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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Aroh, पाठ- 14, शिरीष के फूल

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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Aroh, पाठ- 14, शिरीष के फूल

लेखक - हजारी प्रसाद द्विदेदी

पाठ के साथ

1. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?

उत्तर

लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा फलता-फूलता है। वह कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-रस बनाए रखता है। इसी तरह शिरीष का वृक्ष है। वह भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा रहता है। उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, तब भी शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है, वह काल व समय को जीतकर लहलहाता रहता है।

2. हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है- प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर

परवर्ती कवि ये समझते रहे कि शिरीष के फूलों में सब कुछ कोमल है अर्थात् वह तो कोमलता का आगार हैं लेकिन विवेदी जी कहते हैं कि शिरीष के फूलों में कोमलता तो होती है लेकिन उनका व्यवहार (फल) बहुत कठोर होता है। अर्थात् वह हृदय से तो कोमल है किंतु व्यवहार से कठोर है। इसलिए हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार का कठोर होना अनिवार्य हो जाता है।

3. द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रह भरी कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।

उत्तर

शिरीष ऐसे समय में फलता-फूलता है, जब गर्मी प्रचंड रूप से पड़ रही होती है। मनुष्य का जीवन संघर्षों तथा कष्टों से भरा हुआ है। यहाँ पर लेखक ने गर्मी की प्रचंडता को जीवन के संघर्ष से जोड़ा है। शिरीष का वृक्ष इतनी प्रचंडता को बड़े आराम से झेलता ही नहीं है बल्कि अपने कोमल फूलों को खिलाकर यह सिद्ध कर देता है कि विकट परिस्थतियों में भी मनुष्य जीने की इच्छा को बनाए रखकर उससे पार पा सकता है। यह निर्भर करता है मनुष्य की जीने की इच्छा पर और अपने अस्तित्व के लिए किए जाने वाले संघर्ष पर। अगर मनुष्य लड़ना ही छोड़ दे और विकट परिस्थितियों से घबरा जाए, तो वह जी नहीं सकता है। वह तो टूट कर रह जाएगा। ठीक ऐसे समय में शिरीष का पेड़ हमें प्रेरणा देता है कि कोलाहल व संघर्ष से भरे जीवन-स्थितियों में भी अविचल कर जिजीविषु बना रहा जा सकता है। बस ज़रूरी है, हिम्मत की और एक प्रयास की।

4. हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?

उत्तर

लेखक कहता है कि आज शिरीष जैसे अवधूत नहीं रहे। जब-जब वह शिरीष को देखता है तब-तब उसके मन में ‘हूक-सी’ उठती है। वह कहता है कि प्रेरणादायी और आत्मविश्वास रखने वाले अब नहीं रहे। अब तो केवल देह को प्राथमिकता देने वाले लोग रह रहे हैं। उनमें आत्मविश्वास बिलकुल नहीं है। वे शरीर को महत्त्व देते हैं, मन को नहीं। इसीलिए लेखक ने शिरीष के माध्यम से वर्तमान सभ्यता का वर्णन किया है।

5. कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय- एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य-कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाएँ।

उत्तर

विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य-कम के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया हैं/विस्तारपूर्वक समझाएँ/ उत्तर लेखक का मानना है कि कवि के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय का होना आवश्यक है। उनका कहना है कि महान कवि वही बन सकता है जो अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञ तथा विदग्ध प्रेमी की तरह सहृदय हो। केवल छंद बना लेने से कवि तो हो सकता है, किंतु महाकवि नहीं हो सकता। संसार की अधिकतर सरस रचनाएँ अवधूतों के मुँह से ही निकलती हैं। लेखक कबीर व कालिदास को महान मानता है क्योंकि उनमें अनासक्ति का भाव है। जो व्यक्ति शिरीष के समान मस्त, बेपरवाह, फक्कड़, किंतु सरस व मादक है, वही महान कवि बन सकता है। सौंदर्य की परख एक सच्चा प्रेमी ही कर सकता है। वह केवल आनंद की अनुभूति के लिए सौंदर्य की उपासना करता है। कालिदास में यह गुण भी विद्यमान था।

6. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर

यह सत्य सब जानते हैं कि काल से कोई नहीं बच पाया है। देवता से लेकर दानव तक इसकी मार से बच नहीं पाएँ हैं। ऐसे में सबको अपना ग्रास बनाने वाले काल की मार से बचने के लिए हमें चाहिए कि अपने स्वभाव की जड़ता को समाप्त कर दें। जड़ता मनुष्य को प्रगति नहीं करने देती है। जड़ता मनुष्य को चूर-चूर कर देती है। जड़ता ने ही मनुष्य को तबाह किया है। जो समय के अनुसार परिवर्तन को स्वीकार कर लेते हैं, वही लंबे समय तक अपने अस्तित्व को बचा पाते हैं। भारतीय संस्कृति इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। आज हमें कितनी ही सभ्यताओं के साक्ष्य मिलें हैं, जो पहले अस्तित्व में थी लेकिन आज उनके मात्र खंडहर शेष हैं। ऐसे में भारतीय संस्कृति ने न स्वयं को खड़ा किए हुए है बल्कि अपने अस्तित्व को भी बचाए हुए हैं। ऐसे ही लेखक ने शिरीष के फल का उदाहरण दिया है। इसके फल तब तक पेड़ से चिपके रहते हैं, जब तक नए फूल व पत्ते उन्हें ज़बदस्ती गिरा न दें। अतः हमें चाहिए कि समय के अनुसार स्वयं को बदले और इस परिवर्तनशील समय के साथ पैर से पैर मिलाएँ।

7. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं. वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे।

उत्तर

लेखक कहता है कि संसार में जीवनी शक्ति और सब जगह समाई कालरूपी अग्नि में निरंतर संघर्ष चलता रहता है। बुद्धिमान निरंतर संघर्ष करते हुए जीवनयापन करते हैं। संसार में मूर्ख व्यक्ति यह समझते हैं कि वे जहाँ हैं, वहीं देर तक डटे रहेंगे तो कालदेवता की नजर से बच जाएँगे। वे भोले हैं। उन्हें यह नहीं पता कि एक जगह बैठे रहने से मनुष्य का विनाश हो जाता है। लेखक गतिशीलता को ही जीवन मानता है। जो व्यक्ति हिलते-डुलते रहते हैं, स्थान बदलते रहते हैं तथा प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं, वे ही मृत्यु से बच सकते हैं। लेखक जड़ता को मृत्यु के समान मानता है तथा गतिशीलता को जीवन।

(ख) जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?..... मैं कहता हूँ कवि बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।

उत्तर

लेखक कहता है कि कवि को सबसे पहले अनासक्त होना चाहिए अर्थात तटस्थ भाव से निरीक्षण करने वाला होना चाहिए। उसे फक्कड़ होना चाहिए अर्थात उसे सांसारिक आकर्षणों से दूर रहना चाहिए। जो अपने किए कार्यों का लेखा-जोखा करता है, वह कवि नहीं बन सकता। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे फक्कड़ बनना चाहिए।

(ग) फूल हो या पेड़, वह अपने आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।

उत्तर

लेखक कहता है कि फल व पेड़-दोनों का अपना अस्तित्व है। वे अपने-आप में समाप्त नहीं होते। जीवन अनंत है। फल व पेड़, वे किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई औगुली हैं। यह संकेत है कि जीवन में अभी बहुत कुछ है। सुंदरता व सृजन की सीमा नहीं है। हर युग में सौंदर्य व रचना का स्वरूप अलग हो जाता है।

पाठ के आसपास

1. शिरीष के पुष्प को शीतपुष्य भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतयुष्य संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?

