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NCERT Solutions Class 8, Hindi, Vasant, पाठ- 12, पानी की कहानी

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NCERT Solutions Class 8, Hindi, Vasant, पाठ- 12, पानी की कहानी

लेखक - रामचन्द्र तिवारी

पाठ से

1. लेखक को ओस की बूँद कहाँ मिली?

उत्तर

लेखक को बेर की झाड़ी पर ओस की बूँद मिली।

2. ओस की बूँद क्रोध और घृणा से क्यों काँप उठी?

उत्तर

पेड़ों की जड़ों में निकले रोएँ द्वारा जल की बूँदों को बलपूर्वक धरती के भूगर्भ से खींच लाना व उनको खा जाना याद करते ही बूँद क्रोध व घृणा से काँप उठी।

3. हाइाड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज पुरखा क्यों कहा?

उत्तर

जब ब्रह्मांड में पृथ्वी व उसके साथी ग्रहों का उद्भव भी नहीं हुआ था तब ब्रह्मांड में हाईड्रोजन व ऑक्सीजन दो गैसें सूर्यमंडल में लपटों के रूप में विद्यमान थीं। किसी उल्कापिंड के सूर्य से टकराने से सूर्य के टूकड़े हो गए उन्हीं टूकड़ों में से एक टुकड़ा पृथ्वी रूप में उत्पन्न हुआ और इसी ग्रह में ऑक्सीजन व हाइड्रोजन के बीच रासायनिक क्रिया हुई। इन्होंने आपस में मिलकर अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गँवा कर पानी को जन्म दिया। इसिलए बूँद ने इन दोनों को अपना पूर्वज कहा है।

4. "पानी की कहानी" के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर

पानी का जन्म (ह्द्रजन) हाइड्रोजन व (ओषजन) ऑक्सीजन के बीच रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है। जब ब्रह्मांड में पृथ्वी व उसके साथी ग्रहों का उद्भव भी नहीं हुआ था तब ब्रह्मांड में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन दो गैसें सूर्यमंडल में लपटों के रूप में विद्यमान थीं। किसी उल्कापिंड के सूर्य से टकराने से सूर्य के टुकडें कड़े हो गए उन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा पृथ्वी रूप में उत्पन्न हुआ और इसी ग्रह में ऑक्सीजन व हाइड्रोजन के बीच रासायनिक क्रिया हुई और दोनों के संयोग से पानी का जन्म हुआ। सर्वप्रथम बूँद भाप के रूप में पृथ्वी के वातावरण में ईद-गिर्द घूमती रहती है, तत्पश्चात ठोस बर्फ के रूप में विद्यमान हो जाती है। समुद्र से होती हुई वह गर्म-धारा से मिलकर ठोस रूप को त्यागकर जल का रूप धारण कर लेती है।

5. कहानी के अंत और आरंभ के हिस्से को स्वयं पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूंद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?

उत्तर

ओस की बूँद सूर्य उदय की प्रतीक्षा कर रही थी।

पाठ से आगे

1. जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौन सी बातें विस्तार से बताई हैं।

उत्तर

पानी हमारे आसपास नदियों, समुद्र, झील, कुओं, तालाब आदि में विद्यमान हैयह पानी सूर्य की ऊष्मा से वाष्पीकृत होकर भाप बन जाती हैयही भाप ठंडी होकर वर्षा के रूप में पुनः पृथ्वी पर आ जाता हैयह चक्र निरंतर चलता रहता है

  • हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से पानी बनने की प्रक्रिया
  • पानी का पहाड़ों पर बर्फ रूप में जमा होना, हिमखंड का टूटना तथा ऊष्मा पाकर पिघलकर पानी बनना
  • पानी की बूंद का सागर की गहराई में जाना तथा विभिन्न समुद्री जीवों को देखना
  • ज्वालामुखी के विस्फोट के रूप में बाहर आना आदि

2. "पानी की कहानी" पाठ में ओस की बूँद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।

उत्तर

आत्मकथात्मक शैली में लोहे की कुर्सी की कहानी सर्दी के दिन थेएक दिन हल्की आवाज सुनकर मैं बाहर निकला शायद कोई हो पर कुर्सी पर ओस की बूंद गिरने से ध्वनि उत्पन्न हुई थीमैं अपनी लोहे की कुर्सी को बाहर छोड़ दियापुस्तकें तथा अन्य सामान अंदर ले गया पर भूल से यह कमरे के बाहर ही रह गईमैं अंदर पढ़ रहा था कि कुर्सी से कुछ आवाज हुई मैं अपनी गीली कुर्सी कमरे में लाया कुर्सी ने बताया कि कभी मैं मोटे से लोहे की छड़ का हिस्सा थीफैक्ट्री के मालिक ने वह लोहा बेच दियाजिसने मुझे खरीदा था, उसने एक भट्ठी में पिघलाकर पतलीपतली छड़े तथा सीटें बनाने के लिए खूब पीटामुझे असह्य दर्द हुआइनके कटे टुकड़ों को गर्म सलाखों की मदद से जोड़कर कुर्सी का आकार दियामेरे अनेक भागों को जोड़ने के लिए नट-बोल्ट लगाएइस क्रिया में मुझे बहुत दु:ख झेलना पड़ाइसके बाद मुझे आकर्षक बनाने के लिए चमकीला पेंट करके बाजार में बेच दियावहीं से तुम मुझे खरीद लाए तब से तुम्हारी सेवा में लगी हूँ और तुम्हारे आराम का साधन बनी हूँतुम भी मेरा कुछ ख्याल किया करोयूँ बाहर रात भर रहने से तो मैं ठिठुर कर मर ही जाती।

3. समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती ?

