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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 3, यह दीप अकेला, मैंने देखा, एक बूँद

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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 3, यह दीप अकेला, मैंने देखा, एक बूँद

लेखक - सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

यह दीप अकेला

1. 'दीप अकेला' के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?

उत्तर

‘दीप अकेला’ कविता में ‘दीप’ व्यक्ति का प्रतीक है और ‘पंक्ति’ समाज की प्रतीक है। दीप का पंक्ति में शामिल होना व्यक्ति का समाज का अंग बन जाना है। कवि ने दीप को स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता कहा है। दीप में स्नेह (तेल) भरा होता है, उसमें गर्व की भावना भी होती है क्योंकि उसकी लौ ऊपर की ओर ही जाती है। वह मदमाता भी है क्योंकि वह इधर-उधर झाँकता भी प्रतीत होता है। यही स्थिति व्यक्ति की भी है। उसमें प्रेम भावना भी होती है, गर्व की भावना भी होती है और वह मस्ती में भी रहता है। दोनों में काफी समानता है।

2. यह दीप अकेला है ' पर इसको भी पंक्ति को दे दो ' के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय क्यों और कैसे संभव है?

उत्तर

प्रस्तुत कविता में दीप मनुष्य का प्रतीक स्वरूप है। इसमें विद्यमान पंक्ति शब्द समाज का प्रतीक स्वरूप है। दीप को पंक्ति में रखने का तात्पर्य समाज के साथ जोड़ना है। इसे ही व्यष्टि का समिष्ट में विलय कहा गया है। ऐसा होना आवश्यक है। समाज में रहकर ही मनुष्य अपना तथा समाज का कल्याण करता है। इस तरह ही समाज और मनुष्य का कल्याण होता है। जिस तरह दीप पंक्ति में स्थान पाकर अधिक बल से संसार को प्रकाशित करता है, वैसे ही मनुष्य समाज में एकीकार होकर समाज का विकास करता है। दोनों का विलय होना आवश्यक है। उनकी शक्ति का विस्तार है। अकेला व्यक्ति और दीप कुछ नहीं कर सकते हैं। जब वह पंक्ति तथा समाज में विलय होते हैं, तो उनकी शक्ति का विस्तार होता है। अन्य के साथ मिलकर वह अधिक शक्तिवान हो जाते हैं। 

3. 'गीत' और 'मोती' की सार्थकता किससे जुड़ी है?

उत्तर

‘गीत’ की सार्थकता उसके गायन के साथ जुड़ी है। गीत तभी सार्थक होता है जब लोग उसे गाएँ। गीत चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, पर जब तक कोई उसे गाएगा नहीं तब तक वह निरर्थक है। ‘मोती’ की सार्थकता उसके गहरे समुद्र से बाहर निकालकर लाने वाले गोताखोर के साथ जुड़ी है। समुद्र की गहराई में चाहे कितने भी कीमती मोती भरे पड़े हों, पर वह गोताखोर (पनडुब्बा) द्वारा बाहर निकालकर लाया जाता है, तभी वह मोती सार्थक बनता है अन्यथा वह निरर्थक बना रहता है।

4. 'यह अद्वितीय यह मेरा यह मैं स्वयं विसर्जित' पंक्ति के आधार पर व्यष्टि के समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।

उत्तर

जब व्यष्टि का समष्टि में विसर्जन होता है, तब उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है। प्रत्येक व्यक्ति सभी गुणों से युक्त है लेकिन समाज में उसका विलय नहीं है, तो वह अकेला होगा। अकेला वह अपने गुणों का लाभ न स्वयं उठा पाएगा और न किसी अन्य का भला कर पाएगा। जब वह समाज के साथ जुड़ जाता है, तब उसके गुणों का सही लाभ उठाया जा सकता है। अपने गुणों से वह समाज का कल्याण करता है। इस तरह वह अपने साथ-साथ समाज का भी सही मार्गदर्शन करता है। समाज का विकास होता है और समाज में एकता स्थापित होती है। तभी कवि ने कहा है कि दीप का पंक्ति में विलय होना अर्थात एक व्यक्ति का समाज में विलय होना है। समाज में विलय होने से वह स्वयं के व्यक्तित्व को विशालता प्रदान करता है। वह अकेले बहुत कुछ कर सकने की हिम्मत रखता है। जब वह स्वयं को समाज में मिला लेता है, तो वह समाज को मज़बूत कर देता है। इससे हमारे राष्ट्र को मज़बूती मिलती है।

5. 'यह मधु है तकता निर्भय' पंक्तियों के आधार पर बताइए कि 'मधु'. 'गोरस' और 'अंकुर' की क्या विशेषता है?

उत्तर

कवि के अनुसार 'मधु' अर्थात शहद की विशेषता होती है कि इसे बनने में एक लंबा समय लगता है । समय इसे स्वयं धीरे-धीरे टोकरे में एकत्र करता है। उसके बाद जाकर हमें यह मिलता है। जो गोरस हमें जीवन के रूप में विद्यमान कामधेनु गाय से प्राप्त होता है, वो गोरस अमृत के समान माना जाता है। इस गोरस का पान करने वाले देवता पुत्र होते हैं। 'अंकुर' की अपनी विशेषता है। यह पृथ्वी की कठोर धरती को भी अपने कोमल पत्तों से भेदकर बाहर निकल जाता है। सूर्य को देखने से यह डरता नहीं है। निडरता से उसका सामना करता है।

6. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

(क) 'यह प्रकृत, स्वयंभू शक्ति को दे दो।'

