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NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 3, टार्च बेचनेवाले

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NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 3, टार्च बेचनेवाले

लेखक - हरिशंकर परसाई

प्रश्न-अभ्यास

1. लेखक ने टार्च बेचनेवाली कंपनी का नाम 'सूरज क्यों रखा?

उत्तर

साधारण-सी बात है कि इस संसार को प्रकाशित सूर्य करता है। जब सूर्य आता है, तो अंधकार भाग जाता है। अतः सूरज छाप नाम रखकर लेखक पाठकों को कंपनी के प्रति आश्वस्त करना चाहता है। टार्च भी प्रकाश करने के काम आती है। अतः यह नाम लेखक की बनाई कंपनी तथा कहानी को सार्थकता प्रदान करता है।

2. पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है?

उत्तर

पाँच साल बाद एक दोस्त देखता है कि मंच पर एक साधु भाषण दे रहा है। सब उसका भाषण बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। वह लोगों को अँधकार का डर दिखाकर ज्ञान के प्रकाश में आने के लिए कहता है। उस साधु की बात सुनकर पहला मित्र हँस पड़ता है। जब वह उसके निकट जाता है, तो उसे पता चलता है कि यह तो उसका पुराना मित्र है, जिसने उसे पाँच साल बाद मिलने का वादा किया था। इस प्रकार अचानक दोनों एक-दूसरे से मंच पर मिलते हैं। एक साधु बना होता है और दूसरा टार्च बेचने वाला।

3. पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह किस अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था?

उत्तर

पहला दोस्त मंच पर संत की वेशभूषा में सुंदर रेशमी वस्त्रों से सज-धज कर बैठा था| वह गुरू-गंभीर वाणी में प्रवचन दे रहा था और लोग उसके उपदेशों को ध्यान से सुन रहे थे| वह आत्मा के अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था| उसके अनुसार सारा संसार अज्ञान रुपी अंधकार से घिरा हुआ है| मनुष्य की अंतरात्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है| वह कह रहा था कि अँधेरे से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि आत्मा के अँधेरे को अंतरात्मा के प्रकाश द्वारा ही दूर किया जा सकता है|

4. भव्य पुरुष ने कहा 'जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है'। इसका क्या तात्पर्य है?

उत्तर

भव्य पुरूष ने अपने प्रवचन में कहा कि जहाँ अंधकार है वहीँ प्रकाश है| जैसे हर रात के बाद सुबह आती है उसी प्रकार अंधकार के साथ-साथ प्रकाश भी होता है| मनुष्य को अँधेरे से नहीं डरना चाहिए| आत्मा में ही अज्ञान के अँधेरे के साथ ज्ञान की रोशनी और ज्ञान की रोशनी के साथ अज्ञान का अँधेरा होता है| मनुष्य के अंदर की बुराइयों में अच्छाई दबी रहती है, जिसे जगाने की जरूरत होती है| उसके लिए अपने अंदर ही ज्ञान की रोशनी को ढूँढना पड़ता है| इस प्रकार भव्य पुरूष ने सच ही कहा कि जहाँ अंधकार है वहीँ प्रकाश है|

5. भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने और 'सूरज छाप' टार्च बेचने के धंधे में क्या फ़र्क है? पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तर

भीतर के अँधेरे की टार्च बेचना अर्थात यह आत्मा के अंदर बसे अँधेरे को दूर करने से संबंधित है| जहाँ एक तरफ पहला दोस्त अपनी वाणी से लोगों को जागृत करने का काम करता है| वह अपने प्रवचन से लोगों के अंदर ज्ञान की प्रकाश जलाना चाहता है| उसका काम लोगों को अज्ञान के अँधेरे से दूर कर ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है| इस प्रकार सिद्ध पुरूष ही आत्मा के अज्ञानरूपी अँधेरे को दूर कर सकता है|

वहीँ दूसरी ओर दूसरा दोस्त रात के अँधेरे से बचने के लिए ‘सूरज छाप’ टार्च बेचता है| वह लोगों के अंदर रात का भय उत्पन्न करता है ताकि वे डरकर टार्च खरीदें| यह टार्च बाहर के अँधेरे को दूर करता है| रात के अँधेरे में मनुष्य को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसे टार्च का प्रकाश ही दूर कर सकता है| इस प्रकार वह लोगों को काली अँधेरी रात का डर दिखाकर ‘सूरज छाप’ टार्च बेचता है|

दोनों के टार्च बेचने के धंधे में बहुत अंतर है| एक आत्मा के अँधेरे को दूर करने से तथा दूसरा रात के अँधेरे को दूर करने से संबंधित है|

6. 'सवाल के पाँव जमीन में गहरे गड़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं।' इस कथन में मुनष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों?

