NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ "रामचंद्रिका"
लेखक - केशवदास
1. देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान क्यों नहीं किया जा सकता?
उत्तर
देवी! सरस्वती की उदातरता का गुणगान इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि यह बहुत अधिक है। सरस्वती की उदारता का वर्णन करने में देवता, सिद्ध, ऋषि-मुनि और बड़े-बड़े तेजस्वी भी असमर्थ रहे। वे उनकी उदारता का बखान करते-करते थक गए, किंतु पूर्ण सफलता न मिली। सरस्वती की उदारता का वर्णन पहले से ही होता चला आ रहा है और भविष्य में भी होता रहेगा। उनकी उदारता वर्णनातीत है ब्रह्या, शिव तथा कार्तिकेय तक भी इसका वर्णन पूरी तरह से नहीं कर पाए हैं। यह नित्य नए रूप में प्रकट होती रहती है। अतः संपूर्ण वर्णन संभव नहीं है।
2. चारमुख, पाँचमुख और षटमुख किन्हें कहा गया है और उनका देवी सरस्वती से क्या संबंध है?
उत्तर
चार मुख (चतुर्मुख) : ब्रहाजी को कहा गया है, वे सरस्वती के पति हैं।
पाँच मुख (पंचानन) : शिवजी को कहा गया है। वे सरस्वती के पुत्र हैं।
षट्मुख (घड़ानन) : कार्तिकेय को कहा जाता है। वे सरस्वती के नाती हैं।
3. कविता में पंचवटी के किन गुणों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर
कविता में पंचवटी के प्राकृत्तिक सौंदर्य और महिमा का गुणगान किया गया है।
(क) यह पंचवटी का गुण ही है कि इसके समीप आते ही सारे दुःख मिट जाते हैं अर्थात् यहाँ पवित्रता की भावना व्याप्त है।
(ख) यहाँ कपटी व्यक्ति टिक नहीं पाता। पंचवटी का प्रभाव उसे सात्विक बना देता है।
(ग) पंचवटी की शोभा अपार है। इसे देखकर लोगों को अपार सुख की अनुभूति होती है।
(घ) यहाँ पापों की बेड़ी कट जाती है और उनसे पूरी तरह मुक्ति मिल जाती है। यहाँ मोक्ष-प्राप्ति जैसे आनंद की प्राप्ति होती है। अपने उपुर्यक्त गुणों के कारण पंचवटी शिव के समान बनी हुई है।
4. तीसरे छंद में संकेतित कथाएँ अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर
‘धनुरेख गई न तरी’ –
जब कपटी मृग ने ‘हे राम’ पुकारा तब सीताजी ने लक्ष्मण से तुरंत वहाँ जाने का आग्रह किया। लक्ष्मण सीताजी की सुरक्षा को ध्यान में रखकर उनके चारों ओर अपने धनुष से एक रेखा खींच गए थे और उसे पार न करने का निर्देश भी दे गए थे। रावण (जो एक भिक्षुक के वेश में था) से वह धनुष की रेखा तक पार नहीं की जा सकी। उसने सीता को रेखा से बाहर निकलकर भिक्षा देने का अनुरोध किया।
बारिधि बाँधि कै बाट करी –
श्रीराम ने लंका तक पहुँचने के लिए समुद्र को बाँधकर पत्थरों की सहायता से पुल का निर्माण किया और लंका तक जाने का रास्ता बना लिया।
हनुमान की पूँछ में आग लगाना –
राषण की आज्ञा पर हनुमान की पूँछ में रुई बाँधकर और तेल छिड़ककर आग लगा दी गई, पर इससे छनुमान का तो कुछ नहीं बिगड़ा उल्टे स्वर्णजटित लंका ही जल गई।
5. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंवर्य स्पष्ट कीजिए –
(क) पति बने चारमुख, पूत बने पंचमुख, नाती बने षद्युख तदपि नई नई।
उत्तर
इस काव्य-प्रोक्ति में सरस्वती की उदारता का बखान करने में मुख की शक्ति की हेयता दर्शाई गई है। एक मुख वाले व्यक्ति का तो क्या कहना, चार मुख वाले ब्रह्मा, पाँच मुख वाले शिव और छह मुख वाले कार्तिकेय भी इसका बखान करने में असमर्थ हैं। कारण – नयेपन का समाविष्ट हो जाना।
- अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है।
- ‘नई-नई ‘में पुनरुक्तिप्रकाश’ अलंकार है।
- ब्याजस्तुति अलंकार का भी प्रयोग है।
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
(ख) चहुँ ओरनि नाचति मुक्ति नटी गुन धूरजटी जटी पंचवटी।
उत्तर
पंचवटी के सौंदर्य का वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से किया गया है। यहाँ तो मुक्ति भी नटी की तरह नाचती प्रतीत होती है। यहाँ का वातावरण ही मुक्ति का-सा अहसास करा देता है। पंवचटी के गुण उसे शिव के समान बना देते हैं।
- ‘मुक्ति नटी’ में रूपक अलंकार है।
- ‘जटी जटी’ में यमक अलंकार है।
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
(ग) सिंधु तरूयौ उनको बनरा, तुम पै धनुरेख गई न तरी।
उत्तर
इस काव्य-पंक्ति में अंगद रावण पर व्यंग्य करता जान पड़ता है। वह रावण को राम की शक्ति का परिचय देता है कि उनका एक वानर (हनुमान) समुद्र को पार करके तुम्हारी लंका तक में चला आया और तुमसे लक्ष्मण द्वारा खींची गई धनुष-रेखा तक लाँघी नहीं गई। फिर भी तुम अपनी शक्ति का बखान करते नहीं अघाते। (तुम्हें धिक्कार है।)
- व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग है।
- ब्रज भाषा अपनाई गई है।
(घ) तेलनि तूलनि पूँछ जरी न जरी, जरी लंक जराइ जरी।
उत्तर
इस काव्य-पंक्ति में रावण को उसकी विफलता का अहसास कराया गया है। रावण हनुमान का कुछ भी न बिगाड़ पाया जबकि हनुमान ने पूँछ में लगाई उसी की आग से उसकी स्वर्ण-रत्न जटित लंका को जलाकर राख कर दिया। हनुमान की वीरता और कुशलता का परिचय दिया गया है।
- ब्याजस्तुति अलंकार का प्रयोग है।
- ‘तेलनि तूलनि’, ‘जराइ जरी’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- ‘जरी जरी’ में यमक अलंकार है।
- (जरी = जली, जरी = जड़ी हुई)
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) भावी, भूत, वर्तमान जगत बखानत
‘केसीदास’ क्यौं हूँ ना बखानी काहू पै गई।
उत्तर
इस पंक्ति का भाव यह है कि माँ सरस्वती की महिमा अपरंपार है। इसका बखान करना न कभी, किसी के लिए संभव था, न है, न रहेगा क्योंकि इसमें नित्य नवीनता का समावेश हो जाता है। इसका बखान कोई नहीं कर सकता, यह वर्णनातीत है।
(ख) अघ ओघ की बेरी कटी बिकटी,
निकटी प्रकटी गुरुज्ञान गटी।
उत्तर
इस काव्य-पंक्ति का भाव यह है कि पंचवटी में इतनी पवित्रता है कि यहाँ आकर पापों की बेड़ी (बंधन) से छुटकारा मिल जाता है। यहाँ ज्ञान का भंडार है। वह यहाँ प्रकट हो जाता है। यहाँ के वातावरण में पाप को नाश करने और पुण्यों के उदित करने की शक्ति है।