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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 16, दूसरा देवदास

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NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 16, दूसरा देवदास

लेखक - ममता कालिया

1. पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर

हर की पौड़ी पर संध्या के समय जो गंगाजी की आरती होती है, उसका एक अलग ही रंग होता है। संध्या के समय गंगा-घाट पर भारी भीड़ एकत्रित हो जाती है। भक्त फूलों के एक रुपए वाले दोने दो रुपए में खरीदकर भी खुश होते हैं। गंगा-सभा के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मुस्तैदी से व्यवस्था देखते घूमते रहते हैं। भक्तगण सीढ़ियों पर शांत भाव से बैठते हैं। आरती शुरू होने का समय होते ही चारों ओर हलचल मच जाती है। लोग अपने मनोरथ सिद्धि के लिए स्पेशल आरती करवाते हैं। पाँच मंजिली पीतल की नीलांजलि (आरती का पात्र) में हजारों बत्तियाँ जल उठती हैं। औरतें गंगा में डुबकी लगाकर गीले वस्त्रों में ही आरती में शामिल होती हैं। स्त्री-पुरुषों के माथे पर पंडे-पुजारी तिलक लगाते हैं। पंडित हाथ में अंगोछा लपेट कर नीलांजलि को पकड़कर आरती उतारते हैं। लोग अपनी मनौतियों के दिए लिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों में तैराते हैं। गंगापुत्र इन दोनों में से पैसे उठा लेते हैं। पुजारी समवेत स्वर में आरती गाते हैं। उनके स्वर में लता मंगेशकर का मधुर स्वर मिलकर ‘ओम जय ज्गदीश हरे’ की आरती से सारे वातावरण को गुंजायमान कर देता है।

2. 'गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है' इस कथन के आधार पर गंगा पुत्रों के जीवन-परिवेश की चर्चा कीजिए।

उत्तर

गंगा पुत्र वे हैं जो गंगा में गोता लगाकर लोगों द्वारा तैराए गए फूलों के दोने में रखे पैसों के उठाकर अपने मुँह में दबा लेते हैं। जैसे ही कोई भक्त दोना पानी में सरकाता है, वैसे ही गंगापुत्र उस पर लपकते हैं। वे दोने से पैसे उठा लेते हैं। यदि कभी दीपक की आग उनके लंगोट में लग जाती है तो वे झट से गंगाजी में बैठ जाते हैं। गंगा मैया ही उनकी जीविका और जीवन है। वे यहाँ से मिले पैसों से अपनी जीविका चलाते हैं। वे बीस-बीस चक्कर लगाते हैं और रेजगारी बटोरते हैं। गंगापुत्र की बीवी और बहन कुशाघाट पर रेजगारी बेचकर नोट कमाती हैं। वे एक रुपए के बदले 80-85 पैसे देती हैं। हम कह सकते हैं कि इन गंगा-पुत्रों का जीवन कष्टपूर्ण परिस्थितियों में बीतता होगा। इस काम से उन्हें सीमित ही आमदनी होती होगी। वे सामान्य परिवेश में अपना गुजर-बसर करते होंगे।

3. पुजारी ने लड़की के 'हम' को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?

उत्तर

पुजारी ने अज्ञानवश लड़की के हम से यह अर्थ लिया कि दोनों रिश्ते में पति-पत्नी है। अतः पुजारी ने उन्हें सुखी रहने, फलने-फूलने तथा हमेशा साथ आने का आशीर्वाद दे दिया। इसका अर्थ था कि उनकी जोड़ी सदा सुखी रहे और आगे चलकर वे अपने परिवार तथा बच्चों के साथ आएँ। पंडित का यह आशीर्वाद सुनकर दोनों असहज हो गए। लड़की को अपनी गलती का अहसास हुआ क्योंकि इसमें उसके हम शब्द ने यह कार्य किया था। वह थोड़ा घबरा गई। दूसरी तरफ लड़का भी परेशान हो गया उसे लगा कि लड़की कहीं इसकी ज़िम्मेदार उसे न मान ले। अब दोनों एक-दूसरे से नज़रे मिलाने से डर रहे थे। दोनों वहाँ से चले जाना चाहते थे।

4. उस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी, इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।

उत्तर

संभव एक नौजवान था। इससे पहले किसी लड़की ने उसके दिल में दस्तक नहीं दी थी। अचानक पारो से मुलाकात होने पर उसे किसी लड़की के प्रति प्रेम की भावना जागरूक हुई थी। पारो को जब उसने गुलाबी साड़ी में पूरी भीगी हुई देखा, तो वह देखता रह गया। उसका सौंदर्य अनुपम था। उसने उसके कोमल मन में हलचल मचा दी। वह उसे खोजने के लिए हरिद्वार की गली-गली खोजता था। घर पहुँचकर उसका किसी चीज़ में मन नहीं लगता। विचारों और ख्वाबों में बस पारो की ही आकृति उसे नज़र आ रही थी। वह उससे मिलने के मनसूबे बनाना लगा। उसका दिल उसे पाना चाहता था। पारो उस क्षण में ही उसके जीवन का आधार बन गई थी, जिसे पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था।

