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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 11, सुमिरिनी के मनके

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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 11, सुमिरिनी के मनके

लेखक - पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी

(क) बालक बच गया

1. बालक से उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के कौन-कौन से प्रश्न पूछे गए?

उत्तर

बालक से जितने भी प्रश्न पूछे गए वे सभी प्रश्न उसकी उम्र और योग्यता से ऊपर के थे। जैसे-

  1. धर्म के लक्षण,
  2. रसों के नाम तथा उनके उदाहरण,
  3. पानी के चार डिग्री के नीचे ठंड फैल जाने के बाद भी मछलियाँ कैसे जिंदा रहती हैं
  4. चंद्रग्रहण होने का वैज्ञानिक

इत्यादि प्रश्न उसकी उम्र की तुलना में बहुत अधिक गंभीर थे।

2. बालक ने क्यों कहा कि मैं यावज्जन्म लोकसेवा करूँगा?

उत्तर

बालक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसके पिता ने उसे इस प्रकार का उत्तर रटा रखा था। यह एक संवाद है, जिसे बोलने वाला व्यक्ति वाह! वाह! पाता है। पिता ने सोचा होगा कि इस प्रकार का संवाद सिखाकर उसकी योग्यता पर श्रेष्ठता का ठप्पा लग जाएगा। परन्तु इस प्रकार बुलवाकर वह बच्चे के बालपन को समाप्त करने का प्रयास कर रहे थे। पिता को सामाजिक प्रतिष्ठा बच्चे के बालपन से अधिक प्रिय थी।

3. बालक द्वारा इनाम में लड्डू माँगने पर लेखक ने सुख की साँस क्यों भरी?

उत्तर

लेखक देख रहा था कि बालक को अपने प्राकृतिक स्वभाव के अनुरूप बोलने नहीं दिया जा रहा था। उसे रटी-रटाई बातें कहने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा था। उसे समय से पूर्व वह सब बताया जा रहा था जिसे वह जानता-समझता नहीं था। लेखक को बालक से किए गए प्रश्न और उनके रटे-रटाए उत्तर अस्वाभाविक लग रहे थे। अंत में जब बालक से उसकी इनाम लेने के बारे में इच्छा पूछी गई तब उसने बालकोचित वस्तु लट्ट् माँगा। इसे सुनकर लेखक को अच्छा लगा और उसने सुख की साँस ली, क्योंकि ऐसा माँगना बालक के लिए स्वाभाविक ही था।

4. बालक की प्रवृत्तियों का गला घोटना अनुचित है, पाठ में ऐसा आभास किन स्थलों पर होता है कि उसकी प्रवृत्तियों का गला घोटा जाता है?

उत्तर

यह बात बिल्कुल सही है कि बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटना अनुचित है। उसकी प्रवृत्तियों को सहज रूप से अभिव्यक्त होने देना चाहिए। तभी उसका पूर्ण विकास हो सकेगा। पाठ में ऐसा आभास निम्नलिखित स्थलों पर होता है कि बालक की प्रवृत्तियों का गला घोंटा जा रहा है। – जब बालक से ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जिनको समझने और उत्तर देने की अभी उसकी आयु नहीं है। – बालक की दृष्टि भूमि से उठ नहीं रही थी अर्थात् वह भारी तनाव की स्थिति में था। – बालक की आँखों में कृत्रिम और स्वाभाविक भावों की लड़ाई साफ झलक रही थी।

5. "बालक बच गया। उसके बचने की आशा है क्योंकि वह 'लड्डू की पुकार जीवित वृक्ष के हरे पत्तों का मधुर मर्मर था, मरे काठ की अलमारी की सिर दुखानेवाली खड़खड़ाहट नहीं" कथन के आधार पर बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

