NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 12, संध्या के बाद
लेखक - सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न-अभ्यास
1. संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर
संध्या के समय अस्त होते हुए सूर्य की किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबाई और झरनों से बहनेवाले जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है। ये किरणें गंगाजल को स्वर्णिम करती हुई उसके किनारे की रेत पर धूपछाँही बना देती है। जैसे-जैसे सूर्य डूबता जाता है वैसे-वैसे प्राकृतिक परिवेश बदलता रहता है। तांबाई से स्वर्णिम, फिर सुरमई और सूर्य के डूबते ही अँधेरा छा जाता है।
2. पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कवि कहता है कि जब सूर्य अस्त हो रहा होता है, तो उसकी स्वर्णमम किरणें गंगा के किनारे दूर तक पहले रेत में धूपछाँही बना देती हैं। लगातार बहती हवा के कारण रेत में साँपों की आकृति-सी बन जाती है। गंगा के नीले जल में लहरें ऐसी प्रतीत होती है, मानो बादलों की चाँदी के समान परछाई जल में प्रतिबिंबित हो रही है। रेत, जल और मंद-मंद बहती हवा मानो तीनों मोह-पाश में बँधकर उज्ज्वल प्रतीत होती हैं। हवा पिछलकर जैसे जल बन गई हो और जल जैसे द्रव्य-गुण त्यागकर एकाकार हो गया है।
3. बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है?
उत्तर
संध्या के समय और गायें अपने घर लौट रही हैं। दिनभर की मेहनत के कारण थके हुए किसान भी घर लौट रहे हैं। व्यापारी भी अपने कारोबार को समेटकर नाब द्वारा नदी पार कर अपने घरों को लौट रहे हैं। कुछ खानाबदोश अपने ऊँटों और घोड़ों के साथ खाली बोरियों को ही बिस्तर बना उसपर बैठे हुक्का पी रहे हैं।
4. लाला के मन में उठनेवाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
लाला की दयनीय आर्थिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि अपनी छोटी एवं संकुचित दुकान को देखकर वह स्वयं को दयनीय, दुखी और अपमानित अनुभव करता है। यह संकुचित आय उसकी भूख और प्यास को खत्म नहीं कर पा रही है। उसके जीवन की सभी आकांक्षाएँ लगभग मृतप्राय हो चुकी हैं। बिना किसी आय के उसका अंधकारमय जीवन उसकी दयनीय आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित कर रहा है, वह जीवन-भर अपनी दुकान की गद्दी पर बैठा हुआ ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी निर्जीव और बेकार अनाज का ढेर हो अर्थात् उसके जीवन में सजीवता नहीं बची है। वह थोड़ी-सी आय के लिए बात-बात में झूठ बोलता है तथा अपने ही वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण अपने जीवन को तबाह कर रहा है।
5. सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है?
उत्तर
कवि कहता है कि ग्रामीण परिवेश में लगभग सभी परिवार अपने-अपने मिट्टी के घरों में अलग-अलग विचारधारा के साथ जीवन जी रहे हैं। कवि का कहना है कि आपसी वैमनस्य और विरोधों के बजाए उन्हें सभी मिल-जुलकर सामाजिक जीवन जीना चाहिए अर्थात अलग-अलग वर्गों में न रहकर उन्हें आपसी भाई-चारे के साथ जीवनयापन करना चाहिए। उन्हें मिल-जुलकर सामाजिक सद्भावना के साथ समाज का निर्माण करना चाहिए। तभी सभी सुंदर और सरल जीवन का आनंद पाए। समाज को बिलकुल शोषण मुक्त बनाएँ और समाज में प्रत्येक व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो।
6. 'कर्म और गुण के समान........ हो वितरण' पक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर
भारतवर्ष में संपूर्ण आय-व्यय का बँटवारा व्यक्ति के गुण और कार्य के आधार पर नहीं होता है। ग्रामीण परिवेश में लोग सारा दिन काम करते हैं, परंतु फिर भी उन्हें ठीक से तीन समय का खाना नहीं प्राप्त होता। बस्ती का व्यापारी लाला सुबह निकलने से पहले ही दुकान पर बैठ जाता है परंतु उसकी आर्थिक दशा अभी भी दयनीय बनी हुई है और शहरी क्षेत्र में रहनेवाले व्यापारी अब महाजन बन गए हैं। शहरी और ग्रामीण आर्थिक दशा में इतना बड़ा अंतर देखकर कवि का यह मानना है कि व्यक्ति को उसके कर्म और गुण के आधार पर ही आय प्राप्त होनी चाहिए।
7. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -
(क) तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन!
