6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) 'वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है कि घड़ी के पुर्जे जानें, तुम्हें इससे क्या?
उत्तर
वेदशास्त्रों को जानने वाले धर्माचार्य धर्म के ठेकेदार बनते हैं। वे ही धर्म के रहस्य को अपनी दृष्टि से हमें समझाते हैं। वे एक प्रकार से घड़ीसाज का सा काम करते हैं। उनका ऐसा करना उचित नहीं है। हमें भी धर्म की जानकारी होनी चाहिए। धर्म का संबंध हम सभी से है। हमें इन तथाकथित धर्माचायों को बेवजह इतना अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए।
(ख) 'अनाड़ी के हाथ में चाहे घड़ी मत दो पर जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास कर आया है, उसे तो देखने दो।'
उत्तर
यह ठीक है कि अनाड़ी आदमी घड़ी को बिगाड़ देगा, पर जो घड़ीसाजी का इम्तहान पास करके आया है अर्थात् घड़ी का पूरा जानकार है, उसे घड़ी देने में कोई हर्ज नहीं है। इसी प्रकार की स्थिति धर्म की है। जो धर्म का जानकार नहीं है, उससे तो खतरा हो सकता है, पर जो धर्म की पूरी जानकारी रखता है, उसे तो धर्म की व्याख्या करने दो।
(ग) 'हमें तो धोखा होता है कि परदादा की घड़ी जेब में डाले फिरते हो, वह बंद हो गई है, तुम्हें न चाबी देना आता है न पुर्जे सुधारना, तो भी दूसरों को हाथ नहीं लगाने देते।'
उत्तर
जिस प्रकार पुराने जमाने की घड़ी को जेब में डाले रहने पर यह भ्रम तो बना ही रहता है कि मेरे पास घड़ी है, चाहे वह बंद ही क्यों न हो। इसी प्रकार की स्थिति धर्म की भी है। हम धर्म के पुराने स्वरूप को लेकर इस भ्रम में रहते हैं कि हम धार्मिक हैं और धर्म के बारे में सब कुछ जानते हैं। इस स्थिति को सुधारने की आवश्यकता है।
(ग) ढेले चुन लो
1. वैदिककाल में हिंदुओं में कैसी लाटरी चलती थी जिसका जिक्र लेखक ने किया है।
उत्तर
उस काल में एक हिंदु युवक विवाह करने हेतु युवती के घर जाता था। यह प्रथा लाटरी के समान थी। वह अपने साथ सात ढेले ले जाता था और युवती के सम्मुख रखकर उससे चुनने के लिए कहता था। इन ढेलों की मिट्टी अलग-अलग तरह की होती थी। इस विषय में केवल युवक को ही ज्ञान होता था कि मिट्टी कौन-से स्थान से लायी गई है। इनमें मसान, खेत, वेदी, चौराहे तथा गौशाला की मिट्टियाँ सम्मिलित हुआ करती थी। हर मिट्टी के ढेले का अपना अर्थ हुआ करता था। यदि युवती गौशाला से लायी मिट्टी का ढेला उठाती थी, तो उससे जन्म लेने वाला पुत्र पशुओं से धनवान माना जाता था। वेदी की मिट्टी से बने ढेले को चुनने वाली युवती से उत्पन्न पुत्र विद्वान बनेगा इस तरह की मान्यता थी। मसान की मिट्टी से बने ढेले को चुनना अमंगल का प्रतीक माना जाता था। अतः हर ढेले के साथ एक मान्यता जुड़ी होती थी। यह प्रथा एक लाटरी के समान थी। जिसने सही ढेला उठा लिया, उसे दुल्हन या वर प्राप्त हो गया और जिसने गलत ढेला उठा लिया, उसके हाथ निराशा लगती थी। लेखक इसी कारण से इस प्रथा को लाटरी से जोड़ दिया है।
2. 'दुर्लभ बंधु' की पेटियों की कथा लिखिए।
उत्तर
