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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Aroh, पाठ- 11, बाज़ार दर्शन

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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Aroh, पाठ- 11, बाज़ार दर्शन

लेखक - जैनेन्द्र कुमार

पाठ के साथ

1. बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?

उत्तर

बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  • बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है।
  • उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है।
  • वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।
  • वस्तुएँ खरीदने पर उसका अह संतुष्ट हो जाता है।
  • खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि जो चीजें आराम के लिए खरीदी थीं वे खलल डालती हैं।
  • उसे खरीदी हुई वस्तुएँ अनावश्यक लगती हैं।

2. बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नजर में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

उत्तर

भगत जी बाज़ार में जाकर विचलित नहीं होते हैं। उनका स्वयं में नियंत्रण है। उनके अंदर गज़ब का संतुलन देखा जा सकता है। यही कारण है कि बाज़ार का आकर्षित करता जादू उनके सिर चढ़कर नहीं बोलता है। उन्हें भली प्रकार से पता है कि उन्हें क्यों और क्या लेना है? वे बाज़ार में जाकर आश्चर्यचकित नहीं रह जाते हैं। अतः इस आधार पर कह सकते हैं कि वे दृढ़-निश्चयी तथा संतोषी स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनका स्वयं पर तथा अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण है। संतोषी स्वभाव के कारण उनमें लालच की भावना विद्यमान नहीं है। एक लालच ही ऐसा भाव है, जो असंतोष, क्रोध आदि दुर्भावनाओं को जन्म देता है। इसके कारण ही भ्रष्टाचार, चोरी-चकारी, हत्या जैसे अपराध समाज में बढ़ रहे हैं। मनुष्य दृढ़-निश्चयी है, तो वह नियंत्रणपूर्वक इस लालच को रोके रखता है। संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो ऐसी वस्तुओं से प्रभावित न हो। लेकिन जिसके अंदर दृढ़-निश्चय और संतोष है, वह कभी गलत मार्ग में नहीं बढ़ेगा और समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार साबित होगा।

3. 'बाजारूपन' से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किसमें है?

उत्तर

बाज़ारूपन से लेखक का तात्पर्य है कि बाज़ार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि दिखाने के लिए प्रयोग में लाना। इस प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लाते हैं, तो हम बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं। हमें वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती है, बस हम दिखाने का प्रयास करते हैं कि हम यह खरीद सकते हैं। हमारी यह आदत हमें बाज़ार का सही प्रयोग नहीं करने देती है। बाज़ार को सार्थकता वही व्यक्ति दे सकते हैं, जो जानते हैं कि हमें क्या और क्यों खरीदना है? बाज़ार का निर्माण ही इसलिए हुआ है कि हमारी आवश्यकताओं को हमें दे सके। अतः जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को जानकर ही वस्तु खरीदते हैं और बाज़ार से उसे ही लेकर चले आते हैं सही मायने में वही बाज़ार को सार्थकता देते हैं।

4. बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर

यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजारवाद ने कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखा। उसने केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखा है। जो व्यक्ति सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। कहने का आशय यही है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सामाजिक समता स्थापित की है। यही आज का बाजारवाद है।

5. आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें-

(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।

उत्तर

एक बार एक कार वाले ने एक बच्चे को जख्मी कर दिया। बात थाने पर पहुँची लेकिन थानेदार ने पूरा दोष बच्चे के माता-पिता पर लगा दिया। वह रौब से कहने लगा कि तुम अपने बच्चे का ध्यान नहीं रखते। वास्तव में पैसों की चमक में थानेदार ने सच को झूठ में बदल दिया था। तब पैसा शक्ति का परिचायक नजर आया।

(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

उत्तर

एक व्यक्ति ने अपने नौकर का कत्ल कर दिया। उसको बेकसूर मार दिया। पुलिस उसे थाने में ले गई। उसने पैसे ले-देकर मामले को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन सब बेकार। अंत में उस पर मुकदमा चला। आखिरकार उसे 14 वर्ष की उम्रकैद हो गई। इस प्रकार पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

पाठ के आसपास

1. बाजार दर्शन पाठ में बाजार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