छोटे बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ होती हैं कि वह जिद्द करे, अन्य बच्चों के साथ खेले, ऐसे प्रश्न पूछे जो उसकी समझ से परे हों, खाने-पीने की वस्तुओं के प्रति आकर्षित और ललायित हो, रंगों से प्रेम करे, हरदम उछले-कूदे, अपने सम्मुख आने वाली हर वस्तु के प्रति जिज्ञासु हो, शरारतें करे इत्यादि। ये एक साधारण बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ होती हैं और यदि ये प्रवृत्तियाँ न हो, तो चिंताजनक स्थिति मानी जाती है। वह उसके जीवन का आरंभिक समय है। पाठ में लेखक ने जिस बालक का उल्लेख किया है पिता ने उसकी इन प्रवृत्तियों को अपनी उच्चाकांशा के नीचे दबा दिया था। बालक की उम्र आठ वर्ष की थी। उसके अंदर अभी इतनी समझ विकसित नहीं हुई थी कि गंभीर विषयों को समझे। पिता द्वारा उसे यह सब रटवाया गया था। उसे इन सब बातों को रटवाने के लिए पिता ने बच्चे के बालमन को कितनी चोटें पहुँचायी होगी यह शोचनीय है। उनके इस प्रयास में बालक की बालसुलभ प्रवृत्तियों का ह्रास तो अवश्य हुआ होगा। परन्तु उसका लड्डू माँगना इस ओर संकेत करता है कि अब भी कहीं उसमें बालसुलभ प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं, जो उसे और बच्चों के समान ही बनाती थी। लेखक को विश्वास था कि अब भी बालक बचा हुआ है और प्रयास किया जाए, तो उसे उसके स्वाभाविक रूप में रखा जा सकता है। लेखक का यह कथन इसी ओर संकेत करता है।

6. उम्र के अनुसार बालक में योग्यता का होना आवश्यक है किन्तु उसका ज्ञानी या दार्शनिक होना जरूरी नहीं। 'लर्निंग आउटकम' के बारे में विचार कीजिए।

उत्तर

देशभर के स्कूलों में आठवीं तक के बच्चों ने लर्निंग आउटकम में क्या सीखा? यह स्कूल अपने ब्लैक बोर्ड पर डिस्प्ले करने के साथ ही अभिभावकों को भी बताए। क्योंकि स्कूलों में दी जा रही शिक्षा में बच्चा क्या सीख पाया। यह जानना अभिभावक के लिए जरूरी है।
यह बातें बुधवार को विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावडे़कर ने कही। जावडेकर ने अन्य राज्यों के शिक्षा मंत्रियों को बताया कि लर्निंग आउटकम में पुस्तकों के अनुवाद के लिए बजट की स्वीकृति भी दे दी गई है। सीसीई की बजाए एनसीईआरटी एक किताब तैयार कर रहा है। इससे लर्निंग आउटकम में कक्षावार, विषयवार बच्चों में विषय के प्रति बेहतर समक्ष बनेगी। किताब में ऐसे चित्र होंगे, जिससे बच्चों में विषय को समझने में सरलता बनेगी। इसके अलावा अनट्रेंड शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए मार्च 2019 का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस श्रेणी के शिक्षकों के लिए 15 सितंबर 2017 तक डीईएलईएल कोर्स करने के लिए स्वयं पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कहा है। जहां उन्हें प्रशिक्षण की पाठ्य सामग्री फ्री में उपलब्ध होगी। इतना ही नहीं स्वयं प्रभा चैनल पर फ्री में लेक्चर प्रसारित किए जाएंगे। बता दें कि आउटकम लर्निंग आठ विषय साइंस, सोशल साइंस, अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, गणित और एनवायरमेंटल साइंस में सुधार के लिए है।

(ख) घड़ी के पुर्जे

1. लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए 'घड़ी के पुर्जे' का दृष्टांत क्यों दिया है?

उत्तर

लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए घड़ी के पुर्जे का दृष्टांत इसलिए दिया है –

  • घड़ी पुर्जों के बलबूते पर चलती है और इसी प्रकार धर्म अपने नियम-कायदों पर चलता है।
  • जिस प्रकार हमारा काम घड़ी से समय जानना होता है, उसी प्रकार धर्म से हमारा काम धर्म के ऊपरी स्वरूप को जानना होता है। (धर्म के ठेकेदारों पर व्यंग्य)
  • आम आदमी को घड़ी की बनावट, उसके पुर्जों की जानकारी नहीं होती, उसी प्रकार आम आदमी को धर्म की संरचना को जानने की जरूरत नहीं है। उसे उतना ही जानना चाहिए जितना धर्मोपदेशक बताएँ।
  • इस दृष्टांत से लेखक ने यह बताना चाहा है कि धर्मोपदेशक धर्म को रहस्य बनाए रखना चाहते हैं ताकि वे लोगों को अपने इशारों पर चला सकें। वे केवल ऊपरी-ऊपरी बातें बताते हैं।