उत्तर

समुद्र तट के आसपास के इलाकों को पानी अपने आसपास का तापमान न अधिक बढ़ने देता है और न अधिक घटने देता हैयहाँ का तापमान समशीतोष्ण अर्थात् सुहावना बना रहता हैयही कारण है कि समुद्र तट पर बसे नगरों में न अधिक सर्दी पड़ती है और न अधिक गर्मी।

4. पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर

पेड़ के तने में जाइलम और फ्लोयम नामक विशेष कोशिकाएँ होती हैं इन विशेष कोशिकाओं को समूह (जाइलम) जड़ों द्वारा अवशोषित पानी पत्तियों तक पहुँचाता हैइस तरह पेड़ में फव्वारा न होने पर भी पानी पत्ते तक पहुँच जाता हैइस क्रिया को वनस्पतिशास्त्र में कोशिको क्रिया कहते हैंयह क्रिया उसी तरह होती है जैसे दीपक की बाती में तेल ऊपर चढ़ता हैप्रयोग-इस क्रिया को समझने के लिए एक आसान सा प्रयोग करते हैंएक ऐसा पौधा लेंगे, जिसमें सफेद रंग के पुष्प खिले होंइस पौधे की जड़ों को उस बीकर में रख देते हैं, जिसमें पानी भरा होइस पानी में नीली स्याही की कुछ बूदें मिलाकर रंगीन बना देते हैंकुछ समय के उपरांत हम देखते हैं कि सफेद पुष्प की पंखुड़ियों पर नीली धारियाँ दिखाई देने लगी हैंयह धारियाँ बीकर के रंगीन पानी के कारण हैं जिन्हें जड़ों ने अवशोषित कर तने के माध्यम से पत्तियों तथा पुष्यों तक पहुँचायाछात्र इस प्रयोग को करके तथा विज्ञान शिक्षक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अनुमान और कल्पना

1. पानी की कहानी में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर ओस की बूँद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूँद अनेक अवस्थाओं में सूर्यमंडल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नदी और जल से होते हुए पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती है। इस कहानी की भांति आप भी लोहे अथवा प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर

प्लास्टिक की कहानी- जैसाकि आप सभी जानते हैं कि आज के युग में हमारा उपयोगिता की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। घर से लेकर बाजारों तक, यहाँ तक कि यन्त्रों के रख-रखाव में भी हमारा उपयोग किया जाता है। विभिन्न रासायनिक पदार्थों से मुझे एक निश्चित तापमान के द्वारा मशीनों से तैयार किया जाता है। फिर मेरा मनचाहा उपयोग किया जाता है। सामान्य रूप में थैले और थैलियों के रूप में हमारा प्रचलन बहुत अधिक होता है। जिसे देखो वही अपना सामान रखे अपने हाथ में लटकाए जाता हुआ दिखाई देता है। घर और आफिस के महत्त्वपूर्ण सामान, कागज, आदि भी मेरे अन्दर ही रखे जाते हैं। जो चाहे वैसा मेरा उपयोग करने में स्वतन्त्र है। चलते-चलते जब मैं पुरानी हो जाती हूँ या जब उपयोग करने के बाद उपभोक्ता द्वारा बेकार समझी जाती हूँ, तब मैं उसके द्वारा फेंक दी जाती हूँ। लेकिन मैं अपने आप में इतनी पक्की होती हूँ कि फेंकने पर भी मैं नष्ट नहीं होती हूँ। नालियों में गिरने पर बहते पानी को रोक देती हूँ। जमीन में दबकर सड़ती नहीं हूँ। पानी, हवा और सूरज की तपन से मुझे डर नहीं लगता है। जहाँ पड़ी वहीं पड़ी रहती हूँ। थैलियाँ बीनने वाले मुझे उठाकर ले जाते हैं और कारखानों में बेच देते हैं। जहाँ मशीनों पर चढकर अपना नया रूप धारण कर लेती हूँ और बाजार में बिककर जन-सेवा में लग जाती हूँ। एक बार बनकर अपनी अमिट कहानी दुहराती रहती हूँ।

2. अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। अन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अंतर यह होता है कि जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बर्फ) हलकी होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।

उत्तर

जल की द्रव अवस्था की तुलना में उसकी ठोस अवस्था (बर्फ) हल्की होने का कारण यह है कि पानी के घनत्व की अपेक्षा उसका घनत्व कम होता है। कम घनत्व के कारण ही बर्फ हल्की होती है

3. पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन-सामग्री 'हम पृथ्वी की संतान!' का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।

