NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ "यथास्मै रोचते विश्वम्"
लेखक - रामविलास शर्मा
1. लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से क्यों की है ?
उत्तर
लेखक के अनुसार जिस प्रकार प्रजापति दुनिया की रचना अपनी इच्छा के अनुसार करता है, वैसे ही कवि भी दुनिया को अपने अनुसार बदल देता है। उसके अनुसार दुनिया को बदलने की शक्ति प्रजापति और कवि दोनों में होती है। यही कारण है कि लेखक ने कवि की तुलना प्रजापति से की है। जैसे प्रजापति कभी भी दुनिया को बदल देता है, वैसे ही कवि अपनी रचनाओं के दम पर समाज की सड़ी-गली परंपराओं को बदलने व उखाड़ने की शक्ति रखता है। उसमें रचनात्मक शक्ति होती है, जो कलम के माध्यम से शब्दों में और शब्दों के माध्यम से लोगों की सोच में आकार पाती है और सबकुछ बदल देती है।
2. ‘साहित्य समाज का दर्पण है’ इस प्रचलित धारणा के विरोध में लेखक ने क्या तर्क दिए हैं ?
उत्तर
'साहित्य समाज का दर्पण है' इस प्रचलति धारणा के विरोध में ये तर्क दिए हैं-
- साहित्य में यदि ताकत होती तो संसार को बदलने की सोच तक न उठती।
- ट्रेजडी को दिखाते समय मनुष्य को असल ट्रेजडी से कुछ अधिक दिखाया जाता है। यही बात इसका खण्ड करती है।
- कवि अपनी रुचि के अनुसार संसार को बदलता रहता है। अतः ऐसा साहित्य समाज का दर्पण नहीं हो सकता है। जहाँ पर कवि की रुचिता चले। संसार किसी की रुचिता नहीं है।
- जब कोई समाज के व्यवहार से असंतुष्ट होता है, तब वह संसार को बदलता या नए संसार की कल्पना करता है। अतः इस भावना से बना साहित्य समाज का दर्पण कैसे हो सकता है।
3. दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाने के पीछे कवि का क्या उद्देश है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
दुर्लभ गुणों को एक पात्र (राम) में दिखाकर आदि कवि वाल्मीकि ने समाज को दर्पण में प्रतिबिंबित नहीं किया था। वरन् प्रजापति की तरह नई सृष्टि की थी। उन्होंने राम के चरित्र में इन दुर्लभ गुणों का समावेश किया-गुणवान, वीर्यवान, कृतज्, सत्यवाक्य, दृढ़व्रत, चरित्रवान, दयावान, विद्वान, समर्थ और प्रियदर्शन। यद्यपि ये गुण एक ही व्यक्ति में होने कठिन हैं, पर वाल्मीकि राम को एक आदर्श रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे अतः उन्होंने सप्रयास ऐसा किया।
4. “साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है। वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
साहित्य का काम केवल मनोरंजन कर हमें विश्राम प्रदान करना नहीं है। साहित्य हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। हमें उत्साहित भी करता है। साहित्य में प्रेरणा देने की शक्ति होती है। वह व्यक्ति को विकास की ओर बढ़ाती है। साहित्य समरभूमि में उतरने का बुलावा देता है। वह गुलामी की प्रवृत्ति को दूर करता है। साहित्य मनुष्य के लिए संजीवनी का काम करता है।
5. “मानव संबंधों से परे साहित्य नहीं है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
साहित्त्य मानव-संबंधों से परे नहीं होता। साहित्त्य मानव-संबंधों की व्याख्या-समीक्षा करता है। यदि समाज में मानव-संबंध वही होते जो कवि चाहता है तो कवि को प्रजापति बनने की आवश्यकता नहीं होती। उसके असंतोष की जड़ में मानव-संबंध ही हैं। मानव-संबंधों से परे साहित्य नहीं है। कवि जब विधाता पर साहित्य रचता है तो वह उसे भी मानव-संबंधो की परिधि में खींच लाता है। वह अपने साहित्य में इन मानव-संबंध पर ही विचार करता है।
6. ‘पंद्रहवी-सोलहवी’ सदी में हिंदी-साहित्य ने कौन-सी सामाजिक भूमिका निभाई ?
उत्तर
15 वीं- 16 वीं शती में हिंदी साहित्य सामंती पिंजड़े में बंद मानव-जीवन को मुक्त करने के लिए जाति-पाँति और धम की सींकचों पर चोट मारी थी। विभिन्न प्रांतों के विभिन्न गायकों-यथ नानक-सूर-तुलसी-मीरा-कबीर, चंडीदास, ललदेह आदि ने संपूर राष्ट्र में उन गले-सड़े मानव-संबंधों के पिंजरों को झकझोर दिया था। उनकी वाणी ने मर्माहत जनता के मर्म को छुआ, उनमें आश का संचार किया, उसे संगठित किया और अपने जीवन के परिवर्तित करने के लिए संघर्ष करने को भी उद्यत किया और उन्हे स्वाधीन जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी। इन कवियों ने अपनी वाणी द्वारा समाज में नई चेतना ला दी और समाज-मुक्ति का एक आंदोलन चलाया।
7. साहित्य के पांचजन्य से लेखक का क्या तात्पय है ?
