NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 7, बारहमासा
लेखक - मलिक मुहम्मद जायसी
1. अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहिणी (नागमती) की व्यथा-कथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
अगहन मास में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लंबी हो जाती हैं। विरहिणी नायिका के लिए ये लंबी रातें काटनी अत्यंत दुःखदायी होती हैं। रात के समय वियोग की पीड़ा अधिक कष्टदायक प्रतीत होती है। नागमती को तो दिन भी रात के समान प्रतीत होते हैं। वह तो विरहागिन में दीपक की बत्ती के समान जलती रहती है। अगहन मास की ठंड उसके हुदय को कँपा जाती है। इस ठंड को प्रियतम के साथ तो झेला जा सकता है, पर उसके प्रियतम तो बाहर चले गए हैं। जब वह अन्य स्त्रियों को सं-बिंगे वस्त्रों में सजी-धजी देखती है तब उसकी व्यथा और भी बढ़ जाती है। इस मास में शीत से बचने के लिए जगह-जगह आग जलाई जा रही है, पर विरहिणियों को तो विरह की आग ज़ला रही है। नागमती के हृदय में विरह की अग्नि जल रही है और उसके तन को दग्ध किए दे रही है।
2. 'जीयत खाइ मुएँ नहि छाँड़ा' पंक्ति के संदर्भ में नायिका की विरह-दशा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
नागमती (नायिका) विरह को बाज के समान बताती है। बाज नोंच-नोंच कर खाता है। यह विरह रूपी बाज भी नायिका के शरीर पर नजर गढ़ाए हुए है। वह उसे जीते-जी खा रहा है। उसे लगता है कि उसके मरने पर भी यह उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। नायिका विरह-दशा को झेलते-झेलते तंग आ चुकी है। अब इसे सहना कठिन हो गया है। शीत में अकेले काँप-काँप कर वह मरी जा रही है। इस विरह के कारण नायिका के शरीर का सारा रक्त बहता चला जा रहा है। उसका सारा मांस गल चुका है और हड्डुयाँ शंख के समान सफेद दिखाई देने लगी हैं। वह प्रिय-प्रिय रटती रहती है। वह मरणासन्न दशा में है। वह चाहती है कि उसका पति आकर उसके पंखों को तो समेट ले।
3. माघ महीने में विरहिणी को क्या अनुभूति होती है?
उत्तर
माघ के महीने में ठंड अपने विकराल रूप में विद्यमान होती है। चारों और पाला अर्थात कोहरा छाने लगता है। विरहिणी के लिए यह स्थिति भी कम कष्टप्रद नहीं है। इसमें विरह की पीड़ा मौत के समान होती है। यदि पति की अनुपस्थिति इसी तरह रही, तो माघ मास की ठंड उसे अपने साथ ही ले जाकर मानेगी। यह मास उसके मन में काम की भावना को जागृत करता है। वह प्रियतम से मिलने को व्याकुल हो उठती है। इसी बीच इस मास में होने वाली वर्षा उसकी व्याकुलता को और भी बड़ा देती है। वर्षा में भीगी हुई नागमती को गीले वस्त्र तथा आभूषण तक तीर के समान चुभ रहे हैं। उसे बनाव-श्रृंगार तक भाता नहीं है। प्रियतम के विरह में तड़पते हुए वह सूख कर कांटा हो रही है। उससे ऐसा लगता है इस विरह में वह इस प्रकार जल रही है कि उसका शरीर राख के समान उड़ ही जाएगा।
4. वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें किस माह में गिरते हैं? इससे विरहिणी का क्या संबंध है?
