NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ "औरे भाँति कुंजन में गुंजरत, गोकुल के कुल के गली के गोप, भौंरन को गुंजन बिहार"
लेखक - पद्माकर
प्रश्न अभ्यास
1. पहले छंद में कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है?
उत्तर
पद्माकर ने हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित पहले कवित्त में बसंत ऋतु का प्रभावशाली वर्णन किया है।
2. इस ऋतु में प्रकृति में क्या परिवर्तन होते हैं?
उत्तर
वसंत ऋतु में वृक्षों के झुंडों में भँवरे गुंजार करने लगते हैं। आम का बौर अपनी सुगंध से सारे वातावरण को मादक बना देता है। पक्षियों का समूह आनंदमय ध्वनियाँ उत्पन्न करने लगता है। वनस्पतियाँ रस-रंग से परिपूर्ण हो जाती हैं। युवावर्ग आनंद में झूमने लगता है तथा सर्वत्र स्फूर्ति, उमंग और उत्साह दिखाई देता है।
3. 'और' की बार-बार आवृत्ति से अर्थ में क्या विशिष्टता उत्पन्न हुई है?
उत्तर
कवि ने अपने कवित्त में 'और' शब्द की आवृत्ति से प्रकट किया है कि ऋतुराज वसंत का प्रभाव तो अति विशिष्ट है; बिलकुल अलग प्रकार का है, वैसा प्रभाव तो किसी ऋतु का हो ही नहीं सकता। प्रकृति तथा लोगों में वसंत ऋतु के आने पर मन में जो चमत्कारी बदलाव हुआ है, इस शब्द के माध्यम से उसे दिखाने में कवि सफल हो पाए हैं| इस शब्द से पता चलता है कि अभी जो प्राकृतिक सुंदरता थी उसमें और भी वृद्धि हुई है।
4. 'पद्माकर के काव्य में अनुप्रास की योजना अनूठी बन पड़ी है।' उक्त कथन को प्रथम छंद के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पद्माकर ने अनुप्रास अलंकार का सहज-स्वाभाविक प्रयोग तो किया ही है| उन्होंने स्थान-स्थान पर अनुप्रास का ऐसा प्रयोग किया है कि उनकी योजना अनूठी बन गई है। इसके उदाहरण इस प्रकार हैं-
(क) भीर भौंर
(ख) छलिया छबीले छैल और छबि छ्वै गए
(ग) गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
(घ) कछू-को-कछू भाखत भनै
(ङ) चलित चतुर
(च) चुराई चित चोराचोरी
(छ) मंजुल मलारन
(ज) छवि छावनो
5. होली के अवसर पर सारा गोकुल गाँव किस प्रकार रंगों के सागर में डूब जाता है? दूसरे छंद के आधार पर लिखिए।
उत्तर
गोकुल की गलियों में सभी लोग होली के रंगों में डूबकर किसी को कुछ भी कह देते हैं। गोपों द्वारा घरों के आगे-पीछे दौड़कर होली खेली जा रही है। होली का हुड़दंग मचा हुआ है। एक गोपी कृष्ण के प्रेम के स्याम रंग में भीगी हुई है। वह इसे हटाना नहीं चाहती है, बस इसी में डूबना चाहती है। किसी को किसी का लिहाज़ नहीं है। कोई भी कुछ भी सुनना नहीं चाहता है। उनके विषय में कुछ भी कहना संभव नहीं है।
6. 'बोरत तौं बोर्यो पै निचोरत बनै नहीं' इस पंक्ति में गोपिका के मन का क्या भाव व्यक्त हुआ है?