2. 'धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है।' आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? धर्म संबंधी अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर

धर्म का रहस्य जानना केवल वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम नहीं है, यह हमारा भी काम है। धर्म का प्रभाव हम सभी पर पढ़ता है और जिस बात का प्रभाव हम सभी पर पड़ता है उसको जानना हमारा अधिकार है। जब तक हम धर्म का रहस्य नहीं जानते तब तक ये धर्माचार्य हमें मूर्ख बनाते रहेंगे और हमारी अज्ञानता का लाभ उठाते रहेंगे। हमें धर्म के स्वरूप के बारे में जानना चाहिए। हमें यह भी समझना चाहिए कि क्या-क्या बातें धर्मानुकूल हैं और क्या बातें धर्म के प्रतिकूल हैं। धर्म आस्था का विषय है। धर्म के नाम पर शोषण नहीं किया जाना चाहिए। धर्म के बारे में हमारा अज्ञान ही हमारा शोषण करता है। ये तथाकथित धर्माचार्य धर्म के रहस्यों पर से परदा हटाने की बजाय उसको और अधिक रहस्यमय बना देते हैं ताकि वे अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे।

3. घड़ी समय का ज्ञान कराती है। क्या धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध नहीं कराते?

उत्तर

घड़ी का कार्य ही समय का ज्ञान करवाना है। वह समय बताती है इसलिए मूल्यवान है। लोग तभी उसका प्रयोग करते हैं। यदि घड़ी समय दिखाना बंद कर दे, तो लोगों के लिए घड़ी का मूल्य ही समाप्त हो जाए। इसी प्रकार धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार अपने समय का बोध कराते हैं। मनुष्य के आरंभिक समय में धर्म का नामो-निशान नहीं था। अतः उसके चिह्न हमें नहीं मिलते। परन्तु जैसे-जैसे मानव सभ्यता ने विकास किया धर्म संबंधी मान्यताएँ या विचार उत्पन्न होने लगे। धर्म का अर्थ हर संप्रदाय ने अलग-अलग रूप में किया। यह परोपकार तथा मानवता पर आधारित था लेकिन इसमें आंडबरों ने स्थान बनाना आरंभ कर दिया। धर्म को अस्तित्व में लाया गया ताकि मनुष्य को बुराई की तरफ जाने से रोक जा सके। इसके साथ ही निराशा के समय में जीवन के प्रति आस्था और विश्वास उत्पन्न किया जा सके। पूरे विश्व में विभिन्न लोगों को मानने वाले लोग विद्यमान है। भारत में हिन्दु, जैन, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम जाने कितने ही धर्म हैं। ये सब इस बात का प्रतीक है कि उस समय में लोगों ने इसे क्यों स्वीकारा और क्यों इसका उद्भव और विकास हुआ। हर समय में अलग-लग धर्माचार्य हुए हैं, उन्होंने इसकी अपने-अपने तरीकों से व्याख्या की है और इसे परिभाषित भी किया है। लोग इसे अपनी समझ के अनुसार अलग-अलग दिशाओं में ले जाते हैं। उस समय इनका लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और यही कारण है कि हम इस बात का समर्थन करते हैं।

4. धर्म अगर कुछ विशेष लोगों वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे पुजारियों रयों की मुड्डी में है त में है तो आम आदमी और समाज का उससे क्या संबंध होगा? अपनी राय लिखिए।

