NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 2, सरोज स्मृति
लेखक - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
1. सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
कवि के अनुसार उनकी पुत्री सरोज विवाह के समय कामदेव की पत्नी रति जैसी सुंदरी लग रही है। जब वह मंद-मंद करके हँसती है, तो लगता है मानो दामिनी (बिजली) उसके होठों के मध्य फँस गई है। विवाह की प्रसन्नता के कारण उसकी आँखों में चमक विद्यमान है। रूप और गुणों में वह अपनी माँ की प्रतिछाया प्रतित हो रही है। उसका सौंदर्य उसके अंग-प्रत्यंग में उच्छ्वास (गहरी छोड़ी गई साँस) के समान विकसित होकर फैल गया है। एक नई-नवेली दुल्हन की आँखें में व्याप्त लज्जा और संकोच उसकी आँखों को चमक से भर देता है तथा वे झुक जाती है। उनकी पुत्री की आँखें भी वैसी ही झुकी हुई तथा चमक से भरी हुई हैं। धीरे-धीरे वह चमक आँखों से उतरकर होठों पर फैल रही है। यह चमक उनकी पुत्री के होठों में स्वाभाविक कंपन पैदा कर रहा है।
2. कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई?
उत्तर
कवि द्वारा अपनी पुत्री को विवाह के शुभ अवसर पर नव-वधू के रूप में देखकर अपनी स्वर्गीय पत्नी का स्मरण हो आया। दुल्हन के कपड़ों में उनकी पुत्री बहुत सुंदर प्रतीत हो रही है। उसके अंदर अपनी माँ की झलक दिखाई देती है। अपनी पत्नी के साथ मिलकर गायी गई कविताएँ उन्हें अपनी पुत्री सरोज के रूप में साकार होती दिखती है। वह सरोज को देखकर भाव-विभोर हो जाता है और उसे लगता है मानो उसकी पत्नी सरोज का रूप धारण कर सामने खड़ी हो। पुत्री को विवाह के समय शिक्षा देते समय भी कवि को अपनी पत्नी का स्मरण हो आता है। माँ विवाह के समय पुत्री को उसके सुखी गृहस्थ जीवन के लिए शिक्षा देती है परन्तु पत्नी की अनुपस्थिति में कवि को यह कार्य करना पड़ता है। ऐसे महत्वपूर्ण समय में पत्नी का अभाव उसे उसकी याद दिला देता है।
3. 'आकाश बदल कर बना मही' में 'आकाश' और 'मही' शब्द किनकी ओर संकेत करते हैं?
उत्तर
‘आकाश बदलकर बना मही’ से कवि का तात्पर्य यह है कि उसने अपनी कविताओं में जो अद्वितीय श्रृंगारिक कल्पनाएँ की थीं, वे उसकी पुत्री सरोज के अनुपम सौंदर्य में साकार होकर मही अर्थात् धरती पर उतर आई थी। इस प्रकार ‘आकाश’ शब्द कवि की श्रृंगारिक कल्पनाओं के लिए और ‘मही’ शब्द उसकी पुत्री सरोज के सुंदर रूप की ओर संकेत करता है।
4. सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर
सरोज का विवाह अन्य विवाहों की तरह चमक-दमक, शोर-शराबे से रहित था। सरोज का विवाह बहुत सादे तरीके से हुआ था। इस विवाह में समस्त रिश्तेदारों, मित्रों तथा पड़ोसियों को नहीं बुलाया गया था बल्कि यह परिवार के कुछ लोगों के मध्य ही संपन्न हुआ था। इसमें संगीत तथा मेहंदी जैसी रस्मों का अभाव था। किसी ने विवाह के गीत नहीं गाए न ही लोगों का ताँता लगा था। बस चारों तरफ़ शांति विराजमान थी। यह विवाह इसी शांति के मध्य हुआ था। माँ के अभाव में कवि ने ही माँ की ज़िम्मेदारी को निभाया तथा उसे कुल संबंधी नसीहतें दीं।
5. 'वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली' पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?
