NCERT Solutions Class 11, Hindi, Aroh, पाठ- 16, आओ, मिलकर बचाएँ
लेखक - निर्मला पुतुल
कविता के साथ
1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर
कवयित्री ने ‘माटी का रंग’ शब्द का प्रयोग करके यह बताना चाहा है कि संथाल क्षेत्र के लोगों को अपनी मूल पहचान को नहीं भूलना चाहिए। वह इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विशेषताएँ बचाए रखना चाहता है। क्षेत्र की प्रकृति, रहन-सहन, अक्खड़ता, नाच गाना, भोलापन, जुझारूपन, झारखंडी भाषा आदि को शहरी प्रभाव से दूर रखना ही कवयित्री का उद्देश्य है।
2. भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
इसका अभिप्राय है-झारखंड की भाषा की स्वाभाविक बोली, उनका विशिष्ट उच्चारण। कवयित्री चाहती है कि संथाली लोग अपनी भाषा की स्वाभाविक विशेषताओं को नष्ट न करें।
3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
उत्तर
दिल का भोलापन अर्थात् मन का साफ़ होना-इस पर कविता में इसलिए बल दिया गया है कि अच्छा मनुष्य और वह आदिवासी जिस पर शहरी कलुष का साया नहीं पड़ा वह भोला तो होता ही है, साथ-साथ उसे शहरी कही जानेवाली सभ्यता का ज्ञान नहीं तो वह अपने साफ़ मन से जो कहता है वह अक्खड़ दृष्टिकोण से कहता है। शक्तिशाली संथालों का मौलिक गुण है-जूझना, सो उसे बनाए रखना भी जरूरी है।
4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?
उत्तर
कविता में प्रकृति के विनाश एवं विस्थापन के कठिन दौर के साथ-साथ संथाली समाज की अशिक्षा, कुरीतियों और शराब की ओर बढ़ते झुकाव को भी व्यक्त किया गया है जिसमें पूरी-पूरी बस्तियाँ डूबने जा रही हैं।
5. इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है से क्या आशय है?
उत्तर
कवयित्री ने आज के अविश्वास भरे दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है, इसलिए कहा है क्योंकि आज के युग में बढ़ती अविश्वास तथा एक दूसरे के बीच के ईर्ष्या और द्वेष की भावना आदिवासी समाज को पूरी तरह प्रभावित नहीं कर सकी है| इसलिए कवयित्री उनकी भाषा और संस्कृति के गुणों को बचाना चाहती हैं|
6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौन्दर्य को उद्घाटित कीजिए-
(क) ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
उत्तर
इस पंक्ति में कवयित्री ने आदिवासी क्षेत्रों से विस्थापन की पीड़ा को व्यक्त किया है। विस्थापन से वहाँ के लोगों की दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। हम अपने प्रयासों से उनके जीवन में उत्साह जगा सकते हैं। यह काव्य पंक्ति लाक्षणिक है इसका अर्थ है-उत्साहहीन जीवन। ‘गर्माहट’ उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों से अर्थ गांभीर्य आया है। शांत रस विद्यमान है। अतुकांत अभिव्यक्ति है।
(ख) थोड़ा-सा अविश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े–से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
उत्तर
इस अंश में कवयित्री अपने प्रयासों से लोगों की उम्मीदें, विश्वास व सपनों को जीवित रखना चाहती है। समाज में बढ़ते अविश्वास के कारण व्यक्ति का विकास रुक-सा गया है। वह सभी लोगों से मिलकर प्रयास करने का आहवान करती है। उसका स्वर आशावादी है। ‘थोड़ा-सा’ ; ‘थोड़ी-सी’ व ‘थोड़े-से’ तीनों प्रयोग एक ही अर्थ के वाहक हैं। अत: अनुप्रास अलंकार है। उर्दू (उम्मीद), संस्कृत (विश्वास) तथा तद्भव (सपने) शब्दों का मिला-जुला प्रयोग किया गया है। तुक, छद और संगीत विहीन होते हुए कथ्य में आकर्षण है। खड़ी बोली का प्रयोग दर्शनीय है।
7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
उत्तर
शहरों में भावनात्मक जुड़ाव, सादगी, भोलापन, विश्वास और खिलखिलाती हुई हँसी नहीं है। इन कमियों से बस्तियों को बचाना बहुत जरूरी है। शहरों के प्रभाव में आकर ही दिनचर्या ठंडी होती जा रही है और जीवन की गर्माहट घट रही है। जंगल कट रहे हैं और आदिवासी लोग भी शहरी जीवन को अपना रहे हैं। बस्ती के आँगन भी सिकुड़ रहे हैं। नाचना-गाना, मस्ती भरी जिंदगी को शहरी प्रभाव से बचाना ज़रूरी है।
कविता के आस-पास
1. आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?
उत्तर
हम अपने शहर की ऐतिहासिक धरोहर, लोगो के चेहरे पर सदा मुस्कुराने वाला भाव, खिलखिलाती हंसी, आपसी विश्वास, भाई चारा, भाषा की स्वाभाविक, भोला पन, कम करने की लगन, मेहनत, दृद संकल्प, एकता तथा अखंडता को बचाना चाहेंगे।
2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें|
उत्तर
आदिवासी समाज आज स्वयं को आधुनिक बनाने के चक्कर में अपनी मौलिकता खो रहा है। स्वयं को पिछड़ा मानकर हीनभाव से ग्रस्त हो वे अपनी धरती की गंध भूलते जा रहे हैं, पर आज भी वहाँ शिक्षा और कुरीतियों के कारण पीढ़ियाँ बिगड़ रही हैं।