उत्तर
प्रस्तुत पंक्तियां कविवर सुमित्रानंदन की कविता 'संध्या के बाद' से ली गयी हैं जिसमें कवि ने बहुत ही सुंदर और मार्मिक रूप में प्रकृति का चित्रण किया है। कवि ने सांध्यकालीन वातावरण में नदी के तट पर बैठी बूढ़ी स्त्रियों और विधवाओं की दशा का वर्णन किया है जो ऐसे ध्यान मग्न होकर परमात्मा का नाम जप रही हैं जैसे बगुले ध्यानपूर्वक पानी देख रहे हों| उनके हृदय में दुख की मंथन धारा बह रही है। इस काव्यांश की प्रत्येक पंक्ति में काव्य सौंदर्य अद्भुत जान पड़ता है। पहली पंक्ति में ‘बगुलों-सी वृद्धाएँ’ में उपमा अलंकार है। कवि ने तत्सम शब्दों का प्रयोग करके अपनी बात को बहुत सुंदर रूप में चित्रित किया है।
8. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/ झरते चंचल स्वर्णिम निर्झर।
उत्तर
संध्या के समय अस्ताचलगामी सूर्य की रक्तिम किरणें जब वृक्षों के पत्तों पर पड़ती हैं तो उनका रंग ताँबई हो जाता है, साथ ही सैकड़ों धाराओं में बहते हुए झरनों के जल का वर्ण स्वर्णिम हो जाता है।
(ख) दीप शिखा-सा ज्वलित कलश नभ में उठकर करता नीराजन!
उत्तर
मंदिर के शिखर पर लगा कलश सूर्य की रोशनी के प्रभाव से दीपक की जलती लौ के समान लग रहा है। ऐसा लग रहा है मानो संध्या आरती में वह भी लोगों के समान आरती कर रहा है।
(ग) सोन खगों की पाँति/आर्द्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित!
उत्तर
अस्ताचलगामी सूर्य के कारण वातावरण में धीरे-धीर अंधकार फैल रहा है जिसे देखकर पंक्ति में जाते हुए सोन पक्षियों की द्रवित कर देने वाली ध्वनि आकाश की खामोशी को भंग कर रही है।
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्राति / आँखों के आगे बुनती जाला!
उत्तर
कबि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि वे दिन निकलने से पहले ही टिन की ढिबरी जलाकर ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा करने लगते हैं। उस ढिबरी से रोशनी से अधिक धुआँ निकलता है। इसी धुएँ के समान उनके मन में उत्पन्न अंतद्वर्वद्व के कारण उनके जीवन में भी दुख और पीड़ा रूपी धुआँ उनकी आँखों में भर जाता है।
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों/गोपन मन को दे दी हो भाषा!
उत्तर
कवि बस्ती के छोटे व्यापारियों की दयनीय आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखता है कि अपनी दयनीय आर्थिक स्थिथि के कारण उनके हृदय की मूक वेदना और पीड़ा ढिबरी की कॉपती लौ के समान काँप रही है। इस कंपित ढ़िबरी की ज्योति में मानो उसके हुदय की छिपी पीड़ा और वेदना स्वयं ही मुखरित हो रही है।
(च) बिना आय की क्लाति बन रही। उसके जीवन की परिभाषा!
उत्तर
कवि कहता है कि बस्ती के छोटे व्यापारी की आर्थिक स्थिति दयनीय है। बिना किसी आय के उसका जीवन अंधकारमय तथा कष्टों से भरा हो गया है। उसे अपने जीवन की परिभाषा यही लगती है कि सदा अभावों से ग्रस्त रहना ही उसकी नियति है।
(छ) व्यक्ति नहीं. जग की परिपाटी/ दोषी जन के दुःख क्लेश की।
उत्तर
कवि का मानना है कि किसी व्यक्ति विशेष के दुखी रहने, कष्ट सहने तथा अभाव में जीने का दोषी केवल वह व्यक्ति ही नहीं बल्कि वह समाज भी है जिस समाज की व्यवस्था ने उस व्यक्ति को दुख सहते रहने योग्य बना दिया है।
योग्यता-विस्तार
1. कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं ?
(क) ज्योति स्तंभ-सा …………..
(ख) केचुल-सा …………..
(ग) दीप शिखा-सा …………..
(घ) बगुलों-सी …………..
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी …………..
(च) सनन् तीर-सा …………..
उत्तर
(क) अस्त होते सूर्य के लिए
(ख) गंगा के बहते जल
(ग) मंदिर के कलश लिए
(घ) नदी तट पर ध्यान मग्न वृद्धाओं के लिए
(ङ) गायों के पैरों से उठती धूल के लिए
(च) पक्षियों के पंखों और कंठों का स्वर।