उत्तर
कवि निराला जी इस पंक्ति के माध्यम से सरोज के लालन-पालन के प्रसंग को उद्घटित करते हैं। उनकी पत्नी मनोहारी जी के निधन के बाद उनकी पुत्री का लालन-पालन उनके नाना-नानी के द्वारा किया गया था। पहले मनोहारी लता रूप में वहाँ विकसित हुई अर्थात मनोहारी जी का जन्म वहाँ हुआ और अपने माता-पिता की देख-रेख में बड़ी हुई। लता जब बड़ी हुई, तब तुम उस लता में कली के समान खिली अर्थात मनोहारी जी की संतान के रूप में सरोज ने जन्म लिया। परन्तु माँ की अकस्मात मृत्यु के बाद नाना-नानी की देख-रेख में युवावस्था को प्राप्त होकर एक युवती बनी। नाना-नानी के पास ही तुम्हारा समस्त बाल्यकाल बीता तथा वहीं तुमने युवावस्था में प्रवेश किया था।
6. 'मुझ भाग्यहीन की तू संबल' निराला की यह पंक्ति क्या 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे कार्यक्रम की माँग करती है।
उत्तर
हाँ, ये पंक्ति 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे कार्यक्रम की मांग करती है। यह पंक्ति राष्ट्र कवि सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा स्वरचित 'सरोज की स्मृति' कविता से ली गईं हैं। इस कविता के माध्यम से कवि निराला ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद उत्पन्न वियोग की दशा का वर्णन किया है।
निराला पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी पुत्री उनके जीवन में उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण थी। वह ही उनका सहारा थी। लेकिन उनकी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद वह अपने जीवन में खुद को भाग्यहीन और अकेला महसूस करने लगे क्योंकि उन्होंने अपनी पुत्री में ही अपना जीवन संसार खोज लिया था।
उनकी यह कविता उनकी पुत्री के लिए पूरी तरह समर्पित हैय़ यह एक पिता के मनोभाव है। यह कविता इस बात को स्पष्ट करती है कि पुत्र की भांति पुत्री का भी जीवन में कितना महत्व होता है और यह कविता बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम का पूर्ण समर्थन करती है।
7. निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(क) नत नयनों से आलोक उतर
उत्तर
कवि के अनुसार उसकी पुत्री विवाह के समय बहुत प्रसन्न है। नववधू बनी उसकी पुत्री की आँखें लज्जा तथा संकोच के कारण चमक रही है। कुछ समय पश्चात यह चमक आँखों से उतर कर उसके अधरों तक जा पहुँच जाती है।
(ख) श्रृंगार रहा जो निराकार
उत्तर
इसका अर्थ है; ऐसा श्रृंगार जो बिना आकार के हो। कवि के अनुसार इस प्रकार का श्रृंगार ही रचनाओं में अपना प्रभाव छोड़ पाता है। कवि ने अपने द्वारा लिखी श्रृंगार रचनाओं में जिस सौंदर्य को अभिव्यक्त किया था, वह उन्हें नववधू बनी पुत्री के सौंदर्य में साकार होता दिखाई दिया।
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
उत्तर
इस पंक्ति में कवि को अपनी पुत्री को देखकर अभिज्ञान शकुंतलम् रचना की नायिका शकुंतला का ध्यान आ जाता है। उनकी पुत्री सरोज का माता विहिन होना, पिता द्वारा लालन-पालन करना तथा विवाह में माता के स्थान पर पिता द्वारा माता के कर्तव्यों का निर्वाह करना शकुंतला से मिलता है। परन्तु उसका व्यवहार और शिक्षा में सरोज शकुंतला से बहुत अधिक अलग थी। अत: वह कहता है यह पाठ अलग है परन्तु कहीं पर यह मिलता है और कहीं अन्य विषयों पर यह बिलकुल अलग हो जाता है।
(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति में कवि अपने पिता धर्म को निभाने के लिए दृढ़ निश्चयी है। वह अपने पिता धर्म का पालन सदा माथा झुकाए करना चाहता है।