उत्तर
इस पंक्ति में गोपी कहती हैं कि मैं तो कृष्ण के रंग में चोरी-चोरी रंग गई हूँ अर्थात मैंने सबसे चोरी अपने मन को कृष्ण के रंग में रंग दिया है। एक बार अपना मन कृष्ण के रंग में रंग देने के पश्चात अब मैं उसे निचोड़ने यानी उससे मुक्त होने के लिए तैयार नहीं हूँ।
7. पद्माकर ने किस तरह भाषा शिल्प से भाव-सौंदर्य को और अधिक बढ़ाया है? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर
पद्माकर ने अपना सारा काव्य ब्रजभाषा में रचा है जिसमें अलंकारों की अधिकता है। इनकी भाषा अलंकारिक है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि इनके प्रिय अलंकार हैं। वर्ण-मैत्री के द्वारा इन्होंने चमत्कार की सृष्टि की है। इन्हें भाषा पर पूरा अधिकार था। कहीं-कहीं इन्होंने फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग भी किया है। लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करने में ये अतिनिपुण थे। इन्होंने मुहावरे और लोकोक्तियों का सुंदर और सहज प्रयोग किया है। ‘छलिया छबीले, छैल औरैै छबि हव गए’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। इसी प्रकार से बसंत वर्णन के पद में कवि ने ‘औरै’ शब्द की बार-बार आवृत्ति द्वारा वसंत ऋतु के प्रभाव को विशिष्टता प्रदान कर दी है। ‘होली वर्णन’ के पद में कवि ने चाक्षक बिंब का आकर्षक विधान किया है तथा ‘ हाँ तो स्याम-रंग में चुराई चित चोरा चोरी’ में अनुप्रास तथा ‘स्याम-रंग’ में श्लेष अलंकार का सहज भाव से प्रयोग किया गया है। इसी कवित्त मैं ‘बोरत तों बोरूयौ पै निचोरत बन्नी नहीं’ में विशेषोक्ति अलंकार है। वसंत वर्णन के अंतर्गत कवि ने गुंजार करते हुए भैवरों के स्वरों को मल्हार राग का आलाप बताते हुए आकर्षक दृश्य उपस्थित किया है। सावन मनभावन सर्बत्र प्रेम की वर्ष करता प्रतीत होता है। मानवीकरण अलंकार की छटा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कवि ने अपने भाषा-शिल्प से अपने काव्य के भाव-सौँदर्य में वृद्धि की है।
8. तीसरे छंद में कवि ने सावन ऋतु की किन-किन विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है?
उत्तर
सावन ऋतु में आकाश घने काले बादलों से घिर जाता है। सब दिशाओं में भँवरे मस्ती में भर गुजार करने लगते हैं। भौंरों के बोलने की आवाज़ सभी दिशाओं में गूँजने लगती है। भँवरों की गुँजार राग मल्हार की तरह मधुर लगती है। झूलों पर प्रेमी जन झूलने लगते है। माननियों का मान भंग हो जाता है। सब तरफ़ प्रेम-ही-प्रेम बरसने लगता है।
9. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) औरै भाँति कुंजन"....."छबि छ्वै गए।
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि पद्माकर द्वारा रचित है। इसमें कवि वसंत ऋतु में बाग-बगीचों में होने वाले परिवर्तन को दर्शा रहे हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में वसंत ऋतु के आने पर वातावरण की विशेषता बताई गई है। पद्माकर कहते हैं कि बाग में भवरों के समूहों की भीड़ बढ़ गई है। बागों में आम के पेड़ों पर बौरें लग गई हैं। इससे पता चलता है कि फल अब लगने ही वाले हैं। भाव यह है कि वसंत ऋतु में बाग में फूल खिलने लगते हैं, जिसके कारण भवरों की संख्या में वृद्धि हो गई है। ऐसे ही आम के वृक्षों पर बौरें लग गई हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि फल लगने वाले हैं।
(ख) तौ लौं चलित "बनै नहीं।
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि पद्माकर द्वारा रचित है। इसमें एक गोपी की दशा का वर्णन किया गया है। उस पर श्याम रंग चढ़ गया है और वह उसे उतारना नहीं चाहती है।
व्याख्या- पद्माकर कहते हैं कि होली खेलते समय एक गोपी कहती हैं कि मेरे पर कृष्ण का रंग चढ़ गया है। दूसरी सखी उसे इस रंग को निचोड़कर उतारने के लिए कहती है। वह गोपी इस रंग को उतारना नहीं चाहती है। यह रंग कृष्ण के प्रेम का रंग है। वह कहती है कि यदि वह इस रंग को निचोड़ देगी, तो यह रंग निकल जाएगा। वह इस रंग में डूब जाना चाहती है। अतः वह दूसरी गोपी को मना कर देती है। भाव यह है कि जो कृष्ण से प्रेम करता है, वह उसके रंग को अपना लेता है। गोपी भी कृष्ण को प्रेम करती है। अतः कृष्ण से प्रेम करने के कारण कृष्ण का काला रंग भी उसे अच्छा लगता है।
(ग) कहैं पद्माकर..."लगत है।
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति प्रसिद्ध कवि पद्माकर द्वारा रचित है। प्रस्तुत पंक्ति में पद्माकर वर्षा ऋतु की विशेषता बता रहे हैं। उनके अनुसार यह प्रेम की ऋतु है और इसमें रूठना-मनाना अच्छा लगता है।
व्याख्या- पद्माकर कहते हैं कि वर्षा ऋतु में प्रेमिका को अपना प्रियमत अच्छा लगता है। इसमें रूठे प्रेमी को मनाने में भी आनंद आता है। भाव यह है कि प्रायः जब प्रियतम रूठ जाता है, तो मनुष्य अहंकार वश मनाता नहीं है। वर्षा ऋतु में यदि प्रेमी नाराज़ हो जाए, तो उसे मनाना अच्छा लगता है। यह ऋतु का ही प्रभाव है कि नाराज़ प्रेमी को मनाकर आनंद प्राप्त किया जाता है।