NCERT Solutions Class 11, Hindi, Vitan, पाठ- 2, राजस्थान की रजत बूँदें
लेखक - अनुपम मिश्र
1. राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर
राजस्थान में रेत अथाह है। वर्षा का पानी रेत में समा जाता है, जिससे नीचे की सतह पर नमी फैल जाती है। यह नमी खड़िया मिट्टी की परत के ऊपर तक रहती है। इस नमी को पानी के रूप में बदलने के लिए चार-पाँच हाथ के व्यास की जगह को तीस से साठ हाथ की गहराई तक खोदा जाता है। खुदाई के साथ-साथ चिनाई भी की जाती है। इस चिनाई के बाद खड़िया की पट्टी पर रिस-रिस कर पानी एकत्र हो जाता है। इसी तंग गहरी जगह को कुंई कहा जाता है। यह कुएँ का स्त्रीलिंग रूप है। यह कुएँ से केवल व्यास में छोटी होती है, परंतु गहराई में लगभग समान होती है। आम कुएँ का व्यास पंद्रह से बीस हाथ का होता है, परंतु कुंई का व्यास चार या पाँच हाथ होता है।
2. दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें?
उत्तर
मानव की दोहन नीति के कारण आज पानी की समस्या भयंकर होती जा रही है, नदियों का जल-स्तर घटता जा रहा है। शहरों व गाँवों में पेयजल की भारी कमी हो रही है। यह पाठ हमें पानी के समुचित प्रयोग को सिखाता है। अगर हम वर्षा के बूंद-बूंद पानी का उचित संग्रहण व इस्तेमाल कर सकें तो पानी की समस्या दूर हो जाए। आज हम पानी का दुरुपयोग करते हैं। कोई व्यक्ति भविष्य की चिंता नहीं करता। खेती, उद्योग, निजी उपयोग हर जगह लापरवाही है। हमें प्रकृति के उपहार वर्षा के जल का संग्रहण करना चाहिए। इसके लिए गाँवों में तालाब का पुनर्निर्माण करना चाहिए। घरों में भी कुएँ बनाकर पानी का संग्रहण किया जा सकता है। छोटे-छोटे जलाशय बनाकर भूमिगत जलस्तर को बढ़ाया जा सकता है|
3. चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है पाठ के आधार पर बताइए?
उत्तर
चेजारों को खासकर कुंई बनानेवाले चेजारों का राजस्थान के समाज में बड़ा की महत्त्वपूर्ण स्थान है। अन्नदाता से भी बड़ा अमृतदाता (पानी देनेवाला) है-चेजारा। यह गाँव-समाज के लिए मीठे पानी की कुंई बनाता है अर्थात् सबकी प्यास बुझाता है। खुदाई और चिनाई की जो विशेष प्रक्रिया वह जानता है उसकी-सी जानकारी अन्य किसी के पास नहीं है। कुंई की खुदाई के पहले दिन से ही चेजारो का विशेष ध्यान रखा जाता है। कुंई की सफलता और सजलता के बाद चेजारों की विदाई पर विशेष भोज का आयोजन कर उन्हें तरह-तरह की भेंट दी जाती है। वर्ष-भर हर तीज-त्योहार पर उनको भेंट एवं उपहार दिए जाते हैं। फ़सल आने पर खलिहानों में उनके नाम से अनाज का अलग ढेर लगाया जाता है। ये सब पारंपरिक बातें अब कम होती जा रही हैं और मजदूरी देकर काम करवाने का रिवाज़ पनपता जा रहा है।
4. निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंड़यों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर
जल और विशेष रूप में पेय जल सभी के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। कुंई का जल और रेगिस्तान की गरमी की तुलना करें तो जल अमृत से बढ़कर है। ऐसे में अपनी-अपनी व्यक्तिगत कुंई बना लेना और मनमाने ढंग से उसका प्रयोग करना समाज के अंकुश से परे हो जाएगा। अतः सार्वजनिक स्थान पर बनी व्यक्तिगत कुंई पर और उसके प्रयोग पर समाज का अंकुश रहता है। यह भी एक तथ्य है कि खड़िया की पट्टी वाले स्थान पर ही कुंई बनाई जाती हैं और इसीलिए एक ही स्थान पर अनेक कुंई बनाई जाती हैं। यदि वहाँ हरेक अपनी कुंई बनाएगा तो क्षेत्र की नमी बँट जाएगी जिससे कुंई की पानी एकत्र करने की क्षमता पर फर्क पड़ेगा।
5. कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी
उत्तर
पालरपानी-बरसाती पानी, वर्षा का जल जिसे इकट्ठा करके रख लिया जाता है और साफ़ करके प्रयोग में लाया जाता है। पातालपानी–वह जल जो दो सौ हाथ नीचे पाताल में मिलता है। यह जल ज्यादातर खारा होता है।
रेजाणीपानी-रेत के कणों की गहराई में खड़िया की पट्टी के ऊपर कुंई में रिस-रिसकर एकत्र होनेवाला पानी रेजाणीपानी कहलाता है।