उत्तर

अगर धर्म कुछ विशेष लोगों वेदशास्त्र, धर्माचार्यों, मठाधीशों, पंडे-पुजारियों की मुट्ठी में है, तो आम आदमी और समाज उसकी कठपुतली बनकर रह जाएगा। वे उनके स्वार्थ की पूर्ति करने का मार्ग होगा और उसे वे समय-समय पर चूसते रहेंगे। इस तरह समाज और आदमी से इनका संबंध शोषक और शोषण का रह जाएगा। ये शोषक बनकर समाज में अराजकता फैलाएँगे। 'धर्म' आदमी और समाज की पहुँच से दूर हो जाएगा। धर्म उनके लिए ऐसी मज़बूरी बनकर रह जाएगा और इसमें विभिन्न तरह के आडंबर विद्यमान हो जाएँगे। भारत के लोग बहुत समय पहले इन्हीं कुरीतियों से ग्रस्त थे। अगर दोबारा ऐसा हो जाता है, तो उसी प्रकार की विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएँगी और लोगों का जीवन दुर्भर हो जाएगा। इस तरह समाज का रूप विकृत हो जाएगा।

5. 'जहाँ धर्म पर कुछ मुट्ठीभर लोगों का एकाधिकार धर्म को संकुचित अर्थ प्रदान करता है वहीं धर्म का आम आदमी से संबंध उसके विकास एवं विस्तार का द्योतक है।' तर्क सहित व्याख्या कीजिए।

उत्तर

यह बात पूर्णतः सत्य है कि जब धर्म पर मुट्ठी भर लोगों का आधिपत्य हो जाता है तब धर्म संकुचित हो जाता है अर्थात् धर्म का स्वरूप सिकुड़ जाता है। धर्म के तथाकथित ठेकेदार धर्म का उपयोग अपने हित-साधन के लिए करते हैं। ये लोग धर्म को अपने तक सीमित रखते हैं। जब धर्म का संबंध आम आदमी के साथ जुड़ता है तब धर्म का विकास होता है और धर्म विस्तार पा जाता है। इसका अर्थ हुआ कि धर्म का संबंध आम लोगों से है। जब धर्म उनके साथ जुड़ जाता है तब वह विस्तार पा जाता है। धर्म को व्यापक बनाने के लिए उसे धर्माचार्यों के चंगुल से निकालकर सामान्य जन तक ले जाना होगा।

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6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) 'वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है कि घड़ी के पुर्जे जानें, तुम्हें इससे क्या?

उत्तर

वेदशास्त्रों को जानने वाले धर्माचार्य धर्म के ठेकेदार बनते हैं। वे ही धर्म के रहस्य को अपनी दृष्टि से हमें समझाते हैं। वे एक प्रकार से घड़ीसाज का सा काम करते हैं। उनका ऐसा करना उचित नहीं है। हमें भी धर्म की जानकारी होनी चाहिए। धर्म का संबंध हम सभी से है। हमें इन तथाकथित धर्माचायों को बेवजह इतना अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए।

(ख) 'अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।'

उत्तर

यह ठीक है कि अनाड़ी आदमी घड़ी को बिगाड़ देगा, पर जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास करके आया है अर्थात् घड़ी का पूरा जानकार है, उसे घड़ी देने में कोई हर्ज नहीं है। इसी प्रकार की स्थिति धर्म की है। जो धर्म का जानकार नहीं है, उससे तो खतरा हो सकता है, पर जो धर्म की पूरी जानकारी रखता है, उसे तो धर्म की व्याख्या करने दो।

(ग) 'हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्जे सुधारना, तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।'

उत्तर

जिस प्रकार पुराने जमाने की घड़ी को जेब में डाले रहने पर यह भ्रम तो बना ही रहता है कि मेरे पास घड़ी है, चाहे वह बंद ही क्यों न हो। इसी प्रकार की स्थिति धर्म की भी है। हम धर्म के पुराने स्वरूप को लेकर इस भ्रम में रहते हैं कि हम धार्मिक हैं और धर्म के बारे में सब कुछ जानते हैं। इस स्थिति को सुधारने की आवश्यकता है।