उत्तर

कविता में प्रकृत, स्वयंभू और ब्रह्मा संज्ञाएँ अंकुर (बीज) को दी गई हैं। अंकुर धरती से बाहर आने के लिए स्वयं ही प्रयास करता है। वह धरती का सीना चीरकर स्वयं बाहर आ जाता है। सूर्य की ओर देखने से वह डरता नहीं है। निडरता से उसे देखता है। इस तरह कवि के अनुसार कवि भी गीतों का निर्माण स्वयं करता है। उनका गान निर्भयता से करता है। कवि चाहता है कि उसे में अन्य के समान सम्मान दिया जाना चाहिए।

(ख) 'यह सदा द्रवित, चिर-जागरूक चिर-अखंड अपनापा।'

उत्तर

दीप सदैव आग को धारण किए रहता है। इस कारण से वह उसके दुख को बहुत अच्छी तरह से जानता है। इस सबके बाद भी वह दयाभाव से युक्त होकर स्वयं जलता है और दूसरों को प्रकाश देता है। वह सदा जागरूक रहता है, सावधान है और सबके साथ प्रेम का भाव रखता है।

(ग) 'जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।'

उत्तर

कविता में दीप को कवि ने व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है।व्यक्ति हमेशा जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है। इसी कारण वह ज्ञानवान और श्रद्धा से भरा हुआ है। मनुष्य तथा दीप दोनों में ये गुण विद्यमान होते हैं।

7. 'यह दीप अकेला' एक प्रयोगवादी कविता है। इस कविता के आधार पर 'लघु मानव' के अस्तित्व और महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

दीपक अकेला जल रहा है। यह स्नेह से भरा हुआ है। यह अकेला होने पर भी, लघु होने पर भी काँपता नहीं है, गर्व से भरकर जलता है। दीपेक अपने विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण अपने अकेलेपन में भी सुशोभित है, सार्थक है। उसका निजी वैशिष्ट्य समूह के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि आवश्यकता पड़े तो वह समाज के लिए अर्पित हो सकता है। वह बलपूर्वक आत्मत्याग के विरुद्ध है।

इस कविता में लघु मानव का अस्तित्च दर्शाया गया है। दीपक लघु मानव का ही प्रतीक है। उसका अपना विशेष अस्तित्व है। वह समाज का अंग होकर भी समाज से अपना पृथक् अस्तित्व रखता है। लघु मानव का अपना महत्त्व भी है। लघु मानव समाज का चुनाव अपनी इच्छा से करता है। इसे इस पर कोई बलात् लाद नहीं सकता।

मैंने देखा, एक बूँद

1. 'सागर' और 'बूँद' से कवि का क्या आशय है?

उत्तर

'सागर' से कवि का आशय समाज से है तथा 'बूँद' का आशय एक मनुष्य से है। अनगिनत बूँदों के कारण सागर का निर्माण होता है। यहाँ सागर समाज है और बूँद एक मनुष्य है। मनुष्य इस समाज में रहकर अस्तित्व पाता है और समाज उसे अपनी देख-रेख में एक सभ्य मनुष्य बनाता है। दोनों का संबंध परस्पर संयोग से बनाता है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। कवि इनका संबंध सागर और बूँद के रूप में स्पष्ट करके उनकी संबंध की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।

2. 'रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से' पक्ति के आधार पर बूँद के क्षणभर रंगने की सार्थकता बताइए।

उत्तर

बूँद सागर के जल से ऊपर उछलती है और क्षणभर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती हैं। वह क्षणभर में ही स्वर्ण की भाँति अप़नी चमक दिखां आती है। यह चमकना निरर्थक नहीं है। वह क्षणभर में ही सार्थकता दर्शा जाती है।

3. 'सूने विराट् के सम्मुख दाग से!' पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि विराट के सम्मुख बूँद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से, नष्टशीलता के बोध से मुक्ति का अहसास है। यद्यपि यह विराट सत्ता शून्य या निराकार है तथापि मानव-जीवन में आने वाले मधुर मिलन के आलोक से दीप्त क्षण मानव को नश्वरता के कलंक से मुक्त कर देते हैं। आलोकमय क्षण की स्मृति ही उसके जीवन को सार्थक कर देती है। कवि को खंड में भी विराट सत्ता के दर्शन हो जाते हैं। वह आश्वस्त हो जाता है कि वह अपने क्षणिक नश्वर जीवन को भी बूँद की भाँति अनश्वरता और सार्थकता प्रदान कर सकता है। उसकी स्थिति वैसी ही सात्विक है जैसी उस साधक की, जो पाप से मुक्त हो गया है।

4. 'क्षण के महत्त्व' को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।

उत्तर

इस कविता में क्षण का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि स्वार्थ के क्षुद्र बंधनों को तोड़कर व्यष्टि को समष्टि में लीन हो जाना चाहिए। जगत के सभी प्राणियों का दुःख-दर्द अपना है और उसे अपनाने का प्रयत्ल किया जाना चाहिए। संध्या के समय समुद्र में एक बूँद का उछलना और फिर उसी में विलीन हो जाना क्षण के महत्त्व को प्रतिपादित करता है। यद्यपि बूँद का अस्तित्व बहुत कम समय के लिए था, फिर भी उसे निरर्थक नहीं कहा जा सकता। वह बूँद एक क्षण में ही अस्त होती सुनहरी किरण से चमक उठी थी। बूँद का इस तरह चमककर विलीन हो जाना आत्मबोध कराता है। यद्यपि यह विराट सत्ता निराकार है, फिर भी मानव जीवन में आने वाले मधुर मिलन के प्रकाश से प्रदीप्त क्षण मानव को नश्वरता के कलंक से मुक्त कर देते हैं।

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