उत्तर

शिरीष का फूल प्रचंड गरमी में भी खिला रहता है। वह लू और उमस में भी जोर शोर से खिलता है अर्थात् विषम परिस्थितियों में भी वह समता का भाव रखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को शीतपुष्प का अर्थ है ठंडक देने वाला फूल और शिरीष का फूल भयंकर गरमी में भी ठंडक प्रदान करता है।

2. कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधीजी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।

उत्तर

गांधी जी सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि कोमल भावों से युक्त थे। वे दूसरे के कष्टों से द्रवित हो जाते थे। वे अंग्रेजों के प्रति भी कठोर न थे। दूसरी तरफ वे अनुशासन व नियमों के मामले में कठोर थे। वे अपने अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष करते थे तथा किसी भी दबाव के आगे झुकते नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने अपनी दृढ़ता से ढहाया था। इस तरह गांधी के व्यक्तित्व की विशेषता-कोमल व कठोर भाव बन गए थे।

3. आजकल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्जी व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।

उत्तर

वाद-विश्व के सभी प्रमुख देशों में भारतीय फूलों की माँग सबसे ज्यादा है। टनों की मात्रा में भारतीय फूल अन्य देशों में निर्यात हो रहे, जिस कारण भारत सरकार के राजस्व में भी अतिशय वृद्धि हो रही है। भारतीय फूलों का स्तर बहुत ऊँचा है। इस क्वालिटी और इतने प्रकार के फूल अन्य स्थानों पर मिलना संभव-सा प्रतीत नहीं होता। इसकी खेती करके कुछ ही समय में अच्छा लाभ अर्जित किया जा सकता है। इसीलिए किसान लोग फूलों की खेती को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं। विवाद-चूँकि भारतीय फूल विदेश में निर्यात हो रहे हैं इसलिए लोगों को आकर्षण फूलों की खेती में ज्यादा हो गया है। इस कारण वे मूल फ़सलों का उत्पादन नहीं कर रहे जिससे अनिवार्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। अन्न उत्पादन लगातार कम होता जा रहा है। अपने थोड़े-से लाभ के लिए किसान लोग करोड़ों देशवासियों को महँगी वस्तुएँ खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं।

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4. द्विवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता है? आज साहित्यिक रचना फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही है। तब ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ गया है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण है या उपेक्षामय? इसका मूल्यांकन करें।

उत्तर

विवेदी जी का जीवन प्रकृति के उन्मुक्त आँगन में ज्यादा रमा है। प्रकृति उनके लिए शक्ति और प्रेरणादायी रही है इसीलिए उन्होंने अपने साहित्य में प्रकृति का चित्रण किया है। वे वनस्पतियाँ हमारे जीवन का आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है। कवि क्योंकि कुछ ज्यादा ही भावुक या संवेदनशील होता है, इसीलिए वह प्रकृति के प्रति ज्यादा संजीदा हो जाता है। मैं स्वयं प्रकृति के प्रति रुचिपूर्ण रवैया रखता हूँ। प्रकृति को जीवन शक्ति के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। प्रकृति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए पंत जी कहते हैं –

छोड़ दूमों की मृदुल छाया

बदले! तेरे बाल जाल में कैसे उलझा हूँ लोचन?

यदि हम प्रकृति को सहेजकर रखेंगे तो हमारा जीवन सुगम और तनाव रहित होगा। प्रकृति संजीवनी है। अतः इसकी उपेक्षा करना अपने अस्तित्व को खतरे में डालने जैसा है।

भाषा की बात

दस दिन फूले और फिर खंखड़-खंखड़ इस लोकोक्ति से  मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं। उन्हें छाँट कर लिखें।  

उत्तर

  • ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले।
  • मेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।
  • वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें।
  • किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते।
  • धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना।
  • न ऊधो का लेना न माधो का देना।
  • कालदेवता की आँख बचा जाएँ।
  • रह-रहकर उसका मन खीझ उठता था।
  • खून-खच्चर का बवंडर बह गया।

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