(ग) ढेले चुन लो

1. वैदिककाल में हिंदुओं में कैसी लाटरी चलती थी जिसका जिक्र लेखक ने किया है।

उत्तर

उस काल में एक हिंदु युवक विवाह करने हेतु युवती के घर जाता था। यह प्रथा लाटरी के समान थी। वह अपने साथ सात ढेले ले जाता था और युवती के सम्मुख रखकर उससे चुनने के लिए कहता था। इन ढेलों की मिट्टी अलग-अलग तरह की होती थी। इस विषय में केवल युवक को ही ज्ञान होता था कि मिट्टी कौन-से स्थान से लायी गई है। इनमें मसान, खेत, वेदी, चौराहे तथा गौशाला की मिट्टियाँ सम्मिलित हुआ करती थी। हर मिट्टी के ढेले का अपना अर्थ हुआ करता था। यदि युवती गौशाला से लायी मिट्टी का ढेला उठाती थी, तो उससे जन्म लेने वाला पुत्र पशुओं से धनवान माना जाता था। वेदी की मिट्टी से बने ढेले को चुनने वाली युवती से उत्पन्न पुत्र विद्वान बनेगा इस तरह की मान्यता थी। मसान की मिट्टी से बने ढेले को चुनना अमंगल का प्रतीक माना जाता था। अतः हर ढेले के साथ एक मान्यता जुड़ी होती थी। यह प्रथा एक लाटरी के समान थी। जिसने सही ढेला उठा लिया, उसे दुल्हन या वर प्राप्त हो गया और जिसने गलत ढेला उठा लिया, उसके हाथ निराशा लगती थी। लेखक इसी कारण से इस प्रथा को लाटरी से जोड़ दिया है।

2. 'दुर्लभ बंधु' की पेटियों की कथा लिखिए।

उत्तर

दुर्लभ बंधु एक नाटक है। इसका पात्र पुरश्री है। उसके सामने तीन पेटियाँ रख दी जाती हैं। प्रत्येक पेटी अलग-अलग धातु की बनी होती है। इसमें से एक सोना, दूसरी चाँदी तथा तीसरी लोहे से बनी होती है। प्रत्येक व्यक्ति को यह स्वतंत्रता है कि वह अपनी मनपसंद पेटी को चूने। अकड़बाज़ नामक व्यक्ति सोने की पेटी को चुनता है तथा वह खाली हाथ वापस जाता है। एक अन्य व्यक्ति चाँदी की पेटी चुनता है और लोभ के कारण उसे भी लौटना पड़ता है। इसके विपरीत जो सच्चा और परिश्रमी होता है, वह लोहे की पेटी चुनता है। इसके फलस्वरूप उसे घुड़दौड़ में प्रथम पुरस्कार प्राप्त होता है।

3. 'जीवन साथी' का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं।

उत्तर

ढेला चुनना प्राचीन समय की प्रथा है। इसमें वर या लड़का अपने साथ मिट्टी के ढेले लाता है। हर ढेले की मिट्टी अलग-अलग स्थानों से लायी जाती थी। माना जाता था कि दिए गए अलग-अलग ढेलों में से लड़की जो भी ढेला उठाएगी, उस ढेले की मिट्टी के गुणधर्म के अनुसार वैसी ही संतान प्राप्त होगी। जैसे वेदी का ढेला चुनने से विद्वान पुत्र की प्राप्ति होगी। गौशाला की मिट्टी से बनाए गए ढेले को चुनने से संतान पशुधन से युक्त होगा और यदि खेत की मिट्टी से बने ढेले को चुन लिया जाए, तो कहने ही क्या होने वाली संतान भविष्य में जंमीदार बनेगी। इस प्रकार के फायदे देखकर ही यह प्रथा लंबे समय तक समाज में कायम रही।
इससे यह फल प्राप्त होते होगें।-

  • मनोवांछित संतान न मिलने पर पछताना पड़ता होगा।
  • अच्छी लड़कियाँ इस प्रथा के कारण हाथ से निकल जाती होगी।
  • अपनी मूर्खता समझ में आती होगी।

4. मिट्टी के ढेलों के संदर्भ में कबीर की साखी की व्याख्या कीजिए-

पत्थर पूजे हरि मिलें तो तू पूज पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार।।

