पाठ के आसपास
1. पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे/ करेंगी?
उत्तर
मैं पिछले महीने अपने चाचा की शादी के लिए काशीपुर में आई थी। जून का अंतिम सप्ताह था। गर्मी का मौसम था। हमने सोचा भी नहीं था कि इस मौसम में बारिश होगी। परन्तु हमारे पहुँचने के बाद यहाँ लगातार अट्ठारह घंटे वर्षा होने लगी इस वर्षा ने गंगा का जलस्तर बढ़ा दिया। गंगा नदी में बाढ़ आ गई। इसका परिणाम यह हुआ की गंगा का पानी बहकर काशीपुर में घुस गया। हम चूंकि नदी के किनारे बसे मकानों पर नहीं रहे थे। इसलिए हम बच गए। वर्षा लगातार होने से गंगा का जल स्तर कम नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे पानी नदी के तटबंधों को तोड़ता हुआ शहर में घुसना आरंभ हो गया। हम पहले से ही सुरक्षित स्थानों में थे। गंगा का पानी विकराल रूप धारण करता हुआ बढ़ रहा था। उसके रास्ते में जो भी आ रहा था, वह उसे भयानक राक्षस की तरह निगल रहा था। पानी ने धीरे-धीरे किनारे में खड़ी सारी इमारतों को निगलना आरंभ किया। उसे देखकर देखने वालों की साँसे थम गई। पानी का भयानक रूप इससे पहले कभी किसी ने नहीं देखा था। वह स्थिति प्रलय से कम नहीं थी। हम इस दृश्य को देखते ही रह गए। लगातार वर्षा ने हमारे शहर को पूरे देश से काट दिया। एक महीने तक हम यहाँ फंसे रह गए। इन दिनों में यहाँ के हालात बहुत ही खराब हो चुके थे। नदी ने शहर के बाहरी हिस्सों को नष्ट कर डाला था। दुकानें और होटल बह चुके थे। लोग आर्थिक हानी से परेशान बैठे रो रहे थे। पानी के कम होने के बाद चारों ओर कीचड़ तथा गंदगी का राज था। नदी के साथ लाशें बहकर आई थीं। उनके जगह-जगह ढेर लग गए। चारों तरफ बदबू का वातावरण था। मच्छर, मक्खी आदि का प्रकोप फैला हुआ था। मलेरिया, डेंगू, डायरिया इत्यादि ने शहर में पकड़ बना ली थी। ऐसे में पिताजी ने स्थिति भाँप ली थी। अतः वे आवश्यक दवाइयाँ तथा सामान ले आए थे। हमने पूरे कपड़े पहने तथा पैरों में जुराबें पहनकर रखी। इस तरह हमने डेंगू तथा मलेरिया से बचाव किया। खाना बनाते समय विशेष ध्यान रखते थे। घर की सफ़ाई रखते। मच्छरों से बचने के लिए हमने गली की सफाई करवाई तथा दवाई डालवाई।
2. ढोलक की थाप मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर
कला मनुष्य के साथ आज से ही नहीं आरंभ काल से ही विद्यमान है। यही कारण है कि आप किसी पुरानी जन-जाति को ही ले लें। उनके अपने नृत्य तथा संगीत विद्यमान है। कला जीवन के कठिन समय में राहत देती है। मनुष्य का खाली समय कला साधना में ही बितता है। वह ऐसा कुछ सुनना चाहता है, तो उसकी आत्मा तक के तारों को झनझना दे। कला जीवन में प्रेरणा, आनंद तथा रोमांच भर देती है। कुछ लोग तो जीवन भर कला की साधना करने में निकाल देते हैं। कला के विभिन्न रूप हैं। एक में हम चित्रकारी, मूर्तिकारी आदि करते हैं। दूसरी संगीत साधना कला कहलाती है। इसमें हम वाद्य यंत्र, संगीत तथा नृत्य करते हैं। यह किसी न किसी रूप में हमें आनंद का अनुभव कराती है।
3. चर्चा करें कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है।
उत्तर