5. मंसा देवी जाने के लिए केबिलकार में बैठे हुए संभव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उनका वर्णन कीजिए।

उत्तर

मंसा देवी जाने के लिए संभव एक गुलाबी केबिल कार में बैठ गया। जब उसने उस लड़की को गुलाबी वस्त्रों में देखा था तब से गुलाबी के सिवाय कोई और रंग अच्छा ही नहीं लग रहा था। उसके मन में उस लड़की के दिखाई देने की कल्पनाएँ उठ रही थीं। यद्यपि संभव पूजा-पाठ में विश्वास नहीं करता था, पर अब उसका मन इसमें इसलिए लग रहा था ताकि किसी प्रकार उसकी भेंट अपने मन में बसी लड़की के साथ हो जाए। इसीलिए उसने मंसादेवी के मंदिर में चढ़ावे के लिए एक थैली भी खरीदी। उसने लाल-पीले धागे भी खरीदे। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ गाँठ लगाई, फिर सिर झुकाया, नैवेद्य चढ़ाया। जब उसने पीली केबिल कार में उस लड़की को बैठे देखा तब वह बेचैन हो गया। उसका मन हुआ कि वह पंछी की तरह उड़कर पीली केबिल कार में पहुँच जाए।

6. "पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है... उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।" कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर

जब लड़के ने अपनी बुआ का नाम ‘पारो’ बताया तब संभव को लगा कि उसकी मनोकामना का पीला-लाल धागा बाँधना सार्थक हो गया। उसने इसी लड़की को देखने-मिलने की मनोकामना को लेकर गिठान लगाई थी। पारो को देखकर उसे गिठान का मधुर स्मरण हो आया। वह स्वयं को देवदास समझने लगा। उसे लगने लगा कि अब पारो उसकी हो जाएगी। कहानी का संकेत यही कहता है।

7. 'मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है. इधर बाँधो उधर लग जाती है।' कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर

लड़की मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लेती है अर्थात् वह भी मन-ही-मन संभव से प्रेम कर बैठती है। उसके मन में भी प्रेम का स्फुरण होने लगता है। इस कथन के आधार पर कहा जा सकता है कि पारो के मन में भी संभव के प्रति प्रेम का अंकुर फूट पड़ता है। उसका लाज से गुलाबी होते हुए मंसादेवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प उसकी इसी प्रेमातुर मनोदशा का सूचक है। वह प्रश्नवाचक नजरों से संभव की ओर देखती भी है। वह संभव का नाम भी जानना चाहती है। पारो को लगता है कि यह गाँठ कितनी अनूठी है, कितनी अद्भुत है, कितनी आश्चर्यजनक है। अभी बाँधी, अभी फल की प्राप्ति हो गई। देवी माँ ने उसकी मनोकामना शीय्र पूरी कर दी।

8. निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) 'तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।'

उत्तर

संभव के देर से आने पर चिंताग्रस्त नानी उसे कहती है। तू तैरना नहीं जानता है। यदि स्नान करते हुए फिसल गया, तो सीधे गंगा नदी में गिर जाएगा। फिर तो बचना संभव नहीं था। यदि ऐसी कोई अनहोनी हो जाती, तो तेरे माता को क्या जवाब देती। माँ तो यही कहती है कि मैंने नानी के पास भेजा था और मुझे मेरा बेटा देखना नसीब नहीं हुआ।

(ख) 'उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम त्याग दिया है, उसके अंदर स्व से जनति कोई-कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतन स्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।'

उत्तर

संभव ने देखा कि गंगा की जलधारा के बीच एक आदमी सूर्य की ओर उन्मुख हाथ जोड़े खड़ा था। उसके चेहरे को देखकर लगता था कि उसने सारे अहम् भाव को त्याग दिया है। वह भाव-विभोर था और विनीत भाव से पूजा-अर्चना कर रहा था। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि उसके मन में स्व (Igo) से उत्पन्न कोई कुंठा नहीं रह गई है। वह साक्षात् परमात्मा का रूप दिखाई दे रहा था। उसमें बस चेतना, आत्मा है जो अत्यंत निर्मल है। वह ‘स्व’ से ऊपर उठ चुका था और परमात्मा में लीन हो चुका था।

(ग) 'एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूप धरिणी मंसादेवी स्थापित थी। व्यापार यहाँ भी था।