उत्तर

मिट्टी के ढेलों से यदि मनुष्य को उसकी मनोवांछित संतान प्राप्ति होती है, तो फिर कहने ही क्या थे? मनुष्य को कभी ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता ही नहीं होती या उसे परिश्रम ही नहीं करना पड़ता। कबीर ने सही कहा है कि यदि पत्थर पूजकर हरि प्राप्त हो जाते हैं, तो मैं पहाड़ पूजता। क्योंकि पहाड़ पूजने से क्या पता भगवान शीघ्र ही प्राप्त हो जाते। उनके अनुसार इससे तो मैं चक्की को पूजना उचित मानता हूँ क्योंकि वह सारे संसार का पेट भरने का कार्य करती है। लेखक इस दोहे के माध्यम से मनुष्य पर व्यंग्य करता है। उसके अनुसार मनुष्य को भविष्य का निर्धारण मिट्टी के ढेलों के आधार पर करना मूर्खता है। ढेले किसी का भाग्य बना नहीं सकते हैं। अलबत्ता उसे ऐसी स्थिति में अवश्य डाल सकते हैं, जहाँ उसे जीवनभर के लिए पछताना पड़े। लेखक की बात यह दोहा बहुत ही अच्छी तरह से स्पष्ट करता है।

5. जन्मभर के साथी का चुनाव मिट्टी के ढेले पर छोड़ना बुद्धिमानी नहीं है। इसलिए बेटी का शिक्षित होना अनिवार्य है। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के संदर्भ में विचार कीजिए।

उत्तर

“आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं।” – प्रधान मंत्री ने अपने गोद लिए गांव जयापुर के नागरिकों से

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शुरूआत प्रधान मंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से पूरे जीवन-काल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिलती है और महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान होता है। यह योजना तीन मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है अर्थात महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय।

इस योजना के मुख्य घटकों में शामिल हैं प्रथम चरण में PC तथा PNDT Act को लागू करना, राष्ट्रव्यापी जागरूकता और प्रचार अभियान चलाना तथा चुने गए 100 जिलों (जहां शिशु लिंग अनुपात कम है) में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्य करना। बुनियादी स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण देकर, संवेदनशील और जागरूक बनाकर तथा सामुदायिक एकजुटता के माध्यम से उनकी सोच को बदलने पर जोर दिया जा रहा है।

एनडीए सरकार कन्या शिशु के प्रति समाज के नजरिए में परिवर्तनकारी बदलाव लाने का प्रयास कर रही है। प्रधान मंत्री मोदी ने अपने मन की बात में हरियाणा के बीबीपुर के एक सरपंच की तारीफ की जिसने ‘Selfie With Daughter’ पहल की शुरूआत की। प्रधान मंत्री ने लोगों से बेटियों के साथ अपनी सेल्फी भेजने का अनुरोध भी किया और जल्द ही यह विश्व भर में हिट हो गया। भारत और दुनिया के कई देशों के लोगों ने बेटियों के साथ अपनी सेल्फी भेजी और यह उन सबके लिए एक गर्व का अवसर बन गया जिनकी बेटियां हैं।

6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) 'अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।'

उत्तर

इन पंक्तियों पर लेखक भारतीय संस्कृति में विद्यमान आडंबरों पर चोट करता है। उसके अनुसार हम अपने द्वारा चुने गए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करने को बुरा मानते हैं। यह कार्य तो हमने स्वयं किया होता है। यदि यह बात बुरी है, तो हम ग्रहों की चाल के अनुसार अपने जीवन को जोड़े देते हैं, तो इसे सही क्यों कहा जाए? भाव यह है कि जिन ग्रह-नक्षत्रों को हमने देखा ही नहीं है। उनकी चाल के अनुसार अपने जीवन का निर्धारण करना सबसे बड़ी मूर्खता है। अतः यदि हम एक बात को गलत कहते हैं, तो दूसरी बात अपने आप गलत सिद्ध हो जाती है।

(ख) 'आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से. आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।'

उत्तर

यह बात वात्स्यायन ने कही थी। उनके अनुसार जो वस्तु हमारे पास इस समय विद्यमान है, हमें उसे ही सही कहना चाहिए। हमारे द्वारा आने वाले कल में या बीते कल में विद्यमान वस्तु को सही कहना मूर्खता है। कल मोहरे सोने की थी या चाँदी थी कि वह बात हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है कि आज हमारे हाथ में पैसा है। हमारे वर्तमान में जो पैसा हमारे पास है, वह महत्वपूर्ण होना चाहिए। अतः यदि हम आँखों देखे ढेले को सच मानते हैं, तो यही सही है। लाखों दूर स्थित पिंड पर हमें विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि हमने उसे देखा ही नहीं है।

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