उत्तर

पर्यावरण संकट

मनुष्य जिस स्थान पर रहता है उसके आस पास दो प्रकार के आवरण मौजूद होते हैं पहला हवा का अदृश्य आवरण तथा दूसरा दृश्य आवरणहमारे चारों ओर विद्यमान इसी आवरण को पर्यावरण कहते हैं पर्यावरण दो शब्दों-परि + आवरण से मिलकर बना है हमारे आस पास मौजूद पेड़-पौधे, नदियाँ, पहाड़, धरती, हवा, जल, खनिज पदार्थ तथा अनेक जीव-जंतु इस पर्यावरण के अंग हैं ये सभी मिलकर पर्यावरण को प्रभावित करते हैं किंतु मनुष्य अपने स्वार्थ तथा लोभ के कारण अपनी उदारता भूलकर पर्यावरण को क्षति पहुँचाने लगता है वह इन साधनों का दोहन तो करता है पर पर्यावरण की सुरक्षा, सुंदरता तथा इनको बनाए रखने के लिए अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं करता है

पेड़-पौधों के अंधाधुंध कटाव ने हमारे पर्यावरण को सर्वाधिक प्रभावित किया है मनुष्य ने इन्हें काटकर खेती करने तथा कंक्रीट के जंगल बसाने के लिए जमीन तो प्राप्त कर लीं पर इन्हें काटकर उसने इन पर आश्रय के निर्भर कितने जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में डाल दिया इसकी उसे चिंता नहीं है| विश्व में बढ़ती कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा तथा तापमान में लगातार हो रही वृधि वनों के विनाश का ही परिणाम है आज तापमान में वृद्धि के कारण ही पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी का दृश्य देखना दुर्लभ होता जा रहा है। आज विश्व की लगभग सभी नदियाँ मनुष्य की विभिन्न गतिविधियों के कारण प्रदूषित हो गई हैं। इन नदियों में गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, गोमती, राइन, टेम्स, अमेजन, नील आदि हैं। इनमें रहने वाले जीवों की जान पर बन आई है। ये जीव-जंतु असमय काल-कवलित हो रहे हैं। कभी जीवनदायिनी तथा मोक्षदायिनी कहलाने वाली गंगा का जल इतना प्रदूषित हो गया है कि इनका पानी पीने से मनुष्य बीमार हो सकता है। मनुष्य ने इसे रोगदायिनी गंगा में बदलकर रख दिया है। मनुष्य के इन्हीं गतिविधियों से ओजोन की मोटी परत भी प्रभावित हुई है। इसे न रोका गया तो सूर्य की पराबैगनी किरणें मनुष्य के लिए घातक रोग का कारण बन सकती हैं। आज तापमान में लगातार हो रही वृधि के कारण ग्लेशियरों तथा हिम-शिखरों की बर्फ तेजी से पिघलने लगी है, जिससे विश्व के छोटे-छोटे द्वीपों तथा समुद्रतटीय इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है। इसके अलावा अनेक प्राकृतिक आपदाएँ बाढ़, भूकंप, तूफान तथा समुद्री तूफान आकर तबाही मचाते हैं। हाल में ही सुनामी से हुई अपार जान-माल की क्षति को कौन भूल सका है। आज हम मनुष्यों का कर्तव्य बनता है कि पर्यावरण से हम जितना कुछ ले रहे हैं उसके बदले में कुछ देना भी सीखें।’ पृथ्वी बचाओ’, ‘पर्यावरण बचाओ’, ‘वन-महोत्सव’ जैसे कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाकर उसे सफल बनाएँ तथा देश की सीमा से ऊपर उठकर अपने पर्यावरण को स्वच्छ तथा सुंदर बनाने का प्रयास करें|

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भाषा की बात

1. किसी भी क्रिया को संपन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं; जैसे-“ वह हाथों से शिकार को जकड़ लेती थी।” जकड़ना क्रिया तभी संपन्न हो पाएगी जब कोई व्यक्ति (वह) जकड़नेवाला हो, कोई वस्तु (शिकार) हो जिसे जकड़ा जाए। इन भूमिकाओं की प्रकृति अलग-अलग है। व्याकरण में ये भूमिकाएँ कारकों के अलग-अलग भेदों; जैसे- कर्ता, कर्म, करण आदि से स्पष्ट होती हैं। अपनी पाठ्यपुस्तक से इस प्रकार के पाँच और उदाहरण खोजकर लिखिए और उन्हें भलीभाँति परिभाषित कीजिए।

उत्तर

आगे एक और बूँद मेरा हाथ पकड़कर ऊपर खींच रही थी।
पकड़ कर – सबंध कारक

हम बड़ी तेजी से बाहर फेंक दिए गए।
तेज़ी से – अपादान कारक

मैं प्रति क्षण उसमें से निकल भागने की चेष्टा में लगी रहती थी।
मैं – कर्ता

वह चाकू से फल काटकर खाता है।
चाकू से – करण कारक

बदलू लाख से चूड़ियाँ बनाता है।
लाख से – करण कारक

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