9. सुकिया ने जिन समस्याओं के कारण गाँव छोड़ा वही समस्या शहर में भट्ठे पर उसे झेलनी पड़ी मूलतः वह समस्या क्या थी?
उत्तर
सुखिया ने जिन समस्याओं के कारण गाँव छोड़ा वह इस प्रकार है -
- स्त्रियों का सम्मान न करना, उनका शोषण करना।
- मजदूरों को इज्जत न देना, मुंशी का फरमान अदा करना।
- गाँव में जानवरों का डर उसे डराया करता।
10. 'स्किल इंडिया' जैसा कार्यक्रम होता तो क्या तब भी सुकिया और मानो को खानाबदोश जीवन व्यतित करना पड़ता ?
उत्तर
'स्किल इंडिया' जैसा कार्यक्रम होता तो सुकिया और मानो को खानाबदोश जीवन व्यतित नहीं करना पड़ता| वे सरकारी योजना का लाभ उठाकर नए कामों को सीख सकते थे और अपना कौशल विकसित कर सकते थे| इसके बाद वे कोई रोजगार ढूँढ सकते थे या दोनों मिलकर अपना व्यवसाय खोल सकते थे|
11. निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।
उत्तर
मानो सुकिया के साथ गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने आ जाती है लेकिन भट्ठे के माहौल में उसका दिल नहीं लगता। वह सुकिया से गाँव वापस चलने के लिए कहती है लेकिन सुकिया वापस गाँव में जाकर नर्क की जिंदगी नहीं बिताना चाहता है। मानो उससे कहती है कि गाँव में सभी लोग अपने हैं। अपनों के बीच सुख-दुख उठाते हुए हम कम खाकर भी खुश रह सकते हैं। यहाँ परदेश में अपना कोई नहीं है यदि हम यहाँ सुख-सुविधाओं में रहें तो उसका क्या लाभ ! हमारा सुख-दुख बाँटने वाला तो अपना कोई नही है, सभी पराए हैं।
(ख) इत्ते ढेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।
उत्तर
भट्वे में पकी लाल इंटों को देखकर मानो के दिल में अपना पक्का घर बनाने की इच्छा जन्म लेती है। वह सुकिया को अपनी इच्छा बताती है। सुकिया उसे समझाता है कि उसकी यह इच्छा पूरी नही हो सकती है क्योंकि हम मज़दूर है। घर बनाने में केवल इंटे ही नहीं लगती, उसमें अन्य सामान रेत, सीमेंट, लकड़ी, लोहा आदि लगता है। घर दो-चार रुपयों में नहीं बनता है उसके लिए बहुत सारे रुपए चाहिए जो हमारे पास नहीं हैं। हम मेहनत मज्ञदूरी करनेवाले लोग पक्के घर का सपना देख सकते हैं। उसे पूरा करने की ताकत हमारे पास नहीं है।
(ग) उसे एक घर चाहिए था पक्की ईंटों का, जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।
उत्तर
सूबे सिंह मानो को किसनी की तरह अपने जाल में फँसाना चाहता था लेकिन मानो के स्वाभिमान के कारण उसे फैसा नहीं पाता। मानो में इक्ज़त से जिंदगी जीने की इच्छा बहुत अधिक थी इसलिए वह सूबे सिंह के पास नही जाती। मानो भट्ठे पर रहते हुए एक पक्के घर का सपना देखती है जहाँ वह अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहना चाहती है। वह अपना सपना पूरा करने के लिए कमर तोड़ मेहनत करने के लिए तैयार है लेकिन वह अपना आत्मसम्मान खोकर अपना सपना पूरा नहीं करना चाहती।
योग्यता-विस्तार
1. अपने आसपास के क्षेत्र में जाकर ईंटों के भट्ठे को देखिए तथा ईंटें बनाने एवं उन्हें पकाने की प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