(क) मन खाली हो
(ख) मन खाली न हो
(ग) मन बंद हो
(घ) मन में नकार हो

उत्तर

(क) जब मनुष्य का मन खाली होता है तो बाजार में अनाप–शनाप खरीददारी की जाती है । बजर का जादू सिर चढकर बोलता है । एक बार में मेले में घूमने गया । वहाँ चमक–दमक, आकर्षक वस्तुएँ मुझे न्योता देती प्रतीत हो रहीं थीं । रंग–बिरंगी लाइटों से प्रभावित होकर मैं एक महँगी ड्रेस खरीद लाया । लाने के खाद पता चला कि यह आधी कीमत में फुटपाथ पर मिलती है । 

(ख) मन खाली न होने पर मनुष्य अपनी इच्छित चीज खरीदता है । उसका ध्यान अन्य वस्तुओं पर नहीं जाता । में घर में जरूरी सामान की लिस्ट बनाकर बाजार जाता है और सिफ्रे उन्हें ही खरीदकर लाता हूँ । मैं अन्य चीजों को देखता जरूर हूँ, पर खरीददारी वहीं करता हूँजिसकौ मुझे जरूरत होती है । 

(ग) मन ईद होने पर इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं । वैसे तो इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं, परंतु कभी–कभी पन:स्थिति ऐसी होती है कि किसी वस्तु में मन नहीं लगता । एक दिन में उदास था और मुझे बाजार में किसी वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । अत: में विना कहीं रुके बाजार से निकल आया ।

(घ) मन में नकारात्मक भाव होने से बाजार की हर वस्तु खराब दिखाई देने लगती है । इससे समाज इसका विकास रुक जाता है । ऐसा असर किसी के उपदेश या सिदूधति का पालन करने से होता है । एक दिन एक साम्यवादी ने इस तरह का पाठ पढाया कि बडी कंपनियों की वस्तुएँ मुझें शोषण का रूप दिखाई देने लगी।

2. बाजार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?

उत्तर

बाज़ार दर्शन में दो चार प्रकार के ग्राहकों के बारे में बात हुई है। पहले ऐसे ग्राहक हैं, जो अपनी आर्थिक सपन्नता का प्रदर्शन बाज़ार में जाकर करते हैं। दूसरे ऐसे ग्राहक हैं, जो बाज़ार में जाकर संयमी होते हैं और बुद्धिमता पूर्वक सामान खरीदते हैं। तीसरे ऐसे ग्राहक हैं, जो मात्र बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं और चौथे ऐसे किस्म के ग्राहक होते हैं जो मात्र आवश्यकता के अनुरूप सामान खरीदते हैं। मैं स्वयं को संयमी तथा बुद्धिमता पूर्वक सामान खरीदने वाला ग्राहक मानता हूँ। मैं बाज़ार में जाकर आकर्षित नहीं होता हूँ। सोच-समझकर ही सामान खरीदता हूँ।

3. आप बाजार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाजार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती है?

उत्तर

मॉल, सामान्य बाज़ार तथा हाट की संस्कृति में बहुत अंतर हैं। मॉल में आपको हर वस्तु ब्रैंडिड मिलती है। इनके मूल्य बहुत अधिक होते हैं। यह मात्र व्यवसायी, उच्च पदों आदि जैसे लोगों के लिए उपयुक्त है। निम्न मध्यवर्गीय तथा निम्न वर्गीय लोगों के लिए इन्हें खरीदना कठिन होता है। सामान्य बाज़ार में हर प्रकार के लोगों द्वारा खरीदारी की जाती है। यहाँ हर वर्ग का व्यक्ति अपनी सुविधा अनुसार सामान खरीदता है। हाट की संस्कृति शहरों के लिए कम उपयुक्त है। यह गाँव के लिए हैं। यह सप्ताह में एक बार लगता है और लोगों द्वारा यहाँ पर आवश्यकता अनुसार ही सामान खरीदा जाता है। पर्चेज़िंग पावर मात्र मॉल संस्कृति के लिए उपयुक्त है। यहाँ पर आप अपनी इस पावर के दम पर उच्चब्रांड की वस्तुएँ खरीद सकते हैं।

4. लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर

आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। बेचने वाला तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक ने ठीक कहा है कि आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

5. स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?

