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NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 6, खानाबदोश

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NCERT Solutions Class 11, Hindi, Antra, पाठ- 6, खानाबदोश

लेखक - ओमप्रकाश वाल्मीकि

प्रश्न-अभ्यास

1. जसदेव की पिटाई के बाद मजदूरों का समूचा दिन कैसा बीता?

उत्तर

जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन दहशत तथा अदृश्य भय में बीता था। सभी इस डर में जी रहे थे कि सूबेसिंह किसी भी वक़्त लौटकर आएगा और मार-पीट करेगा|

2. मानो अभी तक भट्टे की जिंदगी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी?

उत्तर

भद्ठा शहर से दूर खेतों में था जहाँ यातायात की उचित व्यवस्था नही थी और न ही मनोरंजन का कोई साधन था। दिन के समय भट्ठे पर बहुत भीड़-भाड़ रहती थी। भट्ठे का संपूर्ण वातावरण हलचल से भरा रहता था। मज़दूर और मालिक सभी अपना काम करते हुए भविष्य के सपने बुनते हैं लेकिन जैसे ही शाम होती है भट्ठे का वातावरण सुनसान हो जाता है, मालिक शहर लौट जाते है और दिनभर की मेहनत से थके हुए लोग अपने-अपने झोंपड़ों में चले जाते हैं जहाँ वे दिनभर की थकावट उतारते हैं। भट्ठा सुनसान जगह खेतों में होने के कारण यह डर लगा रहता है कि कही अँधेरे में साँप-बिच्छू जैसे जंगली जानवर न निकल आए। मानो को रात के समय ऐसा लगता था जैसे आसपास का पूरा जंगल सिमट कर उसकी झोंपड़ी के आगे आ गया हो। ऐसे सुनसान वातावरण में उसका मन घवराने लगता था। उसने सुकिया से कई बार वापस गाँव जाने के लिए कहा लेकिन सुकिया ने उसकी बात नहीं मानी। मानो सुकिया को समझाती कि अपने गाँव में तो वह तंगी में भी गुजारा करके खुश रह सकती है क्योंकि वहाँ के सभी लोग अपनी जान-पहचान के हैं जिनके साथ सुख-दुख बाँटा जा सकता है। यहाँ भह्ठे पर तो कहने को भी अपना कोई नहीं है सभी पराए लोग है। इसलिए मानो अभी तक भट्ठे की जिंद्री से तालमेल नहीं बिठा पाई थी।

3. असगर ठेकेदार के साथ जसदेव को आता देखकर सूबे सिंह क्यों बिफर पड़ा और जसदेव को मारने का क्या कारण था?

उत्तर

सूबे सिंह ने मानो को अपने दफ़्तर बुलाया था| वह उसके साथ गलत काम करना चाहता था| उसने असगर ठेकेदार को मानो को बुलाने के लिए कहा। जब असगर ठेकेदार ने यह बात मानो तथा सुकिया को कही, तो सुकिया क्रोधित हो उठा। स्थिति भाँपकर जसदेव ने फैसला किया कि वह मानो के स्थान पर सूबे सिंह के पास जाएगा। जब सूबे सिंह ने देखा कि मानो नहीं आई है और उसके स्थान पर जसदेव आया है, तो वह बिफर पड़ा। मानो का सारा गुस्सा उसने जसदेव पर निकाल दिया। उसने जसदेव को बहुत बुरी तरह मारा।

4. जसदेव ने मानो के हाथ का खाना क्यों नहीं खाया?

उत्तर

मानो और जसदेव के धर्म और जाति दोनों ही अलग थे। जसदेव ब्राह्मण था और समाज की कुरीतियां सब पर हावी थी। इसलिए जसदेव भी खाना खाने में हिचक रहा था और उसने बहाना बना दिया कि उसे भूख नहीं है। 

5. लोगों को क्यों लग रहा था कि किसी ने जानबूझकर मानो की ईंटें गिराकर रौंदा है?

उत्तर

मानो और सुकिया से सूबेसिंह बहुत चिढ़ा हुआ था। वह उनको हर तरह परेशान करने पर आमादा था। जब सुबह मानो ने अपनी थापी हुई ईंटों को जाकर देखा तो कच्ची ईंटें टूटी-फूटी पड़ी थीं। ऐसा लग रहा था जैसे ईंटों को किसी ने जानबूझकर गिराया था। लोग कह रहे थे कि रात में कोई आँधी-तूफान नहीं आया और वह किसी जंगली जानवर का भी काम नहीं लग रहा था। अनेक लोग मानते थे कि ईंटें जानबूझकर तोड़ी गई थीं। सब जानते थे कि वह करतूत सूबेसिंह के अलावा और किसी की नहीं थी।

6. मानो को क्यों लग रहा था कि किसी ने उसकी पक्की ईटों के मकान को ही धराशाई कर दिया है?