उत्तर

मंसा देवी के मंदिर में जाकर संभव ने देखा कि एक कमरे में चामुंडा रूप धारण किए मंसादेवी की मूर्ति स्थापित थीं। उसके सामने भी व्यापारिक गतिविधियाँ जारी थीं। वहाँ लाल-पीले धागे बिक रहे थे, रुद्राक्ष बिक रहे थे। अर्थात् मंदिर में भी व्यापार चल रहा था। सर्वत्र व्यापार का बोलबाला है।

9. 'दूसरा देवदास' कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

इस कहानी का नाम 'दूसरा देवदास' बिलकुल उचित है। यह शीर्षक कहानी की सार्थकता को स्पष्ट करता है। जिस प्रकार शरतचंद्र का देवदास अपनी पारो के लिए सारा जीवन मारा-मारा फिरता रहा, वैसे ही संभव रूपी देवदास अपनी पारो के लिए मारा-मारा फिरता है। पारो की एक झलक उसे दीवाना बना देती है। वह उसे ढूँढने के लिए बाज़ार, घाट, यहाँ तक कि मनसा देवी के मंदिर तक हो आता है। उससे एक मुलाकात हो जाए इसके लिए मन्नत तक माँगता है। जब वह मिलती है, तो लड़की का पारो नाम सुनकर जैसे उसकी खोज सार्थक बन जाती है इसलिए वह अपने नाम के बाद देवदास लगाकर इसका संकेत भी दे देता है। दोनों के मध्य छोटी-सी मुलाकात प्रेम के बीज अंकुरित कर देती है। यह मुलाकात उनके अंदर प्रेम के प्रति ललक तथा रूमानियत को दर्शा देती है। देवदास वह नाम है, जो प्यार में पागल प्रेमी के लिए प्रयुक्त किया जाता है। अतः दूसरा देवदास शीर्षक संभव की स्थिति को भली प्रकार से स्पष्ट कर देता है। यही कारण है कि यह शीर्षक कहानी को सार्थकता देता है ।

10. 'हे ईश्वर। उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा-आशय स्पष्ट कीजिए।'

उत्तर

जब संभव ने अपनी मनचाही लड़की को अगले दिन ही अपने सामने देख लिया तो उसके मुँह से उपर्युक्त वाक्य निकला। उसने ईश्वर के समक्ष ऐसी कामना तो अवश्य की थी, पर वह यह नहीं जानता था कि उसकी मनोकामना इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी। उसकी मनोकामना मौन अवश्य थी पर उसका सुखद परिणाम शीघ्र निकल आया। उम्मीद से बढ़कर प्राप्ति हुई थी।

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भाषा-शिल्प

1. इस पाठ का शिल्प आख्याता (नैरेटर-लेखक) की ओर से लिखते हुए बना है-पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।

उत्तर

पाठ से उदाहरण कुछ इस प्रकार हैं-

  • गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वरदी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं।
  • यकायक सहस्र दीप जल उठते हैं पंडित अपने आसन से उठ खड़े होते हैं।
  • दूसरे यह दृश्य देखने पर मालूम होता है कि वे अपना संबोधन गंगाजी के गर्भ तक पहुँचा रहे हैं।
  • संभव हँसा। उसके एक सार खूबसूरत दाँत साँवले चेहरे पर फब उठे।

2. पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों तथा इनसे संबंधित वाक्यों को छाँटकर लिखिए।

उत्तर

  1. दीया-बाती- दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला।
  2. आरती- आरती शुरू होने वाली थी।
  3. नीलांजलि- पीतल की नीलांजलि में सहस्र बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।
  4. मूर्तियों- गंगा जी की मूर्ति के साथ-साथ चामुंडा, बालकृष्ण, राधाकृष्ण, हनुमान, सीताराम की मूर्तियों की श्रृंगारपूर्ण स्थापना है।
  5. स्नान- आरती से पहले स्नान!
  6. चंदन और सिंदूर- हर के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है।

योग्यता-विस्तार

1. हरिद्वार और उसके आसपास के स्थानों की जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर

हरिद्वार का अर्थ है “भगवान या देवता का वास”। जहाँ आप आकर साक्षात देवताओं के दर्शन कर पाऐंगे। हरिद्वार नाम सुनते ही मन में एक छवि उभरती है जहाँ मंदिर की घंटियों की गूँज व पुजारियों के मंत्र उच्चारण, स्थल को और भी अधिक आध्यात्मिकता में डुबो देते हैं। हर छोटी दुकानों पर बजते “जय गंगे” के भजन रोम-रोम को पुलकित कर देते हैं। भग्वा वस्त्रों में पुजारियों की छवि वातावरण को और धार्मिक कर देती है। हरिद्वार के दर्शनीय स्थल आपको प्रभु की शरणों में ले जाऐंगे जहाँ आपको असीम शांति का अनुभव होगा क्योंकि प्रभु की लीला है ही अपरंपार। भगवान की कृपा-दृष्टि अपने पर भरपूर बरसने दीजिए और हो जाइए अराधना में लिप्त ताकि सांसारिक मोह-माया से आप कुछ पल का विराम पा सकें।

