NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antra, पाठ- 10, प्रेमघन की छाया-स्मृति
लेखक - रामचंद्र शुक्ल
1. लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर
लेखक ने अपने पिता जी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-
- उनके पिता फ़ारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे।
- वे प्राचीन हिंदी भाषा के प्रशंसक थे।
- वे फ़ारसी भाषा में लिखी उक्तियों के साथ हिन्दी भाषा में लिखी गई उक्तियों को मिलाने के शौकीन थे।
- वे प्रायः रात में सारे परिवार को रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का बड़ा चित्रात्मक ढ़ंग से वर्णन करके सुनाते थे।
- भारतेंदु के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।
2. बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?
उत्तर
बचपन में शुक्ल जी के मन में भारतेंदु जी के संबंध में एक अपूर्व मधुरता की भावना जगी रहती थी। उनकी आयु उस समय केवल आठ वर्ष की थी। उनकी बाल बुद्धि ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में कोई भेद नहीं कर पाती थी। वे दोनों को एक ही समझते थे। हरिश्चंद्र शब्द से दोनों ही एक मिली-जुली भावना का अनुभव करते थे। उनके बारे में एक अपूर्व माधुर्य का संचार उनके मन में होता रहता था। जब उन्हें पता चला कि मिर्जापुर में भारतेंदु के एक मित्र रहते हैं तो उनके बारे में उत्कंठा जाग गई।
3. उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?
उत्तर
लेखक मिर्जापुर में नगर से बाहर रहते थे। वहीं उन्हें पता चला कि भारतेन्दु जी के मित्र उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ रहते हैं। – डेढ़ मील का सफर तय करके सभी बालक एक मकान के नीचे पहुँचे। – प्रेमघन से मिलने की योजना बनाई गई। कुछ उन बालकों को एकत्रित किया गया जो चौधरी साहब के मकान से परिचित थे। उन्हें आगे किया गया। – नीचे का बरामदा खाली था। ऊपर का बरामदा लताओं के जाल से आवृत्त था। – लेखक ने ऊपर की ओर देखा। काफी देर बाद लताओं के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई दी। – ये ही चौधरी प्रेमघन थे। उनके दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे। – देखते ही देखते यह मूर्ति दृष्टि से ओझल हो गई। यही बदरीनारायण चौधरी की पहली झलक थी, जो लेखक ने देखी।
4. लेखक का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया?
उत्तर
लेखक के घर में हिंदी का वातावरण तो बचपन से ही था। वह ज्यों-ज्यों सयाना होता गया, त्यों-त्यों हिंदी-साहित्य की ओर उसका झुकाव बढ़ता गया। जब वह क्वींस कॉलेज में पढ़ता था तब स्व. रामकृष्ण वर्मा उनके पिताजी के सहपाठियों में से एक थे। लेखक के घर में भारत जीवन प्रेस की पुस्तके आया करती थीं, पर पिताजी उन्हें इसलिए छिपा कर रखते थे कि कहीं बेटे का चित्त स्कूल की पढ़ाई से न हट जाए। उन्हीं दिनों पं. केदारनाथ पाठक ने एक हिंदी पुस्तकालय खोला था। लेखक वहाँ से पुस्तकें लाकर पढ़ा करता था। बाद में लेखक की पाठक जी के साथ गहरी मित्रता हो गई। 16 वर्ष की अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते उसे समवयस्क हिंदी-प्रेमियों की अच्छी-खासी मंडली मिल गई। इनमें प्रमुख थे-काशी प्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, पं. बदरीनाथ गौड़, पं. उमाशंकर द्विवेदी आदि। इस मंडली में हिंदी के नए-पुराने लेखकों की चर्चा होती रहती थी। अब शुक्ल जी भी स्वयं को लेखक मानने लगे थे। इस प्रकार उनका झुकाव हिंदी-साहित्य के प्रति बढ़ता चला गया।
5. 'निस्संदेह' शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का जिक्र किया है?