उत्तर

यहाँ ‘माया‘ शब्द का अर्थ है–धन–मगाती, जरूरत की वस्तुएँ । आमतौर पर स्तियों को माया जोड़ते देखा जाता है । इसका कारण उनकी परिस्थितियों है जो निम्नलिखित हैं –

  • आत्मनिर्भरता की पूर्ति ।
  • घर की जरूरतों क्रो पूरा करना ।
  • अनिश्चित भविष्य ।
  • अहंभाव की तुष्टि ।
  • बच्चों की शिक्षा ।
  • संतान–विवाह हेतु।
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आपसदारी

1. जरूरत भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है- भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए-

चाह गई चिता महँ, मनुआँ बेपरवाहा
जाको कछु नहि चाहिए, सोइ साहन के सतह।
– कबीर

उत्तर

कबीर का यह दोहा भगत जी की संतुष्ट निस्मृहता पर पूर्णतया लागू होता है । कबीर का कहना था कि इच्छा समाप्त होने यर लता खत्म हो जाती है । शहंशाह वहीं होता है जिसे कुछ नहीं चाहिए । भगत जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं । इनकी जरूरतें भी सीमित हैं । वे बाजार के आकर्षण से दूर हैं । अपनी ज़रूरत पा होने पर वे संतुष्ट को जाते हैं ।

2. विजयदान देथा की कहानी 'दुविधा' (जिस पर 'पहेली' फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?

गड़रिया बगैर कहे ही उसके दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी.
कबूल नहीं की। काली दाढी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए
बोला-‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूं।
मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अँगूठी मेरे किस काम
की ! न यह अंगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़े भी मेरी तरह
गॅवार हैं। घास तो खाती है, पर सोना सँघती तक नहीं। बेकार की
वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।
–विजयदान देथा

उत्तर

विजयदान देथा की ‘दुविधा’ कहानी का अंश पढ़कर मुझमें भी संतोषी वृत्ति के भाव जगते हैं। गड़रिया चाहता तो वह अपने न्याय की कीमत वसूल सकता था। सामाजिक दृष्टि से यही ठीक भी था क्योंकि अमीर व्यक्ति जो कुछ गड़रिये को दे रहा था वह उसका हक था। लेकिन गड़रिये और भगत जी की संतोषी भावना को देखकर मेरे मन में भी इसी प्रकार के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। मन करता है कि जीवन में इस भावना को अपनाए रखें तो किसी प्रकार की चिंता नहीं रहेगी। जब कोई इच्छा या अपेक्षा नहीं होगी तो दुख नहीं होगा। तब हम भी कबीर की तरह शहंशाह होंगे।

3. बाज़ार पर आधारित लेख ‘नकली सामान पर नकेल ज़रूरी’ का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

(क) नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?
(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है।
(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?

नकली सामान पर नकेल जरूरी।

अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्सल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, इसमें दो राय नहीं है कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है।

महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरुकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर है लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है। इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस. एन. कपूर का कहना है, ‘टी.वी. ने दूरदराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं। लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं।

नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’ बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरुकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरुकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रही है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्यों न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो।

– हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार

उत्तर

(क) नकली सामान के खिलाफ लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। सबसे पहले विज्ञापनों, पोस्टरों और होर्डिंग के माध्यम से यह बताया जाए कि किस तरह असली वस्तु की पहचान की जाए। लोगों को बताया जाए कि होलोग्राम और ISI मार्क वाली वस्तु ही खरीदें। उन्हें यह भी जानकारी दी जाए कि नकली वस्तुएँ खरीदने से क्या हानियाँ हो सकती हैं ?

(ख) सामान बनाने वाली कंपनियों का सबसे पहले यही नैतिक दायित्व है कि अच्छा और बढ़िया सामान बनाए। वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करें जो आम आदमी को फायदा पहुँचायें। केवल अपना फायदा सोचकर ही समान न बेचें। वे मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर ध्यान रखें तभी ग्राहक खुश होगा। जो कंपनी जितनी ज्यादा गुणवत्ता देगी ग्राहक उसी कंपनी का सामान ज्यादा खरीदेंगे।