बहुत सुंदर पंक्ति है कि कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज़ नहीं है। कला मनुष्य के हृदय का बहुत भीतरी अंग है। इसे मनुष्य ने कहीं से सीखा नहीं है बल्कि स्वयं ही मनुष्य के दुखी या आनंदित हृदय से उपजी है। अतः जब मनुष्य सभ्य नहीं था, तब भी यह मनुष्य के साथ थी। कला को व्यवस्था की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए तो बस लगन की आवश्यकता है। सच्चे भाव की आवश्यकता है। जहाँ भाव होता है, यह वहीं विकसित हो जाती है। यह तो आज के मनुष्य ने इसे व्यवस्था में बाँधने की कोशिश की है। यदि गौर करें, तो यह स्वयं पैदा हो जाती है।
भाषा की बात
1. हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए-
- चिकित्सा
- क्रिकेट
- न्यायालय
- या अपनी पसंद का कोई क्षेत्र
उत्तर
चिकित्सा- बीमारी, जाँच, औषधि, चिकित्सक, परीक्षण
क्रिकेट- रन, विकेट, आउट, कैच, किल्ली
न्यायालय- वकील, अपराधी, केस, पेशी, कारावास
शिक्षा- छात्र-छात्राएँ, विद्यालय, पुस्तकालय, पढ़ाई, अध्यापक।
पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली सूची
कसरत, धुन, थाप, दांवपेंच, पठान, पहलवान, बच्चू, शेर का बच्चा, चित, दाँव काटो, मिट्टी के शेर, चारों खाने चित, आली आदि।
2. पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
- फिर बाज़ की तरह उस पर टूट पड़ा।
- राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
- पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
इन विशिष्ट भाषा-प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर
उसकी पहलवानी के किस्से दूर-दराज के गाँवों में मशहूर थे। अच्छे से अच्छा पहलवान भी उससे हार जाता। यदि कोई उसे ललकारने की हिम्मत करता तो वह उस पर बाज की तरह टूट पड़ता। उसकी पहलवानी के चर्चे राजा साहब के कानों तक भी पहुँची। राजा साहब ने उसकी पहलवानी पर प्रसन्न होकर उसे नकद इनाम दिया और आजीवन राजमहल में रख लिया। इस प्रकार राजा, साहब की स्नेह दृष्टि ने उसकी प्रसिधि में चार चाँद लगा दिए। वह और अधिक मन लगाकर पहलवानी करने लगा। पहलवान की स्त्री ने उसी जैसे दो पहलवान बेटों को पैदा किया। दुर्भाग्य से वह स्वर्ग सिधार गई। इन दोनों बेटों को भी उसने दंगल में उतारने का निर्णय ले लिया। उसके दोनों बेटों ने भी अपने बाप की लाज रखी।
3. जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
उत्तर
समानता- क्रिकेट में बल्लेबाज़ पर सबकुछ निर्धारित रहता है। अतः कुश्ती में भी पहलवान पर सबका ध्यान रहता है। कुश्ती कमेंट्री करते समय पहलवान के बारे में बताया जाता है, क्रिकेट में बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ के बारे में बताया जाता है। कुश्ती में उसके चेहरे के भाव और उठाए गए कदम के बारे में बताया जाता है, क्रिकेट में बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ के चेहरे और भाव के बारे में बताया जाता है।
अंतर- क्रिकेट में जब बल्लेबाज़ बॉल को मार देता है, तो फिर खेल बॉल पर निर्भर करती है। अतः कमेंट्री में गेंद और अन्य खिलाड़ी जो उसके पीछे भागते हैं, उनकी प्रतिक्रिया बतायी जाती है। लेकिन कुश्ती करते हुए पहलवान के दाँव-पेच पर निर्भर होता है। वह जैसा दाँव मारेगा वैसा ही उसे फल मिलेगा। अतः यहाँ कमेंट्री दोनों पर ही आधारित होती है। अन्य किसी के बारे में नहीं बताया जाता है।