उत्तर

मानो ने अपनी पक्की ईटों के मकान का सपना देखा था| उसने अपने सपने के बारे में अपने पति को सुकिया को भी बताया| दोनों अपने इस सपने को साकार करने के लिए जी-जान से जुटे थे| वे देर तक काम करते और सुबह भी जल्दी उठकर भट्टे पर चले जाते| परन्तु जब उसने ईंटों को रौंदा हुआ देखा तो उसे समझ आ चुका था की अब उसके पीछे सूबे सिंह, मुंशी और यहाँ तक की जसदेव भी पड़ गया है जो किसी भी हालत में उसे काम करने नहीं देगा| वह कितनी भी मेहनत क्यों न कर ले उसका सपना पूरा नहीं हो सकता|  इसलिए उन टूटी हुई ईटों को देखकर उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी पक्की ईटों के मकान को ही धराशाई कर दिया है|

7. 'चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।' सुकिया के इस कथन के आधार पर कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

‘खानाबदोश’ कहानी में लेखक ने मज़दूर वर्ग का पूँजीपति वर्ग द्वारा किए जा रहे शोषण को चित्रित किया है। मज्ञदूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत मज़ूरी करके इस्ज़त के साथ जीवन बिताना चाहता है, तो सूबे सिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते हैं। सुकिया और मानो गाँव छोड़कर शहर से दूर भट्ठे पर, अपना ईंटों का घर बनाने का सपना पूरा करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। दोनों जमा किए पैसों को देख-देखकर खुश होते हैं। सूबे सिंह अपनी दौलत से मानो को खरीदना चाहता है लेकिन मानो अपने घर में, अपने परिवार के साथ इक्जत की ज़िंद्गी बिताना चाहती है इसलिए अपने पति सुकिया के साथ मिलकर सूबे सिंह की ज़्यादतियों का सामना करती हुई मेहनत से काम करती है। एक दिन मानो द्वारा बनाई गई ईटें रात को कोई तोड़ जाता है जिससे उसके सपने भी टूट जाते हैं। वे दोनों अपने टूटे सपनों को साथ लेकर, बाकी सब छोड़कर खानाबदोशों की तरह अगले पड़ाव के लिए चल पड़ते हैं।

इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मज़दूरों पर होनेवाले अत्याचारों तथा शोषण को दिखाया है कि किस प्रकार पूँजीपति मजदूरों की मेहनत से अपने को अमीर बनाता है फिर उसी पूँजी से उनका शोषण करता है। उनके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं करता है। मज़दूर एक बार अपनी जमीन से उखड़कर, सपने पूरे करने की आस लेकर शहर आते हैं, लेकिन वे जिंदगीभर सूबे सिंह जैसे लोगों के कारण जमीन से जुड़ नहीं पाते हैं। उम्रभर खानाबदोश ही रहते हैं।

8. 'खानाबदोश' कहानी में आज के समाज की किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है? इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

लेखक ने ‘खानाबदोश’ कहानी में मालिक-मज़दर के अंतर से उत्पन्न होनेवाली समस्या, जात-पाँत की समस्या को उठाया है। मजदूर की मेहनत और ईमानदारी से भट्ठे के मालिक खूय पैसा कमा रहे हैं लेकिन उनकी सुविधा के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं कराते हैं। मज़दूरों शहर से दूर भट्ठों पर ही दबड़ेनुमा झोंपड़ियाँ बनाकर रहते है जिसमें आदमी हंग से खड़ा नहीं हो पाता है। बीमार पड़ने या चोट लगने पर दवाई की सुविधा नहीं है। सूबे सिंह जैसे मालिक लोग मजदूर स्त्रियों के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचाते हैं। उनका कहना न मानने पर उन्हें तंग करके काम छोड़ने को मजबूर कर देते हैं।

लेखक ने कहानी में जात-पाँत की समस्या को उठाया है मज़दूरों होकर भी आपस में काम करनेवाले जात-पाँत को मानते हैं। जसदेव ब्राह्मण होने के कारण मानो के हाथ की बनी रोटी नहीं खाता है। असगर ठेकेदार के यह कहने पर कि वह ब्राहमण है क्यों इन मज़दूर के चक्कर में पड़ता है जब से जसदेव सुकिया और मानो से दूर-दूर रहने लगता है। लेखक ने कहानी में यह दिखाने का प्रयास किया है कि मज़दूर वर्ग को सपने देखने का अधिकार नहीं है। वह मेहनत और ईमानदारी का जीवन व्यतीत नहीं कर सकते हैं। दिन-रात की मेहनत-मज़दूरी के बाद उन्हें इतने पैसे भी नही मिलते कि वह अपने लिए अच्छे खाने और रहने का इंतजाम कर सकें। मानो के माध्यम से ब्राहमण मानसिकता पर चोट की है, “फिर तुम तो दिन-रात साथ काम करते हो… मेरी खातिर पिटे… फिर यह बयान म्हारे बीच कहाँ से आ गया… ?’