हरिद्वार के दर्शनीय स्थल आध्यात्मिकता व शांति की पहल करती आपनी हरिद्वार की यात्रा के लिए आपको पहले इनके बारे में थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है, जो यहाँ दी गई है:

गंगा आरती

ganga aarti

गंगा की पवित्र लहरों के घाट जिसे हर की पौड़ी के नाम से जाना जाता पर हर संध्या को आरती की जाती है जो गंगा मैया को समर्पित है। पुजारियों द्वारा हाथ में लिए बड़ें-बड़े दीयों से इस पावन स्थान की आरती की जाती है देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने स्थल को अपनी रोशनी से जगमगा दिया हो। पानी में पड़ता दीयों का प्रतिबिंब टिमटिमाते सितारों की तरह मालूम पड़ता है। महाआरती की मधुर आवाज़ पूरे घाट में गूँजती हुई सुनाई पड़ती है। इस आरती का गवाह बनने सिर्फ भारतीय पर्यटक ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी भारी मात्रा में आते हैं।

चंडी देवी मंदिर

temple

नील पर्वत पर बसा यह मंदिर चंडी देवी को समर्पित है। ऊँचाई पर बसा यह मंदिर सिर्फ पूजा-पाठ का केंद्र नहीं है बल्कि यात्रियों के बीच ट्रैकिंग के लिए भी लोकप्रिय है। खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे के साथ भक्ति का मेल अद्भुत है। हरिद्वार के पाँच तीरथ स्थलों में ये भी एक है जहाँ भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने की इच्छा सँजो के लाते है। इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था व विश्वास बहुत गहरा है। पहाड़ के ऊपर मंदिर व चारों तरफ हरियाली कितनी शोभा बिखेरता नज़र आता है। यहाँ से हरिद्वार की फोटो बेहद सौंदर्य पूर्ण आएगी। यह सबसे प्रसिद्ध हरिद्वार के दर्शनीय स्थल में से है।

राजाजी नेशनल पार्क

शिवालिक पर्वत श्रृंखला से गुज़रता यह नेशनल पार्क अपने अनोखे वनस्पति व वन्यजीवों के लिए मशहूर है। प्रकृति व वन्य जीवन प्रेमियों के लिए यह जगह बहुत शानदार है पेड़ों की सरसराती ठंडी वायु के बीच यहाँ-वहाँ छलांग लगाते
पशु-पक्षी आपके ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करेंगे। यह मुख्य तौर पर बाघ व हाथियों के वन्य जीवन के लिए लोकप्रिय हैं। यह वन साल, टीक, आदि जैसे अन्य पेड़ों से लदा हुआ है। आपको यहाँ एशायाई हाथी, बाघ, किंग कोबरा, भालू, चीतल, सांभर, जंगली बिल्ली आदि देखने को मिल जाऐंगे।

2. गंगा नदी पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर

'गंगा' भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी है। इसे देवनदी, मंदाकिनी, भगीरथी, विश्नुपगा, देवपगा, देवनदी, इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री है। यह हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर नारायण पर्वत के पार्श्व से ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विध्यांचल, वाराणसी, पाटिलीपुत्र, मंदरगिरी, भागलपुर, बंगाल से गुजरती हुई गंगासागर में समाहित हो जाती है।

गंगा का हमारे देश के लिए बहुत अधिक महत्त्व है। गंगा नदी भारत के चार राज्यों में से होकर गुजरती है। ये हैं- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल। भारत के इस मध्यम भाग को 'गंगा का मैदान' कहा जाता है। यह प्रदेश अत्यंत उपजाऊ, संपन्न तथा हरा-भरा है, जिसका श्रेय गंगा को ही है। इन राज्यों में कृषि-उपज से संबंधित तथा कृषि पर आधारित अनेक उद्योग-धंधे भी फैले हुए हैं, जिनसे लाखों लोगों की जीविका तो चलती ही है, राष्ट्रीय आय में वृद्धि भी होती है। पेयजल भी गंगा और उसकी नहरों के माध्यम से प्राप्त होता है।

यदि गंगा न होती तो हमारे देश का एक महत्त्वपूर्ण भाग बंजर तथा रेगिस्तान होता। इसीलिए गंगा उत्तर भारत की सबसे पवित्र व महत्त्वपूर्ण नदी है। गंगा नदी भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न अंग है। भारत के प्राचीन ग्रंथों; जैसे- वेद, पुराण, महाभारत इत्यादि में गंगा की पवित्रता का वर्णन है। भारत के अनेक तीर्थ गंगा के किनारे पर ही स्थित हैं।

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