सबसे पहले गीली मिट्टी की सहायता से ईटें बनाई तथा सुखाई जाती हैं। जब यह सुख जाती हैं, तो इन्हें ताप में पकाने के लिए हर थोड़ी दूरी पर कच्ची ईंट के समूह को पंक्ति में लगाया जाता है। एक आयताकार स्थान पर फर्श एक या दो फुट गहरा खोदा जाता है। उसके ऊपर जमीन को पाट दिया जाता है। उसके नीचे लकड़ी, कोयले, फूस तथा ज्वलनशील पदार्थ से आग लगा दी जाती है। इसके ऊपर ही सुखाई गई ईटों को छह-सात पंक्तियों में रख दिया जाता है। इसके बाद इन्हें इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वह चारों तरफ से दीवार के समान हो जाती हैं। उनके ऊपर गीली मिट्टी का लेप लगा दिया जाता है। इस प्रकार ऊष्मा के बाहर जाने का रास्ता बंद कर दिया जाता है। आखिर में ज्वलनशील पदार्थ में आग लगा दी जाती है। इन ईंटों के पकने में कम से कम छह सप्ताह का समय लगता है। इसके बाद इन्हें ठंडा किया जाता है। ठंडा करने का समय भी ईंटों के पकने के समय के बराबर ही होता है।
2.भट्ठा-मजदूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर
प्राप्त सूत्रों के अनुसार भट्ठा-मज़दूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर होती है। वे ठेकेदार द्वारा दी गई झुग्गियों में रहते हैं। उन्हें प्रतिदिन की दिहाड़ी पर रखा जाता है। औसतन यह दिहानी 350 से लेकर 400 रुपए प्रतिमाह होती है। उनका शोषण किया जाता है और उन्हें 12 घंटे काम करने के बाद भी 12 रुपए प्रतिदिन से लेकर 100 रुपए तक ही मिल पाता है। कह सकते हैं कि उन्हें काम के अनुसार दिहाड़ी नहीं दी जाती है। तमिलनाडू में 30 मई 2016 में छपे समाचार के बाद पता चला कि कई मज़दूरों को तो बंधूआ मज़दूर बनाकर रखा गया था। उन्हें अलग-अलग शहरों से वादे करके लाया गया और बाद में भट्ठा मालिक अपने वादे से हट गया। स्वयंसेवी संस्था तथा सरकार के प्रयास से इन्हें छुड़वाया गया इसमें अधिकतर 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे। इससे पता चलता है कि भट्ठे में काम करने वालों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बहुत बुरी हो सकती है।
3. जाति प्रथा पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर
जाति प्रथा
भारतीय समाज की एक विशेषता है, उसमें शताब्दियों से चली आ रही 'जाति प्रथा'। हमारा समाज, विशेष रूप से हिन्दू समाज, अनेक जातियों में बँटा हुआ है। इसे वर्ण व्यवस्था भी कहा जाता है। इस व्यवस्था का मूल स्वरूप या आधार समाज के लोगों के गुण और कर्म के अनुसार बना है। इसे श्रम-विभाजन का एक प्राचीन रूप माना जा सकता है। सामाजिक जीवन सुचारु रूप से चले, इसके लिए समाज को चार वर्गों में व्यवस्थित किया गया था। शिक्षा कार्य और धार्मिक विश्वासों की व्याख्या करने वाला या ब्राह्मण वर्ग। दूसरा समाज बाहरी सुरक्षा में भाग लेने वाला या क्षत्रिय वर्ग।
इसी प्रकार व्यवसायकर्ता वैश्य और नाना प्रकार के पों. उपयोगी वस्तओं के निर्माण, स्वच्छता और सेवा-कार्यों को सम्भालने वाला वर्ग या चौथा वर्ग। आज जाति व्यवस्था का जो रूप प्रचलित है उसमें जन्म पर आधारित कार्य-विभाजन का रूप ले लिया है। जाति व्यवस्था के कारण समाज के एक बहुत बड़े भाग पर अनेक अन्याय भी होते रहे हैं। शिक्षित, अग्रगामी, सामाजिक न्याय पर सचाई से विचार करने वाले महापुरुषों ने जाति व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को स्वीकार नहीं किया है।
जन्म से कोई छोटा-बड़ा, छूत-अछूत नहीं होता। कोई पेशा या कार्य हो, इसके बिना समाज का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकता। अतः प्रत्येक कार्य का सम्मान होना चाहिए। रूप, रंग, जीवन-स्तर और जन्म-जाति के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर, हर नागरिक को धन्धा चुनने और आगे बढ़ने का अधिकार होना चाहिए। तभी समाज में समरसता, एकता और आत्मसम्मान को आदर मिलेगा। देश उन्नति करेगा।