दुर्लभ बंधु एक नाटक है। इसका पात्र पुरश्री है। उसके सामने तीन पेटियाँ रख दी जाती हैं। प्रत्येक पेटी अलग-अलग धातु की बनी होती है। इसमें से एक सोना, दूसरी चाँदी तथा तीसरी लोहे से बनी होती है। प्रत्येक व्यक्ति को यह स्वतंत्रता है कि वह अपनी मनपसंद पेटी को चूने। अकड़बाज़ नामक व्यक्ति सोने की पेटी को चुनता है तथा वह खाली हाथ वापस जाता है। एक अन्य व्यक्ति चाँदी की पेटी चुनता है और लोभ के कारण उसे भी लौटना पड़ता है। इसके विपरीत जो सच्चा और परिश्रमी होता है, वह लोहे की पेटी चुनता है। इसके फलस्वरूप उसे घुड़दौड़ में प्रथम पुरस्कार प्राप्त होता है।
3. 'जीवन साथी' का चुनाव मिट्टी के ढेलों पर छोड़ने के कौन-कौन से फल प्राप्त होते हैं।
उत्तर
ढेला चुनना प्राचीन समय की प्रथा है। इसमें वर या लड़का अपने साथ मिट्टी के ढेले लाता है। हर ढेले की मिट्टी अलग-अलग स्थानों से लायी जाती थी। माना जाता था कि दिए गए अलग-अलग ढेलों में से लड़की जो भी ढेला उठाएगी, उस ढेले की मिट्टी के गुणधर्म के अनुसार वैसी ही संतान प्राप्त होगी। जैसे वेदी का ढेला चुनने से विद्वान पुत्र की प्राप्ति होगी। गौशाला की मिट्टी से बनाए गए ढेले को चुनने से संतान पशुधन से युक्त होगा और यदि खेत की मिट्टी से बने ढेले को चुन लिया जाए, तो कहने ही क्या होने वाली संतान भविष्य में जंमीदार बनेगी। इस प्रकार के फायदे देखकर ही यह प्रथा लंबे समय तक समाज में कायम रही।
इससे यह फल प्राप्त होते होगें।-
- मनोवांछित संतान न मिलने पर पछताना पड़ता होगा।
- अच्छी लड़कियाँ इस प्रथा के कारण हाथ से निकल जाती होगी।
- अपनी मूर्खता समझ में आती होगी।
4. मिट्टी के ढेलों के संदर्भ में कबीर की साखी की व्याख्या कीजिए-
पत्थर पूजे हरि मिलें तो तू पूज पहार।
इससे तो चक्की भली, पीस खाय संसार।।
उत्तर
मिट्टी के ढेलों से यदि मनुष्य को उसकी मनोवांछित संतान प्राप्ति होती है, तो फिर कहने ही क्या थे? मनुष्य को कभी ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता ही नहीं होती या उसे परिश्रम ही नहीं करना पड़ता। कबीर ने सही कहा है कि यदि पत्थर पूजकर हरि प्राप्त हो जाते हैं, तो मैं पहाड़ पूजता। क्योंकि पहाड़ पूजने से क्या पता भगवान शीघ्र ही प्राप्त हो जाते। उनके अनुसार इससे तो मैं चक्की को पूजना उचित मानता हूँ क्योंकि वह सारे संसार का पेट भरने का कार्य करती है। लेखक इस दोहे के माध्यम से मनुष्य पर व्यंग्य करता है। उसके अनुसार मनुष्य को भविष्य का निर्धारण मिट्टी के ढेलों के आधार पर करना मूर्खता है। ढेले किसी का भाग्य बना नहीं सकते हैं। अलबत्ता उसे ऐसी स्थिति में अवश्य डाल सकते हैं, जहाँ उसे जीवनभर के लिए पछताना पड़े। लेखक की बात यह दोहा बहुत ही अच्छी तरह से स्पष्ट करता है।
5. जन्मभर के साथी का चुनाव मिट्टी के ढेले पर छोड़ना बुद्धिमानी नहीं है। इसलिए बेटी का शिक्षित होना अनिवार्य है। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के संदर्भ में विचार कीजिए।
उत्तर
“आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं।” – प्रधान मंत्री ने अपने गोद लिए गांव जयापुर के नागरिकों से