उत्तर
'निस्संदेह' शब्द को लेकर लेखक ने इस प्रसंग का ज़िक्र किया है। जब लेखक का परिचय हिन्दी प्रेमी मंडली से हुआ, तो वहाँ प्रायः लिखने तथा बोलने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग किया करते थे। बातचीत करते समय निस्संदेह शब्द का अधिक प्रयोग किया जाता था। दूसरे लेखक के घर के आसपास ऐसे लोग अधिक रहा करते थे, जो मुख्तार, कचहरी के अफसर या कर्मचारी तथा वकील हुआ करते थे। ये लोग राजभाषा होने के कारण उर्दू का प्रयोग अधिक किया करते थे। ऐसे लोगों को लेखक तथा उसकी मंडली द्वारा हिंदी बोलना अजीब लगता था। इन्हीं लोगों ने लेखक तथा उनकी मित्र-मंडली का नाम 'निस्संदेह' रख दिया था।
6. पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
पहली रोचक घटना : एक बार की बात है कि मिर्जापुर में एक प्रतिभाशाली कवि वामनाचार्य गिरि रहते थे। एक दिन वे सड़क पर चौधरी साहब के ऊपर एक कविता जोड़ते चले जा रहे थे। अंतिम चरण अभी रह गया था कि उन्हें बरामदे में चौधरी साहब कंधों पर बाल छिटकाए खंभे के सहारे खड़े दिखाई दिए। बस वामन जी का कवित्त इस पंक्ति के साथ पूरा हो गया- “खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।” (अर्थात् चौधरी साहब मुगल-रानी के समान लग रहे थे।)
दूसरी रोचक घटना : एक दिन चौधरी साहब के एक पड़ोसी उनके यहाँ पहुँचे। उन्हें देखते ही सवाल पूछा-” क्यों साहब, एक लफ्ज (शब्द) मैं अक्सर सुना करता हूँ, पर उसका अर्थ ठीक से समझ में नहीं आया है। आखिर ‘घनचक्कर’ शब्द के क्या मानी है। उसके लक्षण क्या हैं ?” पड़ोसी महाशय तुरंत बोले- ” वाह, यह क्या मुश्किल बात है। एक दिन रात को सोने से पहले कागज-कलम लेकर सवेरे से रात तक जो-जो काम किए हों, सब लिख जाइए और पढ़ जाइए।” (अर्थात् ऐसा व्यक्ति ही घनचक्कर होता है-व्यंग्य)
तीसरी रोचक घटना : एक बार गमी के दिनों में कई आदमी छत पर बैठकर चौधरी साहब से बातचीत कर रहे थे। चौधरी साहब के पास एक लैम्प जल रहा था तभी लैम्प की बत्ती भभकने लगी। चौधरी साहब इसे बुझाने के लिए नौकरों को आवाज देने लगे। लेखक ने चाहा कि वह आगे बढ़कर बत्ती को नीचे गिरा दे पर पं. बदरीनारायण ने तमाशा देखने के विचार से लेखक को रोक दिया। चौधरी साहब कहते जा रहे थे- अरे, जब फूट जाई तबै चलत आवह” और अंत में चिमनी ग्लोब सहित चकनाचूर हो गई, पर चौधरी साहब का हाथ लैम्य की तरफ न बढ़ा।
7. "इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।" यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
- यह कथन बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन के संदर्भ में कहा गया है।
- लेखक का उनसे अच्छा परिचय हो गया था। अतः अब वह वहाँ एक लेखक की हैसियत से जाता था।
- लेखक की मित्र-मंडली उन्हें एक पुरानी चीज समझती थी।
- उनमें प्रेम और कौतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था। लेखक और उनके मित्र उन्हें महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मानकर उनके बारे में जानने को उत्सुक रहते थे।
8. प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?
