Use app×
QUIZARD
QUIZARD
JEE MAIN 2026 Crash Course
NEET 2026 Crash Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
+2 votes
755 views
in Hindi by (43.0k points)
closed by

NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 10, खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति(सूरदास)

To learn the fundamentals of this chapter, as well as to prepare for CBSE exams and competitive exams refer to these NCERT Solutions. These solutions have been created by subject matter experts to provide an in-depth analysis of all the concepts covered in this chapter. This study material is based on the most recent CBSE syllabus.

This article explores why NCERT solutions for Class 11 Hindi are important. It talks about how these solutions are organized and how they help students learn better.

In these NCERT Solutions for Class 11 Hindi, we have discussed all types of NCERT intext questions and exercise questions.

Our NCERT Solutions for Class 11 Hindi provide detailed explanations to assist students with their homework and assignments. Proper command and ample practice of topic-related questions provided by our NCERT solutions is the most effective way to achieve full marks in your exams subjects like Science, Maths, English and Hindi will become easy to study if you have access to NCERT Solution. Begin studying right away to ace your exams.

Now all the solutions and practice questions are at your fingertip to get started.

1 Answer

+2 votes
by (43.0k points)
selected by
 
Best answer

NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 10, खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति(सूरदास)

प्रश्न-अभ्यास

1. 'खेलन में को काको गुसैयाँ' पद में कृष्ण और सुदामा के बीच किस बात पर तकरार हुई?

उत्तर

कृष्ण और सुदामा के खेल-खेल में रूठने और फिर खुद मान जाने के स्वाभाविक प्रसंग का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण खेल में हार गए थे और सुदामा जीत गए थे, पर श्रीकृष्ण अपनी हार मानने को तैयार नहीं थे। खेल रुक गया। श्रीकृष्ण अभी और खेलना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नंद बाबा की दुहाई देते हुए अपनी हार मान ली।

2. खेल में रूठनेवाले साथी के साथ सब क्यों नहीं खेलना चाहते ?

उत्तर

खेल में तो हार-जीत होती रहती है। हर खिलाड़ी कभी न कभी अवश्य हारता है। हारकर यदि वह रूठ जाए; मुँह फुलाकर बैठ जाए और दूसरों को खेलने की बारी न दे तो खेल आगे किस प्रकार चल सकती है। इसलिए खेल में रूठने वाले के साथ उसके सभी साथी खेलना नहीं चाहते हैं।

3. खेल में कृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए क्या-क्या तर्क दिए?

उत्तर

खेल में कृष्ण हार जाने के बाद रूठकर बैठ गए थे तब उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए कहा था कि जाति-पाँति में वे उनसे बड़े नहीं थे और न ही वे सब उनकी शरण में रहते थे अर्थात् वे उनके गुलाम नहीं थे। क्या वे उनपर अधिक अधिकार इसलिए उमाते थे कि उनके पिता के पास उन लोगों की अपेक्षा अधिक गायें थ्थी। साथियों के ये तर्क बाल-बुद्धि की उपज होने पर भी समझदारी से भरे हुए थे।

4. कृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव क्यों दिया?

उत्तर

युगों से समाज में सच्ची-झूठी कसमें खाने का प्रचलन रहा है। कसम खाकर लोग स्वयं को सच्चा सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। जब श्रीकृष्ण हार गए थे और श्रीदामा जीत गए थे तब भी श्रीकृष्ण का मानना था कि वे नहीं हारे और श्रीदामा नहीं जीते। खेल रुक गया था, पर श्रीकृष्ण अभी खेलना चाहते थे। खेल फि्रि से शुरू हो जाए, इसलिए नंद बाबा की दुहाई देकर श्रीकृष्ण ने दाँव दे दिया था।

5. इस पद से बाल-मनोविज्ञान पर क्या प्रकाश पड़ता है?

उत्तर

इस पद् से यह ज्ञात होता है कि बच्चे छोटी-छोटी बातों पर आपस में रूठ जाते हैं तथा अपनी पराजय होने पर भी अपनी हार नहीं मानते। परंतु जब उन्हें अन्य साथी खिलाते नहीं तो वे अपनी हार को छिपाने के लिए कसमें खाकर अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। वे पल में रुष्ट और पल में तुष्ट हो जाते हैं। उनके मन अत्यंत निर्मल होते हैं।

6. 'गिरिधर नार नवावति' से सखी का क्या आशय है?

उत्तर

ऐसा कहकर गोपियाँ कृष्ण पर व्यंग्य कसती हैं। वे कहती हैं कि कृष्ण प्रेम के वशीभूत होकर एक साधारण बाँसुरी को बजाते समय अपनी गर्दन झुका देते हैं। चूँकि गोपियाँ चूंकि बाँसुरी से सौत के समान ईर्ष्या रखती हैं। इसलिए वे बाँसुरी को औरत के रूप में देखते हुए उन पर व्यंग्य कसती हैं। वे नहीं चाहती कि कृष्ण बाँसुरी को इस प्रकार अपने होटों से लगाए।

7. कृष्ण के अधरों की तुलना सेज से क्यों की गई है?