(ग) भारतीय मध्य वर्ग पर आज का बाजार टिका हुआ है। वह दिन बीत गए जब लोकल कंपनी का माल खरीदा जाता। था। अब तो लोग ब्रांडेड कंपनी का ही सामान खरीदते हैं। चाहे वह कितना ही महँगा क्यों न हो। उन्हें तो केवल यही विश्वास होता है कि ब्रांडेड सामान अच्छा और बढ़िया होगा। उसमें किसी भी तरह से कोई खराबी न होगी लोग इन ब्रांडेड सामानों को खरीदने के लिए कोई भी कीमत चुकाते हैं। ब्रांडेड सामान चूँकि बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इस्तेमाल करती हैं। इसलिए अन्य लोग भी ऐसा ही करते हैं।

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4. प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।

उत्तर

प्रेमचंद की कहानी में हामिद और उसके दोस्त यानी सम्मी मोहसिन नूरे सभी मेला देखने जाते हैं। वे मेले में लगी दुकानों को देखकर बहुत प्रभावित होते हैं। वे हाट बाजार में लगी हुई सारी वस्तुएँ देखकर प्रसन्न होते हैं। उनका मन करता है कि सभी-वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। किंतु किसी के पास पाँच पैसे थे तो किसी के पास दो पैसे। हाट वास्तव में बाजार का ही एक रूप है। बच्चे इनमें लगी दुकानों को देखकर आकर्षित हो जाते हैं। वे तरह-तरह की इच्छाएँ करने लगते हैं। बच्चों का संबंध बाजार से प्रत्यक्ष होता है। वे सीधे तौर पर बाजार में जाकर वहाँ रखी वस्तुओं को खरीद लेना चाहते हैं।

विज्ञापन की दुनिया

1. आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।

1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु
2. विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य
3. विज्ञापन की भाषा

उत्तर

मैंने शाहरूख खान द्वारा अभिनीत सैंट्रो कार का विज्ञापन देखा। इस विज्ञापन में सैंट्रो कार का चित्र था और विषय वस्तु थी। वह कार, जिसे बेचने के लिए आज के सुपर स्टार शाहरूख खान को अनुबंधित किया गया। इसमें शाहरूख खान और उनकी पत्नी को विज्ञापन करते दिखाया गया है। साथ ही उनके एक पड़ोसी का भी जिक्र आया है। इन सभी पात्रों का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। शाहरूख की पत्नी जब पड़ोसी पर आकर्षित होती है तो शाहरूख पूछता है क्यों? तब उसकी पत्नी जवाब देती है सैंट्रो वाले हैं न ।’ मुझे कार खरीदने के लिए इसी कैप्शन ने प्रेरित किया। इस पंक्ति में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का पता चलता है।

2.अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो।

उत्तर

सेल लगाकर, अपने सामान के साथ कुछ उपहार देकर, स्क्रैच कार्ड के द्वारा, विज्ञापन देकर या सामान की खूबियाँ बताकर। उदाहरण

1. सेल-सेल-सेल कपड़ों पर भारी सेल।।
2. एक सूट के साथ कमीज फ्री। बिलकुल फ्री।
3. ये कपड़े त्वचा को नुकसान नहीं पहुँचाते, ये नरम और मुलायम कपड़े हैं। पूरी तरह से सूती । यदि मुझे सामान बेचना पड़े तो मैं बेची जाने वाली वस्तु के गुणों का प्रचार करूंगा/करूंगी ताकि ग्राहक अपनी समझ से
वस्तु खरीदे।।

भाषा की बात

1. विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।

उत्तर

औपचारिक रूप

1. मैंने कहा – यह क्या?

बोले – यह जो साथ थी।

2. बोले – बाज़ार देखते रहे।

मैंने कहा – बाज़ार क्या देखते रहे।

3. यह दोपहर के पहले के गए गए बाजार से कहीं शाम को वापिस आए।

अनौपचारिक

  1. कुछ लेने का मतलब था शेष सबकुछ छोड़ देना।
  2. बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो।
  3. पैसे की व्यंग्य शक्ति भी सुनिए।

2. पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे है जहाँ वह पाठक वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?