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शुरूआत प्रधान मंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से पूरे जीवन-काल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिलती है और महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान होता है। यह योजना तीन मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है अर्थात महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय।
इस योजना के मुख्य घटकों में शामिल हैं प्रथम चरण में PC तथा PNDT Act को लागू करना, राष्ट्रव्यापी जागरूकता और प्रचार अभियान चलाना तथा चुने गए 100 जिलों (जहां शिशु लिंग अनुपात कम है) में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्य करना। बुनियादी स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण देकर, संवेदनशील और जागरूक बनाकर तथा सामुदायिक एकजुटता के माध्यम से उनकी सोच को बदलने पर जोर दिया जा रहा है।
एनडीए सरकार कन्या शिशु के प्रति समाज के नजरिए में परिवर्तनकारी बदलाव लाने का प्रयास कर रही है। प्रधान मंत्री मोदी ने अपने मन की बात में हरियाणा के बीबीपुर के एक सरपंच की तारीफ की जिसने ‘Selfie With Daughter’ पहल की शुरूआत की। प्रधान मंत्री ने लोगों से बेटियों के साथ अपनी सेल्फी भेजने का अनुरोध भी किया और जल्द ही यह विश्व भर में हिट हो गया। भारत और दुनिया के कई देशों के लोगों ने बेटियों के साथ अपनी सेल्फी भेजी और यह उन सबके लिए एक गर्व का अवसर बन गया जिनकी बेटियां हैं।
6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) 'अपनी आँखों से जगह देखकर, अपने हाथ से चुने हुए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करना क्यों बुरा है और लाखों करोड़ों कोस दूर बैठे बड़े-बड़े मट्टी और आग के ढेलों-मंगल, शनिश्चर और बृहस्पति की कल्पित चाल के कल्पित हिसाब का भरोसा करना क्यों अच्छा है।'
उत्तर
इन पंक्तियों पर लेखक भारतीय संस्कृति में विद्यमान आडंबरों पर चोट करता है। उसके अनुसार हम अपने द्वारा चुने गए मिट्टी के डगलों पर भरोसा करने को बुरा मानते हैं। यह कार्य तो हमने स्वयं किया होता है। यदि यह बात बुरी है, तो हम ग्रहों की चाल के अनुसार अपने जीवन को जोड़े देते हैं, तो इसे सही क्यों कहा जाए? भाव यह है कि जिन ग्रह-नक्षत्रों को हमने देखा ही नहीं है। उनकी चाल के अनुसार अपने जीवन का निर्धारण करना सबसे बड़ी मूर्खता है। अतः यदि हम एक बात को गलत कहते हैं, तो दूसरी बात अपने आप गलत सिद्ध हो जाती है।
(ख) 'आज का कबूतर अच्छा है कल के मोर से. आज का पैसा अच्छा है कल की मोहर से। आँखों देखा ढेला अच्छा ही होना चाहिए लाखों कोस के तेज पिंड से।'
उत्तर
यह बात वात्स्यायन ने कही थी। उनके अनुसार जो वस्तु हमारे पास इस समय विद्यमान है, हमें उसे ही सही कहना चाहिए। हमारे द्वारा आने वाले कल में या बीते कल में विद्यमान वस्तु को सही कहना मूर्खता है। कल मोहरे सोने की थी या चाँदी थी कि वह बात हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है कि आज हमारे हाथ में पैसा है। हमारे वर्तमान में जो पैसा हमारे पास है, वह महत्वपूर्ण होना चाहिए। अतः यदि हम आँखों देखे ढेले को सच मानते हैं, तो यही सही है। लाखों दूर स्थित पिंड पर हमें विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि हमने उसे देखा ही नहीं है।