजे से पहले ही बस अड्डे पहुँच गए
हरि – बहुत अच्छा कंडक्टर था वह तोऐसे कंडक्टर कम ही मिलते हैंपर उस ड्राइवर का क्या हुआ?
हजारी – हम सभी ने कंडक्टर को धन्यवाद दिया और ड्राइवर से माफी माँगीहमने उसे समझने में भूल कर दी थी
हरि – मित्र हम सभी इंसान हैंजाने-अनजाने में हमसे भी गलतियाँ हो जाती हैंहमें सभी को अविश्वास की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए
हजारी – मित्र यह हमारा दोष नहीं हैसमाज में गिरते मानवीय मूल्यों का परिणाम है यहहर किसी को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाने लगा है
हरि – अच्छा, अब मैं चलता हूँफिर मिलेंगे, नमस्कार।
हजारी – नमस्कार