उत्तर

इस कथन में मनुष्य की उस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है, जहाँ वह किसी समस्या पर अत्यधिक सोच-विचार करता है। वह किसी समस्या से उपजे प्रश्न को बहुत जटिल बना देता है और हल न मिलने पर हताश हो जाता है। यह उचित नहीं है। हर प्रश्न का उत्तर होता है। बस प्रयास करना चाहिए कि वह उसे सही प्रकार से हल करे। इस ओर इसलिए संकेत किया गया है ताकि उन्हें ऐसी स्थिति से अवगत करवाया जा सके।

7. 'व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।' परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर

हरिशंकर परसाई मे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न विसंगतियों पर प्रहार किया है। इसके लिए वे भावानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग करने में सिद्धहस्त हैं। ‘टार्च बेचनेवाले’ आलेख में लेखक ने टार्च बेचनेवाले दो मित्रों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार से एक मित्र अपनी चालाकी से टार्च बेचते-बेचते धर्माचार्य बन जाता है। लोगों के अंधविश्वासों पर कटाक्ष किया गया है। भाषा में बोलचाल के शब्दों की अधिकता है, जैसे-टार्च, क्रूरता, हरामखोरी, घायल, बीवी, यार, किस्मत आदि। कहीं-कहीं तत्सम शब्द भी दिखाई देते हैं, जैसे-सर्वग्राही, पुष्ट, संपूर्ण, प्रवचन, भव्य, वैभव। लेखक ने मुख्य रूप से व्यंग्यात्मक वर्णन प्रधान भैली अपनाई है। कहीं-कहीं संवादात्मकता से रेचक्ता मेंृृद्धि छुई है जैसे ‘मैै कहा, यार, तू तो बिलकुल बदल गया।’ उसने गंभीरता से कहा,’परिवर्तन जीवन का अनंतक्रम है।’

मँने कहा,’ साले, फििलासफ़ी मत बघार यह बता कि तूने इतनी दौलत कैसे संभाली ?’

उसने पूछा- ‘तुम इन सालों में क्या करते रहे ?’

मैंने कहा- घूम-घूमकर टार्च बेचता रहा।’

लेखक ने मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया है तथा शब्द-चित्रों के माध्यम से तथाकथित धर्माचायों पर भी व्यंग्य किया है जब टार्च बेचनेवाले को धर्माचार्य बनने की प्रेरणा मिलती है-‘एक शाम जब मैं एक शहर की सड़क पर चला जा रहा था, मैने देखा कि पास के मैदान में खूब रोशनी है और एक तरफ़ मंच सजा है। लाउडस्पीकर लगे हैं। मैदान में हजारों नर-नारी श्रद्धा से झुके बैठे हैं। मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजे एक भव्य पुरुष बैठे हैं। वे खूब पुष्ट हैं, सँवारी हुई लंबी दाढ़ी है और पीठ पर लहराते लंबे केश।’ यहीं से वह प्रेरणा प्राप्त कर उपदेशक बन जाता है।

इस प्रकार लेखक की भाषा-शैली धारदार, रोचकता से परिपूर्ण तथा सामाजिक विकृतियों पर कटाक्ष करने में सक्षम है।

8. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है?

उत्तर

पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है। इसका आशय पाठ ‘टॉर्च बेचने वाले’ के अनुसार एकदम स्पष्ट है क्योंकि पैसा कमाने के लिए लोग दिन-रात मेहनत करते हैं और इस चक्कर में कई बार परिवार को ही अनदेखा कर देते हैं। परिवार के प्यार को छोड़कर अगर आप पैसा कमाने पर ध्यान देते हैं तो आपके लिए उस पैसा का कोई फायदा नहीं है। क्योंकि परिवार और प्यार के बिना दुनिया की हर खुशी फीकी है। आचार्य चाणक्य के अनुसार प्यार को पैसे से नहीं खरीदा जा सकता और इसलिए पैसा कमाने के चक्कर कभी भी प्यार और परिवार को न भूलें।

(ख) प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियाँ आत्मा के अँधेरे को दूर करने वाले सिद्ध पुरूष के द्वारा कही गई हैं| वह लोगों को अपने अंदर बसे अँधेरे को दूर करने के लिए आत्मा के प्रकाश को जगाने की सलाह देता है| वह संत का वेश धारण कर बड़ी-बड़ी बातें करके लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है|

(ग) धंधा वही करूँगा, यानी टार्च बेचूँगा। बस कंपनी बदल रहा हूँ।

उत्तर

पहला दोस्त टार्च बेचने का काम करता है जिसमें अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है| अपने दोस्त को आत्मा के अँधेरे को दूर करने का काम यानी साधु बनकर पैसे कमाते देख वह भी उसी काम को अपनाने का निश्चय करता है| उसे लगता है कि बिना मेहनत के भी बैठे-बिठाए पैसे कमाए जा सकते हैं| इसलिए वह मेहनत यानी टार्च बेचने का काम छोड़कर साधु बनने का फैसला करता है|

9. लेखक ने 'सूरज छाप' टार्च की पेटी को नदी में क्यों फेंक दिया? क्या आप भी वही करते?