उत्तर
श्रीकृष्ण के शंख का नाम पांचजन्य था। उन्हों महाभारत युद्ध में पांचजन्य फूँक कर अर्जुन को युद्ध करने के लिए उत्साहित किया था। यहाँ साहित्य का पांचजन्य से लेखक क तात्पर्य है-प्रेरणादायक साहित्य। सच्चा साहित्य वह है जो लोगो में उदासीनता त्याग कर उत्साह का संचार करे। साहित्य क पांचजन्य उदासीनता का राग नहीं अलापता। वह लोगों कें भाग्यवादी नहीं बनाता अपितु कर्म करने की प्रेरणा देता है। वह तो पराभव प्रेमियों और कायरों को भी ललकारता है और समरभूमि में उतरने का बुलावा देता है।
8. साहित्यकार के लिए स्रष्टा और द्रष्टा होन अत्यंत अनिवार्य है, क्यों और कैसे ?
उत्तर
साहित्यकार के लिए स्रष्टा और द्रष्टा दोनों का होन अत्यंत आवश्यक है। साहित्यकार स्रष्टा इस रूप में है कि वह नई रचना करता है, वह प्रजापति की भूमिका का निर्वाह करता है द्रष्टा होना इसलिए जरूरी है क्योंकि इनमें दूर की बात देख लेने की क्षमता होनी चाहिए। साहित्यकार को अपनी युगांतकारी भूमिका का निर्वाह करने के लिए द्रष्टा होना आवश्यक है। उन्ह आने वाले समय को भाँपना होगा और उसी के अनुरूप सृजन कार्य करना होगा। कवि की आँखें भविष्य के क्षितिज पर लरी होनी चाहिए।
9. कवि-पुरोहित के रूप में साहित्यकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पुरोहित आगे-आगे चलता है। कवि-पुरोहित के रूप में साहित्यकार की भूमिका यह है कि वह परिवर्तन चाहने वाली जनता के आगे चले और परिवर्तन की राह दिखाए। उसे समाज को नई दिशा देनी है। समाज में मानवीय संबंधों में जो गड़बड़ है, उसे दूर करना है। यदि कवि पुरोहित बनकर जनता का नेतृत्व नहीं करेगा तो वह अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाएगा और मात्र दर्पण दिखाने वाला बनकर रह जाएगा। कवि पुरोहित के रूप में ही उसका व्यक्तित्व पूरे वेग के साथ निखरता है।
10. सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(क) ‘कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें, पर ऐसी आकृति जरूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं।’
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ रामविलास शर्मा द्वारा लिखित निबंध 'यशास्मै रोचते विश्वम्' से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्ति में कवि द्वारा रचित सृष्टि के विषय में लेखक अपने विचार व्यक्त करता है।
व्याख्या- लेखक कहता है कि एक कवि द्वारा रचना के समय जो कल्पना की जाती है, वे बिना आधार के नहीं होती है। अर्थात वह जो देखता है, समझता है, सोचता है, उसे आधार बनाकर एक नई सृष्टि की रचना करता है। अब प्रश्न उठता है कि उसे ऐसी सृष्टि की रचना करने की आवश्यकता क्यों पड़ी होगा? तो इसका उत्तर है कवि जहाँ कल्पनालोक का वासी है, वहीं हकीकत के धरातल में भी उसके पैर भली प्रकार से टिके होते हैं। समाज में व्याप्त विसंगति, कुरीतियों, सड़ी-गड़ी परंपराओं से आहत कवि अपनी कल्पना से ऐसे समाज या ऐसी सृष्टि की रचना करता है, जो इनसे मुक्त होती है। साधारण मनुष्य भी इस प्रकार की विसंगति, कुरीति, सड़ी-गली परंपराओं, धारणाओं इत्यादि से प्रताड़ित होता है। अतः जब वह एक कवि की रचना पड़ता है, तो जिस समाज या सृष्टि की कल्पना उसने अपने मन में की हो वह साकार हो जाती है। वह बिलकुल कवि की कल्पना से न मिले लेकिन कहीं-न-कहीं कवि की रचना के समान वह हमें प्रिय होती है। हम भी वही चाहते हैं, जो एक कवि चाहता है। भाव यह है कि कवि जो रचना बनाता है, उसके पात्र यथार्थ जीवन के पात्र अवश्य होते हैं लेकिन उसमें कल्पना का भी समावेश होता है। वह ऐसी रचना होती है, जिसे पढ़कर पाठक को लगता है, जैसे मानो वह रचना उसके जीवन को उद्देश्य बनाकर लिखी गई है। उसकी समस्याओं की वह नकल है और उसमें व्याप्त हल उसके जीवन में व्याप्त समस्याओं का हल दे रहे हैं।