उत्तर

श्रीकृष्ण को बाँसुरी से बहुत लगाव था। जब वे बाँसुरी बजाते तो वह उनके होंठों की सेज से तुलना करती क्योंकि बाँसुरी के सातों छिद्रों पर इधर-उधर आती जाती उँगलियाँ उन्हैं ऐसा एहसास कराती थीं जैसे श्रीकृष्ण होठों रूपी शैख्या पर लेटी बँसुरी की सेवा कर रहे हों। इसीलिए अधरों की तुलना सेज से की गई है।

8. पठित पदों के आधार पर सूरदास के काव्य की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर

सूरदास श्रीकृष्ग-भक्त कवि थे जिन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अगाध भक्तिभावना को प्रकट किया है। माधुर्य और साख्य भाव की भक्ति करने के कारण उनकी कविता में श्रीकृष्ग के प्रति अनन्यता का भाव विद्यमान है। गोपियों के हृदय में छिपी सौत की भावना उन्हें बाँसुरी की दुश्मन बना देती है। उन्हें बाँसुरी बजाते श्रीकृष्ण बाँसुरी के पति लगते है जैसे वे उसकी सेवा में लीन हों। वे बाँसुरी के प्रति पूरी तरह से आसक्त है। जब बाँसुरी उनके पास होती है तब वे किसी से बात तक करना पसंद् नहीं करते। अकारण ही निकट आने वालों पर क्रोध करते हैं। बाल रूप में कृष्ण अपने मित्रों के साथ खेलते हुए बालहठ प्रकट करते हैं। खेल में हार जाने पर भी वे अपनी हार नहीं मानते।

अपने साथियों के नाराज़ होने पर नंद बाबा की दुहाई देकर अपनी हार मान जाते हैं। सूरदास, बाल मनोविज्ञान के अद्भुत चितेरे हैं। औँखें न होने पर भी उनके मन की आँखें वह सब देख लेती हैं जो आंखों वाले भी नहीं देख पाते। ब्रजभाषा की कोमल कांत शब्दावली के माध्यम से चित्रात्मकता का सुंदर रूप प्रकट किया है। तत्सम और तद्भव शब्दावली का सहज-समन्वित प्रयोग सराहनीय है। माधुर्य गुण का प्रयोग दर्शनीय है। वात्सल्य और शृंगार रसों की योजना की गई है। अभिधा शब्द-शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता व सरसता प्रदान की है तथा लयात्मकता की सृष्टि हुई है। सूरदास श्रीकृष्ण-भक्त हैं। उन्होंने वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग की पालन करते हुए माधुर्य भाव की भक्ति को प्रमुखता दी थी। वात्सल्य रस का प्रयोग करने में उन जैसा निपुण कवि तो विश्व-भर में कभी कोई नहीं हुआ। इसीलिए कहा जाता है, सूर ही वात्सल्य है और वात्सल्य ही सूर है।’

9. निम्नलिखित पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-

(क) जाति-पाँति.......तुम्हारे गैयाँ।

उत्तर

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति सूरदास द्वारा लिखित ग्रंथ सूरसागर से ली गई हैं। इस पंक्ति में कृष्ण द्वारा बारी न दिए जाने पर ग्वाले कृष्ण को नाना प्रकार से समझाते हुए अपनी बारी देने के लिए विवश करते हैं।

व्याख्या- ‘कृष्ण’ गोपियों से हारने पर नाराज़ होकर बैठ जाते हैं। उनके मित्र उन्हें उदाहरण देकर समझाते हैं। वे कहते हैं कि तुम जाति-पाति में हमसे बड़े नहीं हो, तुम हमारा पालन-पोषण भी नहीं करते हो। अर्थात तुम हमारे समान ही हो। इसके अतिरिक्त यदि तुम्हारे पास हमसे अधिक गाएँ हैं और तुम इस अधिकार से हम पर अपनी चला रहे हो, तो यह उचित नहीं कहा जाएगा। अर्थात खेल में सभी समान होते हैं। जाति, धन आदि के कारण किसी को खेल में विशेष अधिकार नहीं मिलता है। खेलभावना को इन सब बातों से अलग रखकर खेलना चाहिए।

(ख) सुनि री.......'नवावति।

उत्तर

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति सूरदास द्वारा लिखित ग्रंथ सूरसागर से ली गई हैं। इस पंक्ति में गोपियों की जलन का पता चलता है। वह कृष्ण द्वारा बजाई जाने वाली बाँसुरी से सौत की सी ईर्ष्या रखती हैं।

व्याख्या- एक गोपी अन्य गोपी से कहती है कि हे सखी! सुन यह बाँसुरी तो श्रीकृष्ण से अत्यंत अपमानजनक व्यवहार करती है, फिर भी वह उन्हें अच्छी लगती है। यह नंदलाल को अनेक भाँति से नचाती है। उन्हें एक ही पाँव पर खड़ा करके रखती है और अपना बहुत अधिक अधिकार जताती है। कृष्ण का शरीर कोमल है ही, वह उनसे अपनी आज्ञा का पालन करवाती है और इसी कारण से उनकी कमर टेढ़ी हो जाती है| यह बाँसुरी ऐसे कृष्ण को अपना कृतज्ञ बना देती है, जो स्वयं चतुर हैं। इसने गोर्वधन पर्वत उठाने वाले कृष्ण तक को अपने सम्मुख झुक जाने पर विवश कर दिया है। असल में बाँसुरी बजाते समय के साड़ी मुद्राओं को देखकर गोपियों को लगता है कि कृष्ण हमारी कुछ नहीं सुनते हैं। जब बाँसुरी बजाने की बारी आती है, तो कृष्ण इसके कारण हमें भूल जाते हैं।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...