उत्तर

हाँ, मैं भी अगर उस टार्चवाले की जगह होता तो टार्च नदी में फेंक देता क्योंकि इतनी मेहनत करने के बाद भी कम कमा पाता वहीं दूसरी ओर भगवान का डर या अँधेरा दिखाकर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं और बेहिसाब पैसे कमा रहे हैं|

10. टार्च बेचने वाले किस प्रकार की स्किल का प्रयोग करते हैं? क्या इसका 'स्किल इंडिया' प्रोग्राम से कोई संबंध है?

उत्तर

टार्च बेचने वाले लोगों को अपने उत्पाद की विषेशताओं के बारे में बताते हैं और उन्हें उन परिस्थितियों से अवगत कराते हैं जिनसे बचने के लिए वह इन उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं|

हाँ, 'स्किल इंडिया' प्रोग्राम द्वारा लोग मार्केटिंग स्किल्स को बढ़ा सकते हैं और जिनके द्वारा वह उत्पाद की बिक्री में तेज़ी ला सकते हैं|

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योग्यता-विस्तार

1. 'पैसा कमाने की लिप्सा ने आध्यात्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।' इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।

उत्तर

आज के समय में आध्यात्मिकता पैसे कमाने का सरल मार्ग बन गया है। इसे अब तो व्यापार के रूप में लिया जाता है। लोगों के जीवन में व्याप्त अशांति को आधार बनाकर उन्हें लुटा जा रहा है। इसे ही आध्यात्मिक भ्रष्टाचार कहते हैं। आध्यात्मिक भ्रष्टाचार इन दिनों समाज में बढ़ता जा रहा है। भगवान के नाम पर धर्मगुरूओं द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खेला जा रहा है। आज की भागदौड़ वाले जीवन में मनुष्य के मन में शान्ति नहीं है। वह शान्ति की तलाश में धर्म गुरूओं का सहारा लेता है। यदि कुछ को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर धर्म गुरूओं का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। वह जनता को केवल उनका धन लुटने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। हर कोई धर्मगुरू बन जाता है। समाज के आगे जब इनका झूठ खुलता है, तो जनता स्वयं को ठगा-सा महसूस करती है। गुरू ईश्वर प्राप्ति का मार्ग होता है परन्तु जब गुरू ही भटका हुआ हो, तो जनता को भटकाव और धोखे के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता है। यही आध्यात्मिक भ्रष्टाचार कहलाता है।

2. समाज में फैले अंधविश्वासों का उल्लेख करते हुए एक लेख लिखिए।

उत्तर

अंधविश्वास सदियों से चला आ रहा है। समाज में आज भी अनेक प्रकार के अंधविश्वास फैले हुए हैं। यह समाज में फैला ऐसा रोग है, जिसने समाज की नींव खोखली कर दी है। अंधविश्वास किसी जाति, समुदाय या वर्ग से संबंधित नहीं है बल्कि यह समान रूप से हर किसी के अंदर विद्यमान होता है। धार्मिक कर्ताओं, कथावाचकों की बातों पर अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता के कारण अन्य धर्मावलम्बियों को हानि पहुँचाना, कबीर आदि संतों के मतानुसार मूर्तिपूजा करना, मूर्तियों द्वारा दूध पिया जाना, रोना, दूषित जलाशयों के जल का आचमन करना और उनमें स्नान करना, धर्म के आधार पर अनुचित भेद-भाव बरतना, धर्म की आड़ लेकर लोगों को कष्ट पहुँचाना आदि ऐसे ही अंधविश्वास हैं। आज भी कितने ही शिक्षित लोग हैं, जो अंधविश्वास में पड़े हुए हैं। यही कारण है कि हमारी विकास की गति इतनी धीमी है। चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के पीछे वैज्ञानिक कारणों को अनदेखा करके हम अंदर से भयभीत रहते हैं। भारतीय समाज को इसके प्रति संकुचित दृष्टिकोण रखने की अपेक्षा इसमें छिपे रहस्य को जानना चाहिए वरना हम पीछे ही रह जाएँगे।

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