उत्तर
खक ने चौधी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है।-
हिंदी प्रेमी- चौधरी साहब हिंदी के कवि थे। वह 'प्रेमघन' उपनाम से लिखा करते थे। हिंदी से उनका प्रेम इन बातों से स्पष्ट हो जाता है। लेखक को हिंदी साहित्य की ओर ले जाने में उनका बड़ा योगदान था।
रियासती व्यक्ति- चौधरी साहब एक रियासत और तबीयतदारी व्यक्ति थे। उनके यहाँ हर उत्सव तथा अवसर में नाचरंग का आयोजन होता है। यह उनकी रईसी का प्रतीक था।
आकर्षक व्यक्तित्व- चौधरी साहब का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था। लंबा कद तथा कंधे तक लटकते बाल उनकी पहचान थे।
हँसमुख व्यक्ति- चौधरी साहब हँसमुख व्यक्ति थे। बात-बात पर लोगों को गुदगुदा देते थे।
9. समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे?
उत्तर
समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में ये लेखक मुख्य थे- काशी प्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, पंडित बदरीनाथ गौड़, पंडित उमाशंकर द्विवेदी इत्यादि।
10. 'भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय-परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया।' कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
लेखक,एक बार एक बारात में काशी गया। वह घूमता हुआ निकला तो उसे पें, केदारनाथ पाठक दिखाई पड़े।
लेखक उनके पुस्तकालय में प्रायः जाया करता था, अतः पाठक जी लेखक को देखते ही वहीं खड़े हो गए। दोनों में वहीं बातचीत होने लगी। इसी बातचीत में मालूम हुआ कि पाठक जी जिस मकान से निकले थे वह भारतेंदु जी का ही घर था। लेखक बड़ी चाह और कुतूहल की दृष्टि से उस मकान की ओर देखता रहा। उस समय लेखक भावों में लीन था। पाठक जी लेखक की ऐसी भावुकता देकर बड़े प्रसन्न हुए। उन दिनों का यह हृदय-परिचय भारतेंदु के मकान के नीचे हुआ था, जो आगे चलकर शीघ्र ही गहरी मित्रता में बदल गया। वे दोनों गहरे मित्र बन गए।
भाषा-शिल्प
1. हिंदी-उर्दू के विषय में लेखक के विचारों को देखिए। आप इन दोनों को एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं या भिन्न भाषाएँ?
उत्तर
हमारा देश भारत एकता का प्रतीक है। हमारे देश में कई भाषाएँ तथा बोलियाँ विद्यमान हैं। हिन्दी, उर्दू, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी आदि कई भाषाएँ विशेष स्थान रखती हैं। सभी भाषाओं की अलग-अलग ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद इन सभी भाषाओं का महत्वपूर्ण स्थान तथा साहित्य में इनका विशेष योगदान रहा है। मुगलों के आगमन के साथ ही भारत में उर्दू भाषा का भी आगमन हुआ। अंग्रेज़ों के समय में आज़ादी पाने के लिए एक ऐसी भाषा के विकास की आवश्यकता हुई, जो जन भाषा बन सके। अतः वह काल संक्रमण का काल था। भरतेन्दु जी ने खड़ी बोली में लिखना आरंभ कर दिया था। उस समय सभी उर्दू के साथ-साथ हिंदी का भी प्रयोग करते थे। अतः इस आधार पर यह कहना सरल होगा कि हिंदी और उर्दू दो अलग-अलग भाषाएँ हैं। उर्दू भाषा हिंदी के साथ रच बस गई है। आज दोनों में अंतर करना बहुत कठिन हो गया है। परन्तु सत्य यही है कि अन्य सभी भाषाओं की तरह ये दोनों अलग हैं और भिन्न शैली की हैं। सभी भाषाओं की तरह दोनों भाषाओं की लिपियाँ भी अलग हैं।
2. चौधरी जी के व्यक्तित्व को बताने के लिए पाठ में कुछ मजेदार वाक्य आए हैं-उन्हें छाँटकर उनका संदर्भ लिखिए।
उत्तर
- ‘दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे ‘ : इस वाक्य से पता चलता है कि चौधरी साहब को लंबे बाल रखने का शौक था।
- ‘जो बातें उनके मुँह से निकलती थीं उनमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी।’ : इस वाक्य से पता चलता है कि चौधरी साहब बातचीत की कला में बड़े कुशल थे।
- ‘अरे जब फूट जाई तबै चलत आवत’ : इस वाक्य से पता चलता है कि वे घर में अपनी स्थानीय (देशज) भाषा में बात करते थे।