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9. सुकिया ने जिन समस्याओं के कारण गाँव छोड़ा वही समस्या शहर में भट्ठे पर उसे झेलनी पड़ी मूलतः वह समस्या क्या थी?

उत्तर

सुखिया ने जिन समस्याओं के कारण गाँव छोड़ा वह इस प्रकार है -

  • स्त्रियों का सम्मान न करना, उनका शोषण करना।
  • मजदूरों को इज्जत न देना, मुंशी का फरमान अदा करना। 
  • गाँव में जानवरों का डर उसे डराया करता।

10. 'स्किल इंडिया' जैसा कार्यक्रम होता तो क्या तब भी सुकिया और मानो को खानाबदोश जीवन व्यतित करना पड़ता ?

उत्तर

'स्किल इंडिया' जैसा कार्यक्रम होता तो सुकिया और मानो को खानाबदोश जीवन व्यतित नहीं करना पड़ता| वे सरकारी योजना का लाभ उठाकर नए कामों को सीख सकते थे और अपना कौशल विकसित कर सकते थे| इसके बाद वे कोई रोजगार ढूँढ सकते थे या दोनों मिलकर अपना व्यवसाय खोल सकते थे|

11. निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए

(क) अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।

उत्तर

मानो सुकिया के साथ गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने आ जाती है लेकिन भट्ठे के माहौल में उसका दिल नहीं लगता। वह सुकिया से गाँव वापस चलने के लिए कहती है लेकिन सुकिया वापस गाँव में जाकर नर्क की जिंदगी नहीं बिताना चाहता है। मानो उससे कहती है कि गाँव में सभी लोग अपने हैं। अपनों के बीच सुख-दुख उठाते हुए हम कम खाकर भी खुश रह सकते हैं। यहाँ परदेश में अपना कोई नहीं है यदि हम यहाँ सुख-सुविधाओं में रहें तो उसका क्या लाभ ! हमारा सुख-दुख बाँटने वाला तो अपना कोई नही है, सभी पराए हैं।

(ख) इत्ते ढेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।

उत्तर

भट्वे में पकी लाल इंटों को देखकर मानो के दिल में अपना पक्का घर बनाने की इच्छा जन्म लेती है। वह सुकिया को अपनी इच्छा बताती है। सुकिया उसे समझाता है कि उसकी यह इच्छा पूरी नही हो सकती है क्योंकि हम मज़दूर है। घर बनाने में केवल इंटे ही नहीं लगती, उसमें अन्य सामान रेत, सीमेंट, लकड़ी, लोहा आदि लगता है। घर दो-चार रुपयों में नहीं बनता है उसके लिए बहुत सारे रुपए चाहिए जो हमारे पास नहीं हैं। हम मेहनत मज्ञदूरी करनेवाले लोग पक्के घर का सपना देख सकते हैं। उसे पूरा करने की ताकत हमारे पास नहीं है।

(ग) उसे एक घर चाहिए था पक्की ईंटों का, जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।

उत्तर

सूबे सिंह मानो को किसनी की तरह अपने जाल में फँसाना चाहता था लेकिन मानो के स्वाभिमान के कारण उसे फैसा नहीं पाता। मानो में इक्ज़त से जिंदगी जीने की इच्छा बहुत अधिक थी इसलिए वह सूबे सिंह के पास नही जाती। मानो भट्ठे पर रहते हुए एक पक्के घर का सपना देखती है जहाँ वह अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहना चाहती है। वह अपना सपना पूरा करने के लिए कमर तोड़ मेहनत करने के लिए तैयार है लेकिन वह अपना आत्मसम्मान खोकर अपना सपना पूरा नहीं करना चाहती।

योग्यता-विस्तार

1. अपने आसपास के क्षेत्र में जाकर ईंटों के भट्ठे को देखिए तथा ईंटें बनाने एवं उन्हें पकाने की प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर

सबसे पहले गीली मिट्टी की सहायता से ईटें बनाई तथा सुखाई जाती हैं। जब यह सुख जाती हैं, तो इन्हें ताप में पकाने के लिए हर थोड़ी दूरी पर कच्ची ईंट के समूह को पंक्ति में लगाया जाता है। एक आयताकार स्थान पर फर्श एक या दो फुट गहरा खोदा जाता है। उसके ऊपर जमीन को पाट दिया जाता है। उसके नीचे लकड़ी, कोयले, फूस तथा ज्वलनशील पदार्थ से आग लगा दी जाती है। इसके ऊपर ही सुखाई गई ईटों को छह-सात पंक्तियों में रख दिया जाता है। इसके बाद इन्हें इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वह चारों तरफ से दीवार के समान हो जाती हैं। उनके ऊपर गीली मिट्टी का लेप लगा दिया जाता है। इस प्रकार ऊष्मा के बाहर जाने का रास्ता बंद कर दिया जाता है। आखिर में ज्वलनशील पदार्थ में आग लगा दी जाती है। इन ईंटों के पकने में कम से कम छह सप्ताह का समय लगता है। इसके बाद इन्हें ठंडा किया जाता है। ठंडा करने का समय भी ईंटों के पकने के समय के बराबर ही होता है।

2.भट्ठा-मजदूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

उत्तर

प्राप्त सूत्रों के अनुसार भट्ठा-मज़दूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर होती है। वे ठेकेदार द्वारा दी गई झुग्गियों में रहते हैं। उन्हें प्रतिदिन की दिहाड़ी पर रखा जाता है। औसतन यह दिहानी 350 से लेकर 400 रुपए प्रतिमाह होती है। उनका शोषण किया जाता है और उन्हें 12 घंटे काम करने के बाद भी 12 रुपए प्रतिदिन से लेकर 100 रुपए तक ही मिल पाता है। कह सकते हैं कि उन्हें काम के अनुसार दिहाड़ी नहीं दी जाती है। तमिलनाडू में 30 मई 2016 में छपे समाचार के बाद पता चला कि कई मज़दूरों को तो बंधूआ मज़दूर बनाकर रखा गया था। उन्हें अलग-अलग शहरों से वादे करके लाया गया और बाद में भट्ठा मालिक अपने वादे से हट गया। स्वयंसेवी संस्था तथा सरकार के प्रयास से इन्हें छुड़वाया गया इसमें अधिकतर 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे। इससे पता चलता है कि भट्ठे में काम करने वालों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बहुत बुरी हो सकती है।

3. जाति प्रथा पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर

जाति प्रथा 

भारतीय समाज की एक विशेषता है, उसमें शताब्दियों से चली आ रही 'जाति प्रथा'। हमारा समाज, विशेष रूप से हिन्दू समाज, अनेक जातियों में बँटा हुआ है। इसे वर्ण व्यवस्था भी कहा जाता है। इस व्यवस्था का मूल स्वरूप या आधार समाज के लोगों के गुण और कर्म के अनुसार बना है। इसे श्रम-विभाजन का एक प्राचीन रूप माना जा सकता है। सामाजिक जीवन सुचारु रूप से चले, इसके लिए समाज को चार वर्गों में व्यवस्थित किया गया था। शिक्षा कार्य और धार्मिक विश्वासों की व्याख्या करने वाला या ब्राह्मण वर्ग। दूसरा समाज बाहरी सुरक्षा में भाग लेने वाला या क्षत्रिय वर्ग।

इसी प्रकार व्यवसायकर्ता वैश्य और नाना प्रकार के पों. उपयोगी वस्तओं के निर्माण, स्वच्छता और सेवा-कार्यों को सम्भालने वाला वर्ग या चौथा वर्ग। आज जाति व्यवस्था का जो रूप प्रचलित है उसमें जन्म पर आधारित कार्य-विभाजन का रूप ले लिया है। जाति व्यवस्था के कारण समाज के एक बहुत बड़े भाग पर अनेक अन्याय भी होते रहे हैं। शिक्षित, अग्रगामी, सामाजिक न्याय पर सचाई से विचार करने वाले महापुरुषों ने जाति व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को स्वीकार नहीं किया है। 

जन्म से कोई छोटा-बड़ा, छूत-अछूत नहीं होता। कोई पेशा या कार्य हो, इसके बिना समाज का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकता। अतः प्रत्येक कार्य का सम्मान होना चाहिए। रूप, रंग, जीवन-स्तर और जन्म-जाति के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर, हर नागरिक को धन्धा चुनने और आगे बढ़ने का अधिकार होना चाहिए। तभी समाज में समरसता, एकता और आत्मसम्मान को आदर मिलेगा। देश उन्नति करेगा। 

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