NCERT Solutions Class 12, Hindi, Aroh, पाठ "चार्ली चैप्लिन यानी हम सब"
लेखक - विष्णु खरे
पाठ के साथ
1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफ़ी कुछ कहा जाएगा?
उत्तर
लेखक ने कहा कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा उसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं-
- चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों की कुछ रीलें मिली हैं जिनके बारे में अभी तक कोई कुछ नहीं जानता। अब इन रीलों पर चर्चा होगी।
- विकासशील देशों में टेलीविजन व वीडियो के प्रसार से वहाँ चार्ली की फिल्में देखी जा रही हैं। अत: वहाँ उस पर विचार होगा।
- पश्चिमी देशों में चालों के बारे में नए दृष्टिकोण से विचार किया जा रहा है।
2. चैप्लिन ने न सिर्फ फ़िल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर
लोकतांत्रिक बनाने का मतलब है कि चैप्लिन ने अपनी फ़िल्मों के माध्यम से कला को सभी के लिए अनिवार्य माना है। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए कला नहीं होती। वास्तव में चैप्लिन भीड़ में खड़े उस बच्चे के समान हैं जो इशारों से बता देता है कि राजा और प्रजा समान हैं दोनों में कोई अंतर नहीं। वर्ण व्यवस्था तोड़ने से आशय है कि फ़िल्में किसी जाति विशेष के लिए नहीं बनती। उसे सभी लोग देख सकते हैं। चार्ली की फ़िल्में सभी वर्ग और वर्ण के लोगों ने देखी। हम इस बात से सहमत हैं कि लेखक ने चार्ली के बारे में ठीक कहा है।
3. लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों ? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
उत्तर
लेखक ने राजकूपर को चार्ली का भारतीयकरण कहा है। राजकूपर ने चार्ली से प्रभावित होकर मेरा नाम जोकर, आवारा जैसी फ़िल्में बनाईं। इन्होंने न केवल चार्ली जैसे किरदार को परदे पर पुनः जीवंत किया बल्कि उसे सफल भी बनाया। भारतीय दर्शकों द्वारा इसे प्रसन्नता से स्वीकार किया गया। चार्ली ऐसे व्यक्ति थे, जिनमें लोगों को हँसाने और प्रसन्न रखने का गुण विद्यमान था। यही कारण था कि नेहरू तथा महात्मा गाँधी जैसे लोग भी उनका सान्निध्य चाहते थे।
4. लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
उत्तर
लेखक के अनुसार रस अधिक श्रेयस्कर होते हैं। वह एक कलाकृति को जीवंत बना देते हैं। यदि रस किसी कलाकृति में विद्यमान नहीं है, तो कलाकृति बेजान हो जाती है। अतः रस श्रेयस्कर हैं। कालिदास की रचना अभिज्ञानशकुन्तलम् ऐसी ही एक कृति हैं, जिसमें कई रस एक साथ आकर इसे सुंदर और विशिष्ट बना देते हैं। इसमें श्रृंगार, वीर, शांत, करुण, रौद्र इत्यादि रसों का समावेश है। अपनी इसी कृति के कारण कालिदास सदा के लिए अमर हो गए हैं।
5. जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?
उत्तर
चार्ली का जीवन कष्टों में बीता। बचपन से ही उन्हें पिता का अलगाव सहना पड़ा। उनकी माँ परित्यक्ता थीं तथा दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थीं। भयंकर गरीबी व माँ के पागलपन से भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा। चार्ली को बड़े पूँजीपतियों व सामंतों ने बहुत दुत्कारा, अपमानित किया। इन जटिल परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘घुमंतू चरित्र बना दिया। उन्होंने बड़े लोगों की सच्चाई नजदीक से देखी तथा अपनी फिल्मों में उनकी गरिमामयी दशा दिखाकर उन्हें हँसी का पात्र बनाया।
6. चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों में निहित त्रासदी/करुणा, हास्य का सामंजस्य, भारतीय कला और सौंदर्य शास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
उत्तर
भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में त्रासदी और करुणा को जीवन का अभिन्न अंग माना जाता है। यह सही भी है। त्रासदी और करुणा हर किसी के जीवन में विद्यमान होती है। हास्य मात्र मनोरंजन का साधन होता है, जो कभी कभार जीवन में आकर उसे हल्का बना देता है। यही कारण है कि इसे हमारी रचनाओं में दूसरों को हँसाने मात्र का साधन ही माना गया है। जब हम प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करते हैं, तो हमें त्रासदी और करुणा का सामंजस्य तो देखने को मिलता है लेकिन हास्य का समावेश मात्र विदूषक तक रह जाता है। वह अपनी चेष्टाओं से कुछ क्षण के लिए लोगों में हास्य का भाव पैदा करता है लेकिन कथा पुनः त्रासदी और करुणा के भाव में डूब जाती है। हम हास्य को जीवन का अंग नहीं मानते क्योंकि हम दूसरों या स्वयं पर हँसना श्रेयकर नहीं समझते हैं। यही कारण है कि त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य हमारे यहाँ देखने को नहीं मिलता है।
7. चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?