उत्तर

  1. बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है।
  2. जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा।
  3. यहाँ एक अंतर चिह्न लेना ज़रूरी है।
  4. कहीं आप भूल नहीं कर बैठिएगा।
  5. पैसे की व्यंग्य शक्ति सुनिए। वह दारूण है। अवश्य ऐसे संबोधनों के कारण पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। इसीलिए ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में सहायक सिद्ध होते हैं।

3. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।

(क) पैसा पावर है।
(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।
(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।

ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल! अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।

उत्तर

  1. परंतु इस उदारता के डाइनामाइट ने क्षण भर में उसे उड़ा दिया।
  2. भक्ति इंस्पेक्टर के समान क्लास में घूम-घूमकर।
  3. फ़िजूल सामान को फ़िजूल समझते हैं।
  4. इससे अभिमान की गिल्टी की और खुराक ही मिलती है।
  5. माल-असबाब मकान-कोठी तो अनेदेखे भी दिखते हैं।

ऊपर दिए गए शब्दों में रेखांकित शब्द आगत शब्द हैं। इनके स्थान पर यदि हिंदी पर्यायों का प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर दूसरा ही प्रभाव पड़ता है। वाक्य अधूरा-सा लगता है। बात स्पष्ट नहीं हो पाती है तथा लेखक का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता है। यही कारण है कि कोड मिक्सिंग ने भाषा में अपनी जगह बना ली है। उदाहरण के लिए देखिए-

  1. परंतु इस उदारता के विस्फोटक ने क्षण भर में उसे उड़ा दिया।
  2. भक्ति पर्यवेक्षक के समान कक्षा में घूम-घूमकर।
  3. व्यर्थ सामान व्यर्थ समझते हैं।
  4. इससे अभिमान की दोषी की और अंश ही मिलती है।
  5. माल-सामान मकान-कोठी तो अनेदेखे भी दीखते हैं।

4. नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए-

  1. निर्बल ही धन की ओर झुकता है।
  2. लोग संयमी भी होते हैं।
  3. सभी कुछ तो लेने को जी होता था।

ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश 'ही', 'भी', तो निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे-

मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)

आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।

उत्तर

1. 'ही' से बनने वाले तीन वाक्य-

(क) भरत को ही बुलाना है।

(ख) मंदिर में मुझे ही जाना है।

(ग) बाज़ार से गुलाब ही खरीदना है।

2. 'भी' से बनने वाले तीन वाक्य-

(क) नेहा को भी ले आते।

(ख) कपड़ों को भी भीगा देते।

(ग) गुलाब के पौधे भी लगवा देते।

3. 'तो' से बनने वाले तीन वाक्य-

(क) घर तो टूट गया

(ख) मैंने तो खाना खा लिया।

(ग) जंगल में तो जानवर ही मिलेंगे।

4. 'ही, भी, तो' तीनों से बनने वाले दो वाक्य-

(क) बाज़ार से ही तो घी भी लेना था।

(ख) जलेबी ने ही मुझे तो समझाया कि शर्मा जी को भी बुला लो।

(ग) घर से निकला ही था, तो देखा कि सूरज भी साथ चल रहा है।

चर्चा करें

1. पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है?

(क) सामाजिक विकास के कार्यों में।

(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में...।

बाजार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है-

उत्तर

पर्चेजिंग पावर से अभिप्राय है कि खरीदने की क्षमता। कहने का भाव है कि खरीददारी करने का सामर्थ्य लेकिन पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक प्रयोग किया जा सकता है। वह भी बाजार की चकाचौंध से कोसों दूर। इसका सकारात्मक प्रयोग सामाजिक कार्य करके और ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करके। सामाजिक विकास के कार्य जैसे स्कूल, अस्पताल, धर्मशालाएँ। खुलवाकर उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है जो कि लोग फिजूल के सामान पर खर्च करते हैं। आज शॉपिंग माल्स में लगभग 30 प्रतिशत फिजूल पैसा लोग खर्चते हैं क्योंकि वे अपनी शानो शौकत रखने के लिए खरीददारी करते हैं। यदि इसी पैसे को सामाजिक विकास के कार्यों में लगा दिया जाए तो समाज न केवल उन्नति करेगा बल्कि वह अमीरी गरीबी के अंतर से भी बाहर निकलेगा। दूसरे इस पैसे का ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। गाँवों को मूलभूत सुविधाएँ इसी पैसे से प्रदान की जा सकती हैं। यह पैसा गाँवों की तस्वीर बदल सकता है।

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