उत्तर
फागुन मास के समय वृक्षों से पत्तियाँ तथा वनों से ढाँखें गिरते हैं। विरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुख देने वाला है। चारों ओर गिरती पत्तियाँ उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही हैं। हर एक गिरता पत्ता उसके मन में विद्यमान आशा को धूमिल कर रहा है कि उसके प्रियतम शीघ्र ही आएँगे। पत्तों का पीला रंग उसके शरीर की स्थिति को दर्शा रहा है। जैसे अपने कार्यकाल समाप्त हो जाने पर पत्ते पीले रंग के हो जाते हैं, वैसे ही प्रियतम के विरह में जल रही नायिका का रंग पीला पड़ रहा है। अतः फागुन मास उसे दुख को शांत करने के स्थान पर बड़ा ही रहा है। फागुन के समाप्त होते-होते वृक्षों में नई कोपलों तथा फूल आकर उसमें पुनः जान डालेंगे। परन्तु नागमती के जीवन में सुख का पुनः आगमन कब होगा यह कहना संभव नहीं है।
5. निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) पिय सौं कहेहु सँदेसड़ा, ऐ भँवरा ऐ काग। सो धनि बिरहें जरि मुई, तेहिक धुआँ हम लाग।
उत्तर
दुखी नागमती भौरों तथा कौए से अपने प्रियतम के पास संदेशा ले जाने को कहती है। उसके अनुसार वे उसके विरह का हाल शीघ्र ही जाकर उसके प्रियतम को बताएँ। प्रियतम के विरह में नागमती कितने गहन दुख भोग रही है इसका पता प्रियतम को अवश्य लगा चाहिए। अतः वह उन्हें संबोधित करते हुए कहती है कि तुम दोनों वहाँ जाकर प्रियतम को मेरी स्थिति बताना और कहना की तुम्हारी पत्नी विरह रूपी अग्नि में जलते हुए मर गई है। उस अग्नि से उठने वाले काले धुएँ के कारण हमारा रंग भी काला पड़ गया है।
(ख) रकत ढरा माँसू गरा, हाड़ भए सब संख। धनि सारस होइ ररि मुई, आइ समेटहु पंख ।।
उत्तर
विरहिणी नायिका नागमती कहती है कि विरह के कारण मेरे शरीर का सारा रक्त ढर गया (बह गया), मेरे शरीर का सारा मांस गल चुका है और सारी हड्डियाँ शंख के समान हो गई हैं। मैं तो सारस की जोड़ी की भाँति प्रिय को रटती हुई मरी जा रही हूँ। अब मैं मरणावस्था में हूँ। अब तो मेरे प्रिय यहाँ आकर मेरे पंखों को समेट लें।
(ग) तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई, तन तिनुवर भा डोल। तेहि पर बिरह जराई कै. चहै उड़ावा झोल ।।
उत्तर
विरहिणी नायिका अपनी दीन दशा का वर्णन करते हुए कहती है कि हे प्रिय! तुम्हारे बिना, मैं विरह में सूखकर तिनके के समान दुबली-पतली हो गई हूँ। मेरा शरीर वृक्ष की भाँति हिलता है। इस पर भी यह विरह की आग मुझे जलाकर राख बनाने पर तुली है। यह इस राख को भी उड़ा देना चाहता है अर्थात् मेरे अस्तित्व को मिटाने पर तुला है।
(घ) यह तन जारों छार कै, कहाँ कि पवन उड़ाउ। मकु तेहि मारग होइ परौं, कंत धरै जाँ पाउ।
उत्तर
नागमती त्याग भावना को व्यंजित करने हुए कहती है कि पति के लिए मैं अपने शरीर को जलाकर राख बना देने को तैयार हूँ। पवन मेरे शरीर की राख को उड़ाकर ले जाए और मेरे पति के मार्ग में बिछा दे ताकि मेरा प्रियतम मेरी राख पर अपने पैर रख सके। इस प्रकार मैं भी उनके चरणों का स्पर्श पा जाऊँगी।
6. प्रथम दो छंदों में से अलंकार छाँटकर लिखिए और उनसे उत्पन्न काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
पहला पद- यह दुःख दगध न जानै कंतू। जोबन जरम करै भसमंतू।प्रस्तुत पद की भाषा अवधी। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। इसमें 'दुःख दगध' तथा 'जोबर जर' में अनुप्रास अलंकार है। वियोग से उत्पन्न विरह को बहुत मार्मिक रूप में वर्णन किया गया है। विरहणि के दुख की तीव्रता पूरे पद में दिखाई देती है।
दूसरा पद- बिरह बाढ़ि भा दारुन सीऊ। कँपि-कँपि मरौं लेहि हरि जीऊ।
प्रस्तुत पद की भाषा अवधी है। शब्दों का इतना सटीक वर्णन किया गया है कि भाषा प्रवाहमयी और गेयता के गुणों से भरी है। भाषा सरल और सहज है। 'बिरह बाढ़ि' में अनुप्रास अलंकार है। 'कँपि-कँपि' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। पूस के माह में ठंड की मार का सजीव वर्णन किया गया है।