उत्तर
चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति और समृद्ध की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखता है। ऐसे समय में वह स्वयं को हास्य का अवलंब बनाता है।
पाठ के आसपास
1. आपके विचार से मूक और सवाक् फ़िल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर
हमारे विचार से मूक फ़िल्मों में ज़्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। प्रायः हम अपने भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त कर देते हैं। इससे भावों को पहचानने में सफलता मिलती है। लेकिन मूक फ़िल्मों में ऐसा नहीं होता है। यहाँ दर्शकों को अपने चेहरे में उठने वाले भावों से समझाना होता है कि अभिनेता या अभिनेत्री क्या कहना चाहते हैं। यहाँ अपने चेहरे पर उठने वाले भावों तथा अपनी शारीरिक चेष्टाओं के माध्यम से दर्शकों को समझाना होता है। अतः इसमें परिश्रम अधिक लगता है।
2. सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब
(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;
उत्तर
बात उस समय की है, जब हम कक्षा में अध्यापिका का जन्मदिन मनाने के लिए केक लेकर आए थे। मैंने किसी को केक लेकर नहीं जाने दिया कि कहीं कोई केक गिरा न दे। बात तब हास्यपद बन गई, जब मैं स्वयं केक लेकर गिर पड़ा। केक जमीन पर गिरा ही नहीं बल्कि में भी उसके ऊपर गिर पड़ा। सारा केक मेरे मुँह और कपड़ों में लग गया। यह ऐसा किस्सा था कि जब मैं खड़ा हुआ तो स्वयं ही ज़ोर-ज़ोर की हँसने लगा।
(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।
उत्तर
हम सब मित्र एक चुटकुले पर हँस रहे थे। हमारे एक मित्र के हाथ पर नुकीली पेंसिल थी। हँसते-हँसते पता नहीं क्या हुआ मेरे मित्र का हाथ उसके मुँह में चला गया और पेंसिल उसके गाल में घुस गई। उसका गाल लहुलूहान हो गया। सारा माहौल हास्य से करुणा में बदल गया।
3. ‘चार्ली हमारी वास्तविकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न’ आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
उत्तर
चार्ली ने जो कुछ अपनी फ़िल्मों और विज्ञापनों में दिखाया है वह यथार्थ है। इस यथार्थ को हम सभी लोग भोगते हैं। चार्ली ने जिस भी पात्र के माध्यम से बात कही वह हमारे समाज की, हमारे परिवेश की है। हम सभी लोग उससे कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य हैं। सुपरमैन हमें कल्पना के अनंत आकाश में ले जाता है। जीवन की वास्तविकता से उसका कोई लेना-देना नहीं है। मैं स्वयं को चार्ली चैप्लिन के नजदीक पाता हूँ। यही होना भी चाहिए क्योंकि जो कुछ आपके सामने है वही यथार्थ है बाकी तो केवल कोरी कल्पनाएँ हैं जो जीवन के लिए उपयोगी नहीं हो सकतीं।
4. भारतीय सिनेमा और विज्ञानों ने चार्ली की छवि का किन-किन रूपों में उपयोग किया है। कुछ फ़िल्में (जैसे आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर इंडिया और विज्ञापनों (जैसे चौरी ब्लॉसम)) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर
भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली चैप्लिन की कई छवियों का प्रयोग किया। उसके कई रूपों को हमारे सामने प्रस्तुत किया है। कहीं वह बंजारे के रूप में हमारे सामने आता है तो कहीं अस्पताल में सफ़ाई करते नजर आता है, कहीं पालिश करते दिखाई देता है, तो कहीं सीढ़ी खींचता नज़र आता है। स्वर्गीय राजकपूर जी ने उनकी हू-ब-हू नकल अपनी फ़िल्मों में की। इसी प्रकार अनिल कपूर ने भी चार्ली चैप्लिन की भूमिका को ‘मिस्टर इंडिया’ नामक फ़िल्म के माध्यम से निभाया। वास्तव में जीवन और समाज से जुड़े प्रत्येक पात्र को अभिनय चार्ली ने किया था। इन्हीं विविध पात्रों को भारतीय सिनेमा और विज्ञापन जगत ने भुनाया। चैरी पालिश का विज्ञापन हमारे सामने है।
5. आजकल विवाह आदि उत्सव समारोहों एवं रेस्तराँ में आप भी चार्ली चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से टकराएँ होंगे। सोचकर बताइए कि बाज़ार ने चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
उत्तर
मीडिया हो या बाज़ार वह हर उस शख्सियत को भुनाना चाहता है जो प्रसिद्ध है। जिसके नाम का डंका चारों ओर बजता है। विवाह हो या अन्य समारोह आज भी चार्ली चैप्लिन की छवि का प्रयोग किया जा रहा है। उसका रूप धारण कर व्यक्ति लोगों का मनोरंजन करते हैं। उन्हें हँसाते हैं। बड़ी-बड़ी मूंछे लगाकर या चार्ली चैप्लिन जैसा ऊँचा कोट पैंट डालकर लोगों को हँसाने के लिए मजबूर कर देते हैं। कुछेक समारोहों में तो वे चार्ली जैसी हरकतें भी करते हैं। विवाह समारोह का आयोजन करने वाले लोग सभी उम्र के लोगों का मनोरंजन करना चाहते हैं और इसके लिए चार्ली से बढ़कर व